देव, बिहार
देव Deo / Dev | |
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देव का सूर्य मन्दिर | |
निर्देशांक: 24°39′25″N 84°26′10″E / 24.657°N 84.436°Eनिर्देशांक: 24°39′25″N 84°26′10″E / 24.657°N 84.436°E | |
देश | भारत |
राज्य | बिहार |
ज़िला | औरंगाबाद ज़िला |
ऊँचाई | 108 मी (354 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 17,162 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 824202 |
दूरभाष कोड | 06186 |
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोड | IN-BR |
वाहन पंजीकरण | BR-26 |
लिंगानुपात | 1000:910 ♂/♀ |
वेबसाइट | deoaurangabad |
देव (Deo) भारत के बिहार राज्य के मगध मंडल के औरंगाबाद ज़िले में स्थित एक नगर है। यह अपने देव सूर्य मंदिर (या देवार्क मंदिर) के लिये प्रसिद्ध है। देव सूर्य मंदिर के कारण यह औरंगाबाद से भी अधिक प्रसिद्ध है। यहाँ छठ पर्व पर लाखों की संख्या में लोग आते हैं।[1][2]
मान्यता
[संपादित करें]मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।[3]
पर्यटन
[संपादित करें]देव सूर्य मंदिर
[संपादित करें]देव सूर्य मंदिर यह देव, बिहार में स्थित सूर्य मंदिर है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख ना होकर पश्चिमाभिमुख है। यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए प्रख्यात है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। यहाँ छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है। [4]
देव राजा किला
[संपादित करें]राजा किला देव ये राजपूत परिवार के सिसोदिया वंस से जुड़ी हुई है। ये वर्णन इतिहास में मिलती है कि देव किला का सबसे अंतिम राजा जगनाथ जी थे जो काफी लंबे समय तक अपने राज्य में शांति और वह प्रजा लोगो के साथ शांति के साथ राज्य का जिम्मा अपने हाथ में लेकर शासन किया. उनका कोई भी अपना संतान नहीं था। उनके देहांत के बाद बारी आई कि अब राज्य का जिम्मा कौन संभाले तो ये जिम्मेदारी उनकी बीवी को लेनी थी. उनकी दो पत्नियां थी जिसमे से राज्य का जिम्मा उनकी छोटी पत्नी ने संभाली [5]
उनकी छोटी पत्नी ने अपने राज्य पर देश को स्वत्रंत होने 1947 तक किया। उसके उपरान्त छोटी रानी गया में देव कोठी में अपनी बहन के दो पुत्री के साथ अपना जीवन निर्वाह किया। उस समय मैनेजर मुनेश्वर सिंह ही देव राज्य का देखभाल करते थे।रानी का निधन 1975 में हुआ।उसके बाद देव राज्य विरासत की देखभाल रानी के बड़ी भतीजी के बड़े पुत्र धनंजय कुमार सिंह एवम् छोटी भतीजी के पुत्र विजय कुमार सिंह कर रहे हैं।
पाताल गंगा
[संपादित करें]देव से पश्चिम दो किलोमीटर दूरी पर पतालगंगा नामक एक सिध तीर्थ स्थान हैा [4]
देव रानी तालाब
[संपादित करें]देव के पश्चिम में जहाँ मेला लगता है, वहीं रानी तालाब है। राजा साहब देव ने अपनी रानी की स्म़ति में इस तालाब का निर्माण कराया थाा। सुन्दरता में यह सूर्य कुण्ड से कम नहीं है। रानी, राजा साहब के साथ यहाँ जल बिहार करती थी। राजा साहब घोड़ा दौड़ाते हुये इस तालाब में उतर जाते थे। आज इस तालाब का महत्व कम गया है।[4]
देव छठ मेला
[संपादित करें]यहाँ वर्ष में दो बार चैत्र एवं कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मेला लगता है। इस समय लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से आकर सूर्य को दण्डवत प्रणाम करते हैं अर्ध्य देते हैं और इष्ट सिधि प्राप्त करते हैं। श्रधालु गण सूर्य कुण्ड में स्नानकर कर सूर्य मंदिर का सम्पूर्णरास्ते भर दण्डवत प्रणाम करते हैं। इस प्रकार दण्डवत करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है एवं पाप से मुक्ति होती है। वर्तमान समय में छठ पर्व एवं प्रति रविवार को असंख्य श्रधालु भक्तगण देव आकर सूर्य कुण्ड में स्नान के बाद भगवान भास्कर का पूजन करते हैं। सूर्य मंदिर के पूजारीगण भी स्वयं स्नान संध्या वंदनपूर्वक रक्त वस्त्र, रक्त चंदन आदि धारण कर वैदिक विधि से भगवान भास्कर की पूजा करते हैं।[4]
