श्रेणी:विश्व व्यापार संगठन
विश्व व्यापार संगठन World Trade Organisation – WTO
बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की वैधानिक एवं संस्थात्मक आधारशिला के रूप में डब्ल्यूटीओ की स्थापना 1 जनवरी, 1995 की मराकेश समझौते (15 अप्रैल, 1994 को हस्ताक्षरित) के अधीन की गयी। इस नये संगठन द्वारा गैट (प्रशुल्क एवं व्यापार का सामान्य समझौता) का स्थान लिया गया। एक अंतरिम समझौते के रूप में गैट 1 जनवरी, 1948 से लागू हुआ था। मूलतः इसमें 23 हस्ताक्षरकर्ता थे, जिन्हें एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन हेतु दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए एक समिति का गठन करना था। उस समय यह कार्य अधूरा ही रहा तथा गैट का अस्तित्व व्यापार नियम तय करने वाले एकमात्र विश्व निकाय के रूप में बना रहा। 1947 से 1993 के मध्य गैट के अधीन वार्ताओं के आठ चक्र आयोजित हुए जिसमें विश्व व्यापार के उदारीकरण तथा राष्ट्रों के मध्य व्यापार संबंधों एवं विश्व व्यपार में एक सामान्य आचार संहिता के विकास जैसे मुद्दों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ। आठवें वार्ता चक्र (जिसे उरुग्वे चक्र भी कहा जाता है) की समाप्ति 15 दिसंबर, 1998 को हुई। इस वार्ता चक्र में विश्व व्यापार में 90 प्रतिशत भागीदारी रखने वाले 117 देश शामिल हुए। इतिहास का सबसे व्यापक समझौता (Final Act Embodying the Results of the Uruguay Round of Multilateral Trade Negotiations) 15अप्रैल, 1994 को 123 देशों के व्यापार मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षरित हुआ। यह समझौता विश्व व्यापार संगठन की आधारशिला बना। गैट औपचारिक रूप से 1995 के अंत में विघटित हो गया। मराकेश समझौते द्वारा गैट से जुड़े पक्षों को नये संगठन के मूल सदस्य के रूप में शामिल होने के लिए दिसंबर 1996 तक का समय दिया गया। डब्ल्यूटीओ द्वारा उरुग्वे चक्र के अंतिम अधिनियम में शामिल 30 समझौतों (जो विभिन्न विषयों से संबद्ध हैं) को प्रशासित किया जाता है। यह सदस्यों के बीच मौजूद व्यापार विवादों को निपटाने हेतु समाधान तंत्र उपलब्ध कराता है तथा आवश्यकता पड़ने पर विवादों का अधिनिर्णय करता है। संगठन द्वारा प्रशुल्कों व अन्य व्यापार बाधाओं के उन्मूलन या निम्नीकरण हेतु चलने वाली वार्ताओं के लिए एक मंच उपलब्ध कराया जाता है। डब्ल्यूटीओ का मुख्यालय जेनेवा में है। मार्च 2014 तक डब्ल्यूटीओ की सदस्य संख्या 159 है। वर्तमान में विश्व के लगभग 30 अन्य देश डब्ल्यूटीओ के सदस्य बनने की प्रक्रिया में हैं। 2 फरवरी, 2013 को लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक को डब्ल्यूटीओ का 159वां सदस्य बनाया गया। साओमा को 10 मई, 2012 को डब्ल्यूटीओ का 158वां सदस्य बनाया गया। प्रशांत महासागर स्थित छोटा द्विपीय राष्ट्र वनुआतु इस संगठन का 157वां सदस्य 24 अगस्त, 2012 को बनाया गया था। इसी प्रकार रूस को 22 अगस्त, 2012 को इसकी 156वीं सदस्यता प्रदान की गई थी। विश्व व्यापार संगठन गैट की तुलना में अधिक व्यापक एवं शक्तिशाली है। गैट General Agreement on Tariffs and Trade—GATT 1 जनवरी, 1948 को अस्तित्व में आये गैट (प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता) पर हस्ताक्षर करने वाले 23 देश उस तैयारी समिति के सदस्य थे, जिसकी स्थापना आर्थिक व सामाजिक परिषद द्वारा एक प्रस्तावित विश्व व्यापार संगठन को संविधान की रूपरेखा बनाने के लिए की गयी थी। हालांकि इस संविधान का अनुमोदन नहीं हो सका, किंतु गैट एक अंतरिम व्यवस्था के रूप में कार्य करता रहा। गैट द्वारा पारदर्शिता, बहुपक्षवाद तथा गैर-भेदभाव के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया। 107 राष्ट्रों द्वारा समर्पित गैट एक संगठन नहीं बल्कि एक संधि थी, जिसका सचिवालय जेनेवा में था। गैट से जुड़े अधिकारी वार्ताओं के दिशा-निर्देशन, समझौतों के निर्माण तथा उनके क्रियान्वयन की निगरानी में सहायता करते थे। संविदाबद्ध देशों के मध्य बहुपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से समय-समय पर नियमों को संशोधित किया जाता था। गैट के कुल आठ वार्ता चक्र सम्पन्न हुए- प्रथम चक्र 1947 में जेनेवा में सम्पन्न हुआ, जिसमें 28 मूल सदस्यों द्वारा पारस्परिक आधार पर 45000 उत्पादों, जिनकी कीमत 10 अरब डॉलर थी (वार्षिक व्यापार के आधार पर), के लिए प्रशुल्कों में कटौती की गयी। द्वितीय चक्र की वार्ता फ्रांस के ऐनेसी में 1949 में सम्पन्न हुई। इस वार्ता के बाद 10 अन्य देश गैट में शामिल हुए तथा 5000 उत्पादों पर सीमा शुल्क घटाया गया। तृतीय चक्र 1950-51 में ब्रिटेन के टॉरक्वे (Torquay) में सम्पन्न हुआ। इसमें शामिल 38 देश 8700 प्रशुल्कों में कमी करने पर राजी हुए। चतुर्थ चक्र जेनेवा में 1955-56 में आयोजित हुआ। 26 भागीदार राष्ट्रों ने 2.5 अरब व्यापार मूल्य के उत्पादों हेतु शुल्कों में कटौती करने का निर्णय किया। पंचम चक्र की वार्ता पुनः जेनेवा में 1960-62 के मध्य सम्पन्न हुई। इसमें 1958 में स्थापित यूरोपीय समुदाय के नवीन सामान्य बाह्य प्रशुल्कों पर चर्चा हुई तथा चार अरब कीमत के 4400 उत्पादों पर सीमा शुल्क घटाया गया। षष्टम चक्र, जिसे केनेडी चक्र भी कहा जाता है, जेनेवा में 1964-67 के मध्य सम्पन्न हुआ। विश्व व्यापार में 75 प्रतिशत भागीदारी रखने वाले 50 से अधिक देशों द्वारा 40 अरब मूल्य के औद्योगिक उत्पादों हेतु प्रशुल्कों में 50 प्रतिशत तक की कटौती करने का निर्णय किया गया। इन देशों ने अनाज व रासायनिक उत्पादों पर एक समझौता किया तथा एंटी-डंपिंग कार्यवाही के सम्बंध में एक संहिता पर हस्ताक्षर किये। सप्तम चक्र (टोक्यो चक्र) की वार्ताएं 1973 में टोक्यो से शुरू होकर 1979 में जेनेवा में सम्पन्न हुई। 99 देशों द्वारा 300 अरब डॉलर व्यापार मूल्य के उत्पादों पर 20 से 30 प्रतिशत तक सीमा शुल्क कटौती करने का फैसला किया गया। इन देशों ने संहिताओं के आधार पर निर्मित एक संशोधित व्यापार ढांचे के सम्बंध में विचार-विमर्श किया, जिसके अंतर्गत सब्सिडी, व्यापार की तकनीकी बाधाएं, सार्वजनिक प्रबंधन, सीमा शुल्क मूल्यांकन दरें तथा अन्य मुद्दे शामिल थे। अष्टम चक्र (उरुग्वे चक्र) की शुरूआत दिसंबर 1986 में पुंटा-डेल-एस्टे (Punta-del-Este) (उरुग्वे) में हुई तथा यह चक्र 1990 में ब्रुसेल्स में सम्पन्न हुआ। उरुग्वे चक्र की वार्ताएं असफल रहीं तथा इन्हें जेनेवा में 1991 से पुनः आरंभ किया गया, जो अंततः 15 दिसंबर, 1993 को समाप्त हुई। उरुग्वे चक्र में मूलतः 105 भागीदार थे किंतु वार्ता के अंत में 117 देश शामिल थे। उरुग्वे चक्र की वार्ताओं में कृषि, कपड़ा, सेवा व्यापार तथा बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे नये क्षेत्रों को शामिल किया गया। दिसंबर 1990 में अमेरिका एवं यूरोपीय समुदाय के मध्य उभरे कृषि सब्सिडी विवाद के कारण जब उरुग्वे वार्ता टूट गयी तब तत्कालीन गैट महानिदेशकऑर्थर डंकल द्वारा दिसंबर 1991 में प्रस्तावों की एक सूची प्रस्तुत की गयी, जिसे डंकल ड्राफ्ट या डंकल टेक्स्ट कहा गया। इन प्रस्तावों को थोड़े-से संशोधन के बाद गैट समझौते में शामिल कर लिया गया। अंतिम रूप से उरुग्वे समझौते पर अप्रैल 1994 में मराकेश (मोरक्को) में हस्ताक्षर किये गये। इसी समझौते के आधार पर विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई, जिसने गैट का स्थान ग्रहण किया। उरुग्वे चक्र समझौता 1. विर्निमित उत्पादों पर समझौताः कपड़ा क्षेत्र को छोड़कर अन्य विनिर्मित उत्पादों के सम्बंध में विकसित देश प्रशुल्कों में 40 प्रतिशत तक कटौती करने के लिए सहमत हुए। 2. कृषि समझौताः उरुग्वे चक्र में पहली बार कृषि क्षेत्र को गैट के अधीन लाया गया। कृषि उत्पादों के व्यापार को संवद्धित करने के लिए बंद कृषि बाजार वाले देश अपनी घरेलू खपत का तीन प्रतिशत तक का आयात करेंगे, जो छह वर्षों में 5 प्रतिशत तक पहुंच जायेगा। व्यापार को क्षति पहुंचाने वाली कृषि सब्सिडी में आगामी छह वर्षों के दौरान विकसित एवं विकासशील देशों द्वारा क्रमशः 20 और 13.3 प्रतिशत की कटौती की जायेगी। कोटा जैसी सभी गैर-प्रशुल्कीय बाधाएं प्रशुल्कों में बदल दी जायेंगी, जो विकसित एवं विकासशील देशों में क्रमशः 36 तथा 24 प्रतिशत तक घटाये जायेंगे। ये कटौतियां विकसित देशों में 6 वर्षों तथा विकासशील देशों में 10 वर्षों के भीतर लागू होंगी। प्रत्यक्ष निर्यात सब्सिडियों की कीमत एवं मात्रा में छह वर्षों के भीतर क्रमशः 36 एवं 21 प्रतिशत की कटौती होगी। इसके लिए आधार अवधि 1986-90 या 1991-92 (यदि इस अवधि में निर्यात उच्चतर रहे हो) होगी। गरीब देश कृषि सुधारों से-अछूते रहेंगे। 3. कपड़ा एवं परिधान व्यापार पर समझौता (बहुतंतु व्यवस्था): यह अंतरराष्ट्रीय कपड़ा व्यापार में बहुतंतु व्यवस्था की समाप्ति की मंजूरी देता है, जिसके तहत आयातक देशों (अधिकतर विकसित देश) द्वारा निर्यातक देशों पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगा दिये जाते हैं। बहुतंतु-व्यवस्था को 2005 तक समाप्त किया जाना था। गैट से जुड़े पक्षों की बाजार पहुंच सुनिश्चित करने, आयातों के प्रति भेदभाव समाप्त करने तथा व्यापार गतिविधियों हेतु निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय वातावरण के पक्ष में नीतियां लागू करने के लिये कपड़ा व परिधान समझौतों को स्वीकार करना आवश्यक है। 