सूर्य महोत्सव
[संपादित करें]देव सूर्य महोत्सव 1998 से लागातार प्रशासनिक स्तर पर दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव आयोजन किया जाता है जिसमें हर वर्ष सूर्य देव की जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। यह बसंत पंचमी के दूसरे दिन मतलब सप्तमी को पूरे शहर वासी नमक को त्याग कर बड़े ही धूम धाम से मानते हैं। इस दिन के अवसर पर कई तरह की कार्यक्रम भी भी कराया जाता है। बसंत सप्तमी के दिन में देव के कुंड मतलब ब्रह्मकुंड में भव्य गंगा आरती भी होती है जिसे देखने देश के कोने कोने से आते है इसी दिन देव शहर वर्ष की पहली दिवाली मानती है। और रात्रि में रात्रि में भोजीवुड, बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक के प्रमुख कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है और पूरा देव झूम उठता है। [6] [7]
देव नाम को लेकर मान्यताएं
[संपादित करें]- यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
- मान्यता है कि सतयुग में इक्ष्वाकु के पुत्र व अयोध्या के निर्वासित राजा ऐल एक बार देवारण्य (देव इलाके के जंगलों में) में शिकार खेलने गए थे। वे कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। शिकार खेलने पहुंचे राजा ने जब यहां के एक पुराने पोखर के जल से प्यास बुझायी और स्नान किया, तो उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। वे इस चमत्कार पर हैरान थे। बाद में उन्होंने स्वप्न देखा कि त्रिदेव रूप आदित्य उसी पुराने पोखरे में हैं, जिसके पानी से उनका कुष्ठ रोग ठीक हुआ था। इसके बाद राजा ऐल ने देव में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। उसी पोखर में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु व शिव की मूर्तियां मिलीं, जिन्हें राजा ने मंदिर में स्थान देते हुए त्रिदेव स्वरूप आदित्य भगवान को स्थापित कर दिया। इसके बाद वहां भगवान सूर्य की पूजा शुरू हो गयी, जो कालांतर में छठ के रूप में विस्तार पाया।
- देव के बारे में एक अन्य लोककथा भी है। एक बार भगवान शिव के भक्त माली व सोमाली सूर्यलोक जा रहे थे। यह बात सूर्य को रास नहीं आयी। उन्होंने दोनों शिवभक्तों को जलाना शुरू कर दिया। अपनी अवस्था खराब होते देख माली व सोमाली ने भगवान शिव से बचाने की अपील की। फिर, शिव ने सूर्य को मार गिराया। सूर्य तीन टुकड़ों में पृथ्वी पर गिरे। कहते हैं कि जहां-जहां सूर्य के टुकड़े गिरे, उन्हें देवार्क, लोलार्क (काशी के पास) और कोणार्क के नाम से जाना जाता था। यहां तीन सूर्य मेदिर बने। देव का सूर्य मंदिर उन्हीं में से एक है।
- एक अनुश्रुति यह भी है कि इस जगह का नाम कभी यहां के राजा रहे वृषपर्वा के पुरोहित शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के नाम पर देव पड़ा था।[3]
जनसांख्यिकी
[संपादित करें]2011 की जनगणना के अनुसार, देव की आबादी 171620 थी। पुरुषों में 57% आबादी और 40% महिलाएं हैं। देव की औसत साक्षरता दर 91.3% है, जो राष्ट्रीय औसत 60.5% से अधिक है: पुरुष साक्षरता 85% है, और महिला साक्षरता 68% है। देव में, 21% आबादी 6 साल से कम आयु के हैं।
परिवहन
[संपादित करें]स्थानीय परिवहन
[संपादित करें]सिटी बस, ऑटो-रिक्शा, टैक्सी, और साइकिल रिक्शा आम तौर पर स्थानीय परिवहन के लिए यहां जाती है।
रोडवेज
[संपादित करें]नियमित बस सेवा देव से औरंगाबाद, टाटा, पटना, पुरी, रांची, कोलकाता, दिल्ली, धनबाद और गया है।
रेलवे