4. व्यापार सम्बद्ध निवेश मानदंडों पर समझौता (ट्रिम्स): ट्रिम्स समझौते द्वारा पंच निवेश मानदंडों की पहचान की गयी है, जो मात्रात्मक प्रतिबंधों के सामान्य उन्मूलन तथा समानतापूर्ण राष्ट्रीय व्यवहार से जुड़े गैट प्रावधानों से असंगत हैं। ट्रिम्स समझौते का उद्देश्य इस असंगति को समाप्त करना है। इन निवेश मानदंडों में विदेशी निवेशकों पर स्थानीय आगतों का उपयोग करने, आयात आगतों पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा को निर्यात आय द्वारा संतुलित करने, आयातित उत्पादों की आगतों के रूप में प्राप्त करने की एक शर्त के.रूप में निर्यातों के लिए उत्पादन करने तथा स्थानीय उत्पादन के एक विशिष्ट अनुपात से अधिक का नियति न करने जैसी प्रतिबद्धताएं लादना शामिल हैं। गैट प्रस्तावों से असंगत ट्रिम्स समझौतों को समाप्त करने हेतु अंतिम तिथि या अवधि विकसित देशों के लिए 1 जुलाई, 1997, विकाशील देशों के लिए वर्ष 2000 तथा अल्पविकसित देशों के लिए वर्ष 2002 तक निर्धारित की गयी। 1. व्यापार सम्बद्ध बौद्धिक संपदा अधिकारों पर समझौता (ट्रिप्स): इस समझौते का उद्देश्य प्रकाशनाधिकार, ट्रेडमार्क, ट्रेड सीक्रेट, आद्योगिक डिज़ाइन, एकीकृत सर्किट, भौगोलिक संकेत तथा पेटेंट के क्षेत्र में बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण एवं क्रियान्वयन हेतु विश्वव्यापी स्तर पर मौजूद विभिन्न मानकों को ध्यान में रखते हुए निष्पक्ष व्यापार को प्रोत्साहित करना है। ट्रिप्स समझौता एक परिषद की स्थापना का अनुमोदन करता है, जो समझौते के सहज संचालन एवं सदस्य देशों की नीतियों को समझौते के अनुरूप ढालने में सहायता कर सके। समझौते के क्रियान्वयन हेतु विकसित देशों, विकासशील देशों तथा अल्पविकसित देशों को क्रमशः 1, 5 और 11 वर्ष की संक्रमण अवधि प्रदान की गई है। ऐसे देश, जो कुछ सुनिश्चित क्षेत्रों में उत्पाद पेटेंट प्रदान नहीं करते, उन्हें उत्पाद पेटेंट प्रावधानों को 5 अतिरिक्त वर्षों तक टालने की छूट दी गयी है। फिर भी, इन देशों को 1 जनवरी, 1995 के बाद पेटेंट हासिल करने वाले उत्पादों के लिए विशेष विपणन अधिकार प्रदान करने होंगे। ट्रिप्स समझौते की शर्ते वर्तमान ही नहीं बल्कि नये बौद्धिक संपदा अधिकारों के लिए भी वैध मानी जायेंगी। सभी विवादों का समाधान एकीकृत गैट विवाद समाधान प्रक्रियाओं के तहत किया जा सकेगा। 1. सेवा व्यापार पर समझौताः सेवा व्यापार में बैंकिंग, बीमा, पर्यटन, सामुद्रिक यातायात, श्रम संचरण इत्यादि शामिल हैं। सेवा व्यापार को विनियमित करने के उद्देश्य से इसे चार आपूर्ति तरीकों में परिभाषित किया गया है- सीमा-पार संचरण के द्वारा आपूर्ति, उपभोक्ताओं का संचरण, वाणिज्यिक उपस्थिति तथा स्वाभाविक या मूलभूत व्यक्तियों की उपस्थिति। समझौते में तीन तत्व शामिल हैं-(i) सामान्य नियमों व अनुशासनों का एक ढांचा; (ii) निजी क्षेत्र से जुड़ी शर्तों पर विचार करने वाले अनुलग्नक, तथा; (iii) बाजार पहुंच प्रतिबद्धताओं की राष्ट्रीय अनुसूचियां। इस समझौते को गैट के मूल सिद्धांतों के अनुकूल बनाया गया है। 1. एंटी-डपिंग पर समझौता- इस समझौते द्वारा किसी उत्पाद की डपिंग (जो आयातक देश के घरेलू उद्योग को प्रभावित करती है) के निर्धारण तथा एंटी-डपिंग जांच गगतिविधि में शामिल नियमों के निर्माण हेतु मानदंड तय किये गये हैं। समझौता किसी भी एंटी-डंपिंग कार्यवाही हेतु वैध समय सीमा तय करता है।
डब्ल्यूटीओ का मुख्य उद्देश्य विश्व व्यापार का उदारीकरण है। सदस्य देशों से निष्पक्ष व्यापार विनियमों (पण्य वस्तुओं, सेवाओं तथ बौद्धिक संपदा से जुड़े) को लागू करने की अपेक्षा की जाती है। उरुग्वे चक्र सदस्यों को औद्योगिक उत्पादों पर प्रशुल्कों को घटाने, कुछ विशिष्ट वस्तुओं परआयत शुल्क समाप्त करने, व्यापार विकृत करने वाली आर्थिक रियायतें हटाने, वस्त्र एवं परिधान संबंधी कोटे को प्रगतिशील ढंग से समाप्त करने, आयात बाधाओं को उन्मूलित करने, बौद्धिक संपदा से जुड़े विनियमों को अंगीकार करने के लिए प्रतिबद्ध करता है। डब्ल्यूटीओ विकासशील देशों तथा संकम्रणशील अर्वव्यवस्थाओं में विकास एवं आर्थिक सुधारों को प्रोत्साहित करता है। संगठन प्रशिक्षण व सूचना-प्रौद्योगिकी से जुड़े कुछ तकनीकी सहायता कार्यक्रम भी संचालित करता है। यह पर्यावरण संरक्षता की जरूरत को भी मान्यता देता है तथा संवहनीय विकास को बढ़ावा देता है। विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तरीय बैठकें विश्व व्यापार संगठन की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक 9-13 दिसंबर, 1996 को सिंगापुर में आयोजित हुई, जिसमें उरुग्वे चक्र की प्रतिबद्धताओं के क्रियान्वयन की समीक्षा की गयी तथा मौजूदा वार्ताओं व कार्य योजनाओं पर पुनर्विचार किया गया। इस बैठक में विश्व व्यापार के विकास का परीक्षण किया गया और एक विकासमान विश्व अर्थव्यवस्था के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया गया। यह बैठक औद्योगिक देशों तथा विकासशील देशों के हितों के ध्रुवीकरण का प्रतीक थी। श्रम मानदंड, बहुपक्षीय निवेश समझौता, प्रतिस्मद्ध नीति तथा सरकारी प्रबंधन- ये चार प्रमुख विवादास्पद मुद्दे थे, जिन पर उक्त बैठक में विचार-विमर्श हुआ। बैठक में विकसित देशों द्वारा प्रस्तुत श्रम मानदंडों को व्यापार के साथ जोड़ने के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया गया। मंत्रिस्तरीय उद्घोषणा में आईएलओ तथा डब्ल्यूटीओ के बीच एक घनिष्ठ अंतर्क्रिया का आह्वान किया गया। निवेश व प्रतिस्पर्द्धा नीतियों के संबंध में विकासशील देशों को अपनी नीतियां ट्रिम्स (Trade RelatedInvestment Measures–TRIMs) समझौते के अनुरूप संशोधित करने के लिए सहमत होना पड़ा। सरकारी प्रबंधन के मुद्दे पर एक कार्य समूह गठित करने पर सहमति कायम हुई, जो सरकारी प्रबंधन गतिविधियों में पारदर्शिता पर अध्ययन करेगा। इस अध्ययन के आधार पर एक उपयुक्त समझौते की रचना की जायेगी। डब्ल्यूटीओ की दूसरी मंत्रिस्तरीय बैठक मई 1998 में जेनेवा में संपन्न हुई। इस बैठक में इस बात पर सहमति हुई कि संगठन को उन कठिनाइयों पर विचार करना चाहिए, जिनका सामना विकासशील देश मराकेश समझौते को लागू करने में कर रहे हैं। विकासशील देशों द्वारा पेटेंट, विदेशी निवेश मानदंड, व्यापार की तकनीकी बाधाएं तथा मुक्त वस्त्र व्यापार से जुड़े परिच्छेदों पर पुनर्विचार एवं पुनर्वार्ता की मांग उठायी गयी। व्यापार मंत्री इस बात पर सहमत हुए कि सदस्य देशों के अधिकारी उन समितियों की सिफारिशों का परीक्षण करेंगे, जो विदेशी निवेश एवं व्यापार तथा प्रतिस्पर्द्धा नीतियों एवं व्यापार के बीच मौजूद संबंधों और सरकारी प्रबंधन से जुड़े मुद्दों का अध्ययन कर रही हैं। यह संघर्ष का एक नया क्षेत्र था क्योंकि कई विकसित देश विदेशी निवेश, प्रतिस्पर्द्धा नीतियों एवं सरकारी प्रबंधन पर भूमंडलीय संधियां करने के इच्छुक थे, जबकि विकासशील देश इसका विरोध कर रहे थे। भारत सरकार ने देश के आयातों पर से सभी वस्तुओं से परिमाणात्मक प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया। विश्व व्यापार संगठन के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में भारत ने अमेरिका के साथ एक समझौता 29 दिसंबर, 1999 को किया। उल्लेखनीय है कि विश्व व्यापार संगठन की शर्तों को पूरा करने के लिए हाल ही के वर्षों में भारत सरकार ने लगभग सभी उत्पादों के आयात से परिमाणात्मक प्रतिबंध हटा दिए हैं। इनमें अधिकांशतः उपभोक्ता उत्पाद हैं। अमेरिका के साथ सम्पन्न इस समझौते के तहत् भारत को 714 उत्पादों के आयात पर से प्रतिबंध 1 अप्रैल, 2000 तक हटाने थे, जिसकी घोषणा भारत सरकार ने अपनी आयात-निर्यात नीति 2000-2001 के अंतर्गत कर दी थी, जबकि शेष 715 उत्पादों को 1 अप्रैल, 2001 से मात्रात्मक आयात नियंत्रण से मुक्त कर दिया है। नियंत्रण मुक्त किए गए 715 उत्पादों में से 300 उत्पादों को अति संवेदनशील बताया गया है जिनके आयात पर निगरानी रखने के लिए उच्चस्तरीय बार रूम का गठन भारत ने किया है। तृतीय मंत्रिस्तरीय बैठक 30 नवंबर से 3 दिसंबर, 1999 के दौरान अमेरिका के सिएटल में आयोजित हुई। इस बैठक में विकासशील देशों द्वारा एंटी-डंपिग, सब्सिडी, बौद्धिक संपदा, व्यापार संबंधी निवेश मानदंड इत्यादि से जुड़े असमान समझौतों से उत्पन्न अपनी चिंताओं को मुखर किया गया। कपड़ा व्यापार एवं कृषि से जुड़े समझौतों द्वारा विकासशील देशों को होने वाले अपेक्षित लाभों के सीमित रह जाने का प्रश्न भी उठाया गया। विकासशील देशों ने विश्व व्यापार संगठन समझौते में विशिष्ट एवं विभेदकारी दंडात्मक परिच्छेदों को लागू करने की अनिवार्यता पर जोर दिया तथा उन क्षेत्रों में जहां विकासशील देशों ने व्यापार प्रतिस्पर्द्धाशिीलता अर्जित करना मात्र आरंभ किया है, बढ़ती हुई एंटी-डंपिंग एवं एंटी-सब्सिडी जांचों से होने वाली कठिनाइयों को सामने रखा। इन देशों ने श्रम मानदंडों तथा पर्यावरण को व्यापार से जोड़ने वाले प्रस्तावों का पुरजोर विरोध किया। इस प्रकार, तृतीय मंत्रिस्तरीय बैठक के समक्ष रखे गये अधिकांश मुद्दों पर सहमति आधारित निर्णय नहीं लिया जा सका और मंत्रिस्तरीय बैठक के कार्य को विलंबित कर दिया गया।