[संपादित करें]देव सड़क और ट्रेन से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अनुग्रह नारायण रोड (एयूबीआर) देव शहर से लगभग 21 किमी दूर निकटतम रेलवे स्टेशन है। प्रमुख राजमार्ग एनएच -2 और एनएच -13 9 एनएच -2 सीधे दिल्ली और कोलकाता शहर और एनएच -13 9 को जोड़ते हैं जो मुख्य रूप से पटना को दुडनगर के माध्यम से जोड़ता है। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, लखनऊ, भुवनेश्वर, अहमदाबाद, जयपुर के लिए सीधी ट्रेन है। और पटना शहर। निकटतम हवाई अड्डा गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो शहर के केंद्र से 80 किमी दूर है। मुख्य सुपरफास्ट ट्रेन अनुग्रह नारायण रोड स्टेशन पर रुकती है:
- पुरुषोत्तम एक्सप्रेस
- पूरवा एक्सप्रेस
- मुंबई मेल
- महाबोधी एक्सप्रेस
- जोधपुर एक्सप्रेस
- गया गैरीब्रथ एक्सप्रेस
विकास
[संपादित करें]- मेडिकल कॉलेज - सीओ अरुण कुमार गुप्ता ने देव में अपेक्षित भूमि की जानकारी देते हुए बताया कि मेडिकल कॉलेज के लिए 20 एकड़ भूमि यदि चयनित किया जाता है तो देव में मेडिकल कॉलेज के निर्माण का रास्ता साफ हो जाएगा। देव में मेडिकल कॉलेज का निर्माण होने से इस क्षेत्र का विकास काफी तेजी से होगा [8][9]
- रिमेन सोलूशन्स - यह एक आईटी कंपनी है जिसका पैरेंट रिमेन प्राइवेट लिमिटेड तथा टेक्स्टलो प्राइवेट लिमिटेड सहायक कंपनियाँ है। रिमेन सोलूशन्स मुख्य रूप से आई.टी बेस्ड कंपनी है।
राजनीति
[संपादित करें]देव और सभी शहरों के तरह यह भी राजनीती से नहीं बच सका यह भी राजनीती की वजह से बहुत कुछ लुटा चुकी है २००९ के पहले यहाँ एक विधान सभा की सीट थी जिसे २००९ की राजनीती में यह नाम बदलकर कुटुम्बा विधान सभा के नाम कर दिया। तब से आज तक इस शहर में कोई भी राजनीती तो नहीं हुई पर सीट न होने की वजह से जो इस शहर का विकाश होता वह भी बंद घड़ी की सूई के सामान बंद हो गयी और यहाँ इतना कुछ होते हुए भी कुछ नहीं जैसा लोगो को लगता है। [10]
औरंगाबाद का नाम देव में बदलने के प्रयास
[संपादित करें]यहाँ पिछले कई वर्षों से औरंगाबाद का नाम बदलकर 'देव' करने का आन्दोलन चल रहा है जिससे जिला का नाम दुनिया के मंच पर दिखने लगे और औरंगाबाद और देव का विकास और तेजी से हो। [11]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect Archived 2017-01-18 at the वेबैक मशीन," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
- ↑ "Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810
- ↑ अ आ "विश्वकर्मा ने बनाया था यह सूर्य मंदिर, पूजा से पूरी होतीं मनोकामनाएं". Dainik Jagran. मूल से 28 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ अ आ इ ई "Deosuryamandir.org". deosuryamandir.org. मूल से 20 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 नवंबर 2018.
- ↑ "दो दिवसीय सूर्य महोत्सव 24 से". Dainik Jagran. मूल से 29 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "औरंगाबाद में दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव का हुआ आगाज". Dainik Bhaskar. 27 जनवरी 2015. मूल से 29 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 सितंबर 2019.
- ↑ http://web.archive.org/save/https://www.bhaskar.com/bihar/aurangabad/news/inspection-of-land-for-medical-college-062547-5566704.html?ref1=feedback&utm_expid=.YYfY3_SZRPiFZGHcA1W9Bw.1&utm_referrer=https%3A%2F%2Frp.liu233w.com%3A443%2Fhttps%2Fwww.bhaskar.com%2Fbihar%2Faurangabad%2Fnews%2Fram-temple-and-chandrayaan-two-will-be-seen-in-the-pandal-062607-5566692.html%3Fref1%3Dfeedback
- ↑ | Title - औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र : बहुत कुछ बदल गया औरंगाबाद क्षेत्र का, Start- देव विधानसभा
- ↑ https://www.bhaskar.com/bihar/aurangabad/news/aurangabad-will-be-named-as-goddess-development-center-for-the-name-of-aurangabad-021053-3275510.html