हरबिन्सन ड्राफ्ट
हरबिन्सन ड्राफ्ट टोकियो में डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों के बीच विचार-विमर्श किया गया, जो इस संदर्भ में मापदंडों का एक समुच्चय है, कि डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों में से कौन उदारीकरण प्रतिबद्धताओं को पूरा कर सकता है। इस ड्राफ्ट का नाम इसके लेखक, स्टुअर्ट हरबिन्सन, कृषि पर डब्ल्यूटीओ समिति के अध्यक्ष के नाम पर रखा गया।हरबिन्सन ड्राफ्ट ने टैरिफ न्यूनीकरण की एक त्रिस्तरीय युक्ति को प्रस्तावित किया। ऊंचे टैरिफ स्तर पर, कटौती की औसत दर 60 प्रतिशत, और न्यूनतम 45 प्रतिशत करने की अनुशंसा की गई। सबसे निचले टैरिफ स्तर पर, औसत और न्यूनतम दर क्रमशः 40 और 25 प्रतिशत होगी। इसके क्रियान्वयन का समय पांच वर्ष होगा।
कृषि संबंधी टैरिफ पर, ड्राफ्ट वस्तुओं को तीन वर्गों में पृथक् करता है- 90 प्रतिशत से अधिक कर वाले 15 और 90 प्रतिशत के बीच वाले, और 15 प्रतिशत से नीचे। विकसित देशों की स्थिति में, उपरलिखित समूहों के लिए ड्राफ्ट प्रस्तावित करता है कि सामान्य औसत टैरिफ कमी दर क्रमशः 60, 50 और 40 प्रतिशत, और न्यूनतम टैरिफ कमी 45, 35, और 25 प्रतिशत होनी चाहिए।
ड्राफ्ट ने यह भी प्रस्तावित किया कि ब्लू बॉक्स भुगतान के रूप में घरेलू सहयोग या उत्पादन-सीमाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रत्यक्ष भुगतान, उदारीकृत तौर पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) द्वारा दोबारा छांटा, से पांच वर्षों में 50 प्रतिशत तक घट जाएगा। हरबिन्सन ड्राफ्ट में एस एवं डी उपचार प्रावधानों ने विकासशील देशों के लिए निम्न टैरिफ न्यूनीकरण शामिल हैं, जिसमें लम्बी हस्तांतरण समयावधि भी है।
अमेरिका एवं कैयर्न समूह के राष्ट्रों-सभी बड़े कृषि निर्यातकों-ने महसूस किया कि हरबिन्सन ड्राफ्ट ने दोहा राउण्ड के उद्देश्यों को प्राप्त करने में कार्य किया है, यद्यपि यह संतोषजनक नहीं रहा।
दूसरी ओर ईयू ने पाया कि ड्राफ्ट ने ऐसे निर्यातक देशों को अधिक लाभ पहुंचाया है जिन्होंने मौजूदा कृषि समझौता (एओए) के अंतर्गत व्यापार को नुकसान पहुंचाने वाली नीतियों को कम करने में कुछ खास कार्य नहीं किया।
यहां तक कि जापान जैसे देशों ने, जहां 1.8 प्रतिशत कृषिरत् समुदाय और 2 प्रतिशत कृषि के योगदान वाली अर्थव्यवस्था है, जो चावल आयात पर 490 प्रतिशत तक संरक्षणात्मक शुल्क प्रदान करता है, पाया कि ड्राफ्ट संतुलित नहीं है क्योंकि यह पक्षपाती तौर पर निर्यात सब्सिडी को नीचे करता है।
डब्ल्यूटीओ की चौथी मंत्रिस्तरीय बैठक 9-4 नवम्बर, 2001 को दोहा में आयोजित की गई। दोहा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन ने एक व्यापक कार्ययोजना स्वीकार की जिसे दोहा विकास एजेंडा कहा गया। इसके जरिए कुछ मुद्दों पर वार्ताएं शुरू की गई और कृषि तथा सेवाओं पर कुछ अतिरिक्त मापदण्ड और समय-सीमा तय की गई। डब्ल्यूटीओ के निर्णय के अनुरूप ये 1 जनवरी, 2000 से लागू हो गए। इसमें ट्रिप्स समझौता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कार्यान्वयन संबंधी मुद्दों और चिंताओं पर एक घोषणा जारी की गई।
10-14 सितंबर, 2003 को कैनकुन में डब्ल्यूटीओ की पांचवीं मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की गई। कैनकुन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य एक ऐसा मंच बनाना था जहां दोहा के समादेश वाले वर्क प्रोग्राम के अंतर्गत वार्ता की प्रगति की समीक्षा की जानी थी, आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जाने थे और सिंगापुर मुद्दों की स्थिति पर विशिष्ट निर्णय किए जाने थे। इस सम्मेलन ने विकसित देशों को यह साबित करने के पर्याप्त अवसर दिए कि वे दोहा कार्य योजना के विकास पक्ष पर गंभीरता से काम कर रहे हैं, लेकिन दो अति विवादस्पद मुद्दों यानी कृषि और सिंगापुर मुद्दों पर डब्ल्यूटीओ सदस्यों के महत्वाकांक्षा स्तर को लेकर गंभीर मतभेदों के चलते कैनकुन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन बेहद जटिल हो गया। 13 सितंबर, 2003 को इसमें जो मसौदा रखा गया वह असंतुलित था और विकासशील देशों के एकदम खिलाफ था। इसी कारण विकासशील देशों ने इसका जमकर विरोध किया और परिणामस्वरूप घोषणा-पत्र पारित नहीं हो सका।
विश्व व्यापार संगठन के 13-18 दिसंबर, 2005 को हांगकांग में संपन्न छठे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में विकासशील देशों ने ग्रांड एलायंस (जी-110) बनाकर एकजुटता प्रदर्शित की जिससे विकसित देशों को कृषि सब्सिडी समाप्त करने को सहमत होना पड़ा। साथ ही औद्योगिक उत्पादों पर प्रशुल्क से जुड़े मुद्दों पर भी विकासशील देशों को कुछ राहत प्रदान करने की विकसित देश सहमत हुए। इस सम्मेलन में स्वीकार किए गए हांगकांग घोषणा-पत्र में विकसित देश अपनी कृषि निर्यात सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से 2013 तक पूर्णतः समाप्त करने की सहमत हुए। कृषि बाजार समझौते में विकासशील देशों के लिए पर्याप्त ढील की व्यवस्था की गई। इसमें यह सुनिश्चित किया गया कि भारत जैसे विकासशील देशों को कृषि क्षेत्र की योजनाओं पर किए जाने वाले शासकीय व्यय में कटौती की कोई आवश्यकता नहीं होगी। कृषि क्षेत्र के विकास से संबंधित सभी योजनाओं को डब्ल्यूटीओ के नियमों की परिधि से बाहर रखा गया। विकासशील देशों के औद्योगिक आयातों पर प्रशुल्क कटौती (नॉन एग्रीकल्चरल मार्केट एक्सेस-नामा) के संबंध में यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तुत स्विस फॉर्मूले को अजेंटीना, ब्राजील व भारत द्वारा लाए गए संशोधनों के साथ ही हांगकांग घोषणा-पत्र में स्वीकार किया गया।
विश्व व्यापार संगठन की सातवीं मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन जिनेवा में 30 नवम्बर, 3 दिसंबर, 2009 के बीच आयोजित किया गया। यद्यपि बैठक समझौता करने के उद्देश्य से नहीं बुलाई गई थी तथापि इसमें समझौते व बातचीत की दिशा का अनुमान लगाने में सहायता मिली। भारत तथा इसके सहयोगी देशों ने विकास आयाम के प्रति, बहुपक्षीय प्रक्रियाओं के महत्व के प्रति, तथा अपने-अपने देशों में लोगों की (खासतौर पर निर्धनों व किसानों की) आजीविका सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
विश्व व्यापार संगठन की आठवीं मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन भी जिनेवा में 15 दिसंबर-17 दिसम्बर, 2011 के मध्य किया गया। यह बैठक भी असफल रही तथा दोहा दौर की जारी रखने की सहमति के अतिरिक्त, और कोई समझौता नहीं हो पाया। विगत् मंत्रिस्तरीय बैठकों की अपेक्षा इस बैठक में माहौल अपेक्षाकृत निराशाजनक था और बहुत ज्यादा आशाएं नहीं थी। परंतु इस बैठक में अमेरिका एवं चीन के बीच और अमेरिका तथा कपास कॉटन-4 देशों के बीच (कॉटन-4 देश, कपास के प्रमुख चार अफ्रीकी उत्पादक देश हैं- बेनिन, बुर्कीना फासो, चाड और माली) बड़े विवाद उठ खड़े हुए। कॉटन-4 देश, अमेरिका तथा यूरोपीय यूनियन द्वारा अपने कपास उत्पादकों को भारी अर्थसहायता देने से काफी परेशानी में हैं। वास्तव में देखा जाए तो आठवीं मंत्रीस्तरीय बैठक की एकमात्र उपलब्धि चार देशों-रूस, समोआ, वनातु एवं मोन्टेनेगरो, को डब्ल्यूटीओ सदस्य बनाना था ।
डब्ल्यूटीओ के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन सम्मेलन वर्ष स्थान पहला 9-13 दिसंबर, 1996 सिंगापुर दूसरा 18-20 मई, 1998 जेनेवा तीसरा 30 नवम्बर-3 दिसंबर 1999 सिएटल चौथा 9-14 नवम्बर, 2001 दोहा (कतर) पांचवां 10-14 सितम्बर, 2008 कैनकुल (मैक्सिको) छठवां 13-18 दिसंबर, 2005 हांगकांग (चीन) सातवां 30 नवम्बर-2 दिसंबर, 2009 जेनेवा आंठवा 15-17 दिसंबर, 2011 जेनेवा नौवां 3-6 दिसंबर, 2013 बाली (इण्डोनेशिया) दसवां 15-18 दिसम्बर 2015 नैरोबी (कीनिया)
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का नौवां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन इंडोनेशिया में बाली में 3-7 दिसंबर, 2013 को संपन्न हुआ। सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व तत्कालीन वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने किया। सम्मेलन का उद्घाटन इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुसिलो बाम्बांग युधोयोनी ने 3 दिसंबर, 2013 को किया। इस सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अनेक महत्वपूर्ण फैसलों वाले बाली घोषणा-पत्र को सर्वसम्मति से मंजूरी प्रदान की गई। खाद्य सुरक्षा व व्यापार सरलीकरण के समझौतों से युक्त इस पैकेज में मुख्य खाद्य फसलों पर सब्सिडी पर सहमति भी शामिल है। व्यापार सरलीकरण का केंद्र बिंदु सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाते हुए अंतरराष्ट्रीय व्यापार की बाधाओं को दूर करना है।
सम्मेलन में सबसे अधिक विवादस्पद मुद्दा कृषि उत्पादों में दी जाने वाली सब्सिडी को समाप्त करने का था। विश्व व्यापार संगठन का मानना है कि कृषि उत्पादों में दी जाने वाली सब्सिडी इन उत्पादों के विश्व व्यापार में एक बाधा है।
सस्ती औषधियों पर डब्ल्यूटीओ डील 30 अगस्त, 2003 को डब्ल्यूटीओ ने एड्स, मलेरिया एवं टी.बी. जैसी घातक बीमारियों के पेटेंट औषधियों के सस्ते उत्पादों को गरीब देशों को आयात करने की अनुमति के लिए डील का अनुमोदन किया।नए समझौते के अंतर्गत, गरीब देशों को डब्ल्यूटीओ के बौद्धिक संपदा नियमों के तहत् घातक रोगों से निपटने के लिए संपूर्ण अनुमति होगी। डब्ल्यूटीओ के नियमों के अंतर्गत, सार्वजनिक स्वास्थ्य के संकट से जूझने वाले देशों को विभिन्न औषधियों के पेटेंट को लांघने का अधिकार प्राप्त हो जाता है और वे सस्ते जेनरिक पूर्तिकर्ताओं से औषधि मंगा सकते हैं। अमेरिकी फार्मास्युटिकल अनुसंधान कपनी ने पेटेंट अधिकारों पर नियंत्रण खोने के डर से इस समझौते का विरोध किया। वे इस बात को लेकर चिंतित थे कि जेनरिक दवाइयों के आयात तस्करी द्वारा वापिस धनी देशों में लाई जा सकेंगी।
विभिन्न रंगों के बॉक्स
डब्ल्यूटीओ तीन बॉक्स में कृषि को घरेलू समर्थन देता है। वृहद् तौर पर कहा जाए तो, अम्बर बॉक्स में सब्सिडी व्यापार को नुकसान पहुंचाने के लिए दी जाती है जिसे कम किया जाना चाहिए; ग्रीन बॉक्स में ऐसी सब्सिडी होती है, जो व्यापार को न्यूनतम नुकसान पहुंचाती है और बिना सीमा के जारी रहती है; और ब्लू बॉक्स सामान्य नियमों से छूट प्रदान करता है कि उत्पादन से जुड़ी सभी प्रकार की सब्सिडी को कम किया जाना चाहिए। कुछ देश ब्लू बॉक्स को समाप्त करना चाहते है। जबकि ग्रीन बॉक्स को व्यापार को नुकसान पहुँचाने वाला नहीं मन जाता, ब्लू बॉक्स मुक्त बाजार नियमों का उल्लंघन करने वाला समझा जाता है। ईयू ने अम्बेर बॉक्स में अतिरिक्त कमी करने पर समझौता करने का प्रस्ताव रखा है यदि ब्लू बॉक्स और ग्रीन बॉक्स को बनाए रखा जाता है।
कृषि उत्पादों पर दी जाने वाली सब्सिडी का मुद्दा इसलिए अधिक संवेदनशील हो गया कि 2013 में ही भारत ने खाद्य सुरक्षा कानून पारित किया है, जिसके अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है। कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्नों को बाजार से खरीदकर सस्ते दामों पर गरीब जनता को उपलब्ध कराएगी। इसका परिणाम यह होगा कि भारत में खाद्यान्नों की कीमतें सरकारी सहायता के कारण बढ़ नहीं पाएंगी। यह सहायता विश्व व्यापार संगठन के कृषि समझौते की दस प्रतिशत सब्सिडी सीमा से अधिक होगी। अतः भारत तथा अन्य विकासशील देशों ने यह मांग की कि खाद्यान्न सुरक्षा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को या तो विश्व व्यापार नियमों में छूट दी जाए अथवा कृषि समझौते में निहित 10 प्रतिशत की सीमा को बढ़ाया जाए या कृषि उत्पादों के मूल्य का आकलन 1986-88 की कीमतों के आधार पर किया जाए। सम्मेलन में गतिरोध्रु दूर करने के लिए वार्ताओं के दौरान विकसित देशों ने पीस क्लाज के रूप में एक नया प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे भारत व अन्य देशों ने स्वीकार नहीं किया। पीस क्लाज से तात्पर्य एक ऐसे उपाय से है जिसके अंतर्गत किसी विवादस्पद प्रावधान को कुछ समय तक लागू करने से रोक दिया जाता है जिससे उस पर नए विवाद पैदा नहीं होते। इन वार्ताओं में पीस क्लाज के अंतर्गत यह प्रस्ताव रखा था कि तीन साल तक खाद्य सुरक्षा सब्सिडी को छूट प्राप्त होगी तथा इस संबंध में प्रभावित विकसित देशों द्वारा विश्व व्यापार संगठन में कोई विवाद नहीं उठाया जाएगा। आखिर में भारत के रुख को देखते हुए विकसित देशों ने समझौतावादी रुख अपनाया तथा 7 दिसंबर, 2013 को तीनों प्रस्तावित मुद्दों पर विकसित व विकासशील देशों के मध्य आम सहमति बन सकी। बाली वार्ताओं के अंत में जो व्यापार समझौता संपन्न हुआ, उनमें निम्नलिखित बातें शामिल की गई- खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर यह निर्णय लिया गया कि जब तक विश्व व्यापार संगठन कीवार्ताओं के अंतर्गत इस सवाल का कोई समाधान नहीं निकल लिया जाता, तब तक भारत सहित अन्य विकासशील देशों को खाद्य सुरक्षा सब्सिडी देने की छूट प्राप्त रहेगी। इसे कृषि समझौते के सब्सिडी संबंधी नियमों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। यह अवधि तीन वर्ष से अधिक भी हो सकती है। इसी अर्थ में यह पीस क्लाज के प्रस्ताव से भिन्न है। यह भी सहमति बनी है कि इस मुद्दे का समाधान 2017 में प्रस्तावित 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक तक कर लिया जाएगा। सम्मेलन में व्यापार संवर्द्धन के उपायों पर भी समझौता किया गया है। इन उपायों के अंतर्गत सदस्य देशों द्वारा आयातित वस्तुओं की गुणवत्ता की जांच हेतु एक मानक प्रक्रिया व मापदण्डों को लागू किया जाएगा। आयात प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाएगा तथा आयात को सुगम बनाने के लिए कंटेनर डिपो, कंप्यूट नेटवर्क तथा अन्य दांचागत सुविधाओं का विकास किया जाएगा। अल्प विकसित देशों में इन सुविधाओं के विकास के लिए विकसित देशों द्वारा तकनीकी व वित्तीय सहायता भी उपलब्ध करायी जाएगी। बाली वार्ताओं का तीसरा महत्वपूर्ण मुद्दा गरीब देशों को व्यापार संबंधी छूट प्रदान करना था। इसका उद्देश्य व्यापार के माध्यम से गरीब देशों के विकास को बढ़ाना है। यह दोहा वाताओं के विकास एजेंडे का अंग है।
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 48 देशों की अल्प विकसित देशों के रूप में मान्यता प्रदान की है।
बाली व्यापार वार्ताओं में संपन्न उक्त व्यापार समझौते विश्व व्यापार संगठन के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इस समझौते में विश्व व्यापार संगठन के महासचिव राबर्टी अलेवेदो की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित समझौते को भारत तथा विकासशील देशों की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है।
डब्ल्यूटीओ के प्रमुख अंगों में मंत्रिस्तरीय परिषद, सामान्य परिषद, व्यापार नीति समीक्षा निकाय, विवाद समाधान निकाय, अपीलीय निकाय, वस्तु व्यापार परिषद्, सेवा व्यापार परिषद्, ट्रिप्स से जुड़ी परिषद तथा सचिवालय सम्मिलित हैं।
विश्व व्यापार संगठन के कार्य संचालन हेतु अनेक महत्वपूर्ण समितियां हैं। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दो समितियां हैं-
1. विवाद निवारण समिति, तथा
2. व्यापार नीति समीक्षा समिति।
विवाद निवारण समिति का कार्य विभिन्न राष्ट्रों के विरुद्ध विश्व व्यापार संगठन के व्यापार नियमों के उल्लंघन की शिकायतों पर विचार करना है। सभी सदस्य देश इस समिति के सदस्य होते हैं, किंतु किसी शिकायत विशेष के गहन अध्ययन के लिए यह विशेषज्ञों की समिति गठित कर सकती है। इस समिति की बैठक माह में दो बार होती है।
व्यापार नीति समीक्षा समिति का कार्य सदस्य राष्ट्रों की व्यापार नीति की समीक्षा करना है। सभी बड़ी व्यापारिक शक्तियों की व्यापार नीति की दो वर्ष में एक बार समीक्षा की जाती है। संगठन के सभी सदस्य राष्ट्र इस समिति के सदस्य होते हैं। इसके अतिरिक्त विश्व व्यापार संगठन की अन्य महत्वपूर्ण समितियां- वस्तु व्यापार परिषद्, सेवा व्यापार परिषद्, तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं पर परिषद्-भी हैं।
मंत्रिस्तरीय परिषद संगठन का सर्वोच्च अंग है, जिसमें सभी सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व होता है। परिषद बहुपक्षीय व्यापार समझौतों से जुड़े मामलों पर निर्णय करने के लिए दो वर्ष में कम-से-कम एक बार अपनी बैठक करती है।
सामान्य परिषद सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधियों से मिलकर संघटित होती है। यह संगठन के दैनंदिन कार्यों की संचालित करती है। यह सभी समझौतों के क्रियान्वयन पर निगरानी रखती है तथा मंत्रिस्तरीय परिषद की अपनी रिपोर्ट प्रेषित करती है। विवाद समाधान निकाय तथा व्यापार नीति समीक्षा निकाय सामान्य परिषद के ही विशिष्ट भाग हैं। विवाद समाधान निकाय (डीएसबी) देशों के मध्य विवादों की सुनवाई करता है। विवाद पैनल द्वारा सुनवाई किये जाने से पूर्व 60 दिनों की परामर्श अवधि का प्रावधान है। डीएसबी के निर्णय के विरुद्ध अपील की सुनवाई सात सदस्यीय अपीलीय निकाय द्वारा की जाती है, जो वर्ष में दो महीने कार्य करता है। अपीलीय निकाय के निर्णय बाध्यकारी होते हैं तथा इन्हें अस्वीकार करने पर व्यापार प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं। सामान्य परिषद के प्रतिनिधि तीन अन्य विभागीय परिषदों की जिम्मेदारी भी उठाते हैं। ट्रिप्स, सेवा व्यापार तथा वस्तु व्यापार से संबद्ध ये परिषदें सभी सदस्य देशों की भागीदारी के लिए खुली हैं तथा इनकी बैठक आवश्यकतानुसार बुलाई जा सकती है। सचिवालय का प्रधान महानिदेशक होता है, जिसका कार्यकाल चार वर्ष होता है। डब्ल्यूटीओ भूमंडलीय नीति-निर्माण में व्यापक संगति लाने के लिए विश्व बैंक, आईएमएफ तथा अन्य बहुपक्षीय संगठनों के साथ सहयोग करता है। शोध, व्यापार एवं तकनीकी मामलों में यह अंकटाड (UNCTAD) के साथ भी सहयोग करता है।
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