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"बर्मी युद्ध": अवतरणों में अंतर

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[[बर्मा]] पर अधिकार स्थापित करने के लिए अंग्रेजों ने तीन [[युद्ध]] किए जिन्हें '''बर्मी युद्ध'' के नाम से जाना जाता है।


[[चित्र:Third Anglo-Burmese War A.jpg|thumb|बर्मी युद्ध। ]]
==प्रथम बर्मी युद्ध (1824 सें 1826)==
[[म्यान्मार|बर्मा]] पर अधिकार स्थापित करने के लिए अंग्रेजों ने तीन [[युद्ध]] किए जिन्हें '''बर्मी युद्ध''' के नाम से जाना जाता है।
पहला युद्ध लार्ड एमहस्र्ट के शासनकाल में हुआ।

===कारण===
== प्रथम बर्मी युद्ध (1823 सें 1828 ) ==
पहला युद्ध लार्ड एमहर्स्ट (Lord Amherst) के शासनकाल में हुआ।

=== कारण ===
इसके प्रमुख कारण थे
इसके प्रमुख कारण थे
*[[बंगाल]] की पूर्वी सीमा पर बर्मी साम्राज्य विस्तार,
* [[बंगाल]] की पूर्वी सीमा पर बर्मी साम्राज्य विस्तार,
*प्रवासियों द्वारा [[अराकान]] में लूट-मार तथा आसाम और मणिपुर वापस लेने के प्रयत्न,
* प्रवासियों द्वारा [[रखाइन राज्य|अराकान]] में लूट-मार तथा [[असम|आसाम]] और [[मणिपुर]] वापस लेने के प्रयत्न,
*सीमा संबंधी झगड़े, तथा
* सीमा संबंधी झगड़े, तथा
*कचार में बर्मी सेना का प्रवेश।
* [[कचार]] में बर्मी सेना का प्रवेश।


युद्ध की घोषणा करने में बंगाल की सरकार के उद्देश्य थे :-
युद्ध की घोषणा करने में बंगाल की सरकार के उद्देश्य थे :-
*(1) बर्मा के भय से बंगाल को सुरक्षित करना
* (1) बर्मा के भय से बंगाल को सुरक्षित करना
*(2) बर्मा की शक्ति क्षीण करके उसे नीचा दिखाना,
* (2) बर्मा की शक्ति क्षीण करके उसे नीचा दिखाना,
*(3) व्यापक व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करना तथा
* (3) व्यापक व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करना तथा
*(4) ब्रिटिश साम्राज्य का प्रसार करना।
* (4) [[ब्रिटिश साम्राज्य]] का प्रसार करना।


यह युद्ध 1824 सें 1826 तक चला। तीन सेनाएँ स्थल मार्ग से आसाम, कचार, मणिपुर तथा अराकन की ओर और एक जलमार्गं द्वारा रंगून की ओर भेजी गई।
यह युद्ध 1824 सें 1826 तक चला। तीन सेनाएँ स्थल मार्ग से आसाम, कचार, मणिपुर तथा अराकन की ओर और एक जलमार्गं द्वारा रंगून की ओर भेजी गई।


प्रारंभ में अराकान को छोड़कर सभी क्षेत्रों में कुछ सफलता मिली, पर वर्षा ॠतु में अनेक कठिनाइयों तथा असफलताओं का सामना करना पड़ा। 1825 के अंत तक आसाम, मणिपुर तथा अराकान से बर्मी सेनाएँ खदेड़ ही गईं, पीगू और तेनासरिम तथा अराकान से बर्मी सेनाएँ खदेड़ दी गईं, पीगू और तेनासरिम पर अधिकार कर लिया गया तथा बर्मी सेनापति महाँबंदला मारा गया। फरवरी 1826 तक ब्रिटिश सेना राजधानी आवाके निकट तक पहुँच गई। विवश होकर बर्मा के सम्राट् को यांदाब् पर अपमानजनक संधि करनी पड़ी। परिणामत: आसाम, अराकान, और तेनासरिम ब्रिटिश साम्राज्य में मिले; मणिपुर स्वतंत्र राज्य बना, अंग्रेजों को एक करोड़ रुपया हर्जाना मिला; आवा में ब्रिटिश रेजिडेंट रहने लगा; तथा रत्नपुर की संधि द्वारा विशेष व्यापारिक सुविधाएँ मिलीं। इस युद्ध की हानियों तथा अव्यवस्था के कारण एमहस्र्ट की कटु आलोचना हुई।
प्रारंभ में अराकान को छोड़कर सभी क्षेत्रों में कुछ सफलता मिली, पर वर्षा ॠतु में अनेक कठिनाइयों तथा असफलताओं का सामना करना पड़ा। 1825 के अंत तक आसाम, मणिपुर तथा अराकान से बर्मी सेनाएँ खदेड़ ही गईं, पीगू और तेनासरिम तथा अराकान से बर्मी सेनाएँ खदेड़ दी गईं, पीगू और तेनासरिम पर अधिकार कर लिया गया तथा बर्मी सेनापति [[महाबन्धुल|महाबंदला]] मारा गया। फरवरी 1826 तक ब्रिटिश सेना राजधानी [[आवा]] के निकट तक पहुँच गई। विवश होकर बर्मा के सम्राट् को यांदाब् पर अपमानजनक संधि करनी पड़ी। परिणामत: आसाम, अराकान और तेनासरिम ब्रिटिश साम्राज्य में मिले; मणिपुर स्वतंत्र राज्य बना, अंग्रेजों को एक करोड़ रुपया हर्जाना मिला; आवा में ब्रिटिश रेजिडेंट रहने लगा; तथा रत्नपुर की संधि द्वारा विशेष व्यापारिक सुविधाएँ मिलीं। इस युद्ध की हानियों तथा अव्यवस्था के कारण एमहर्स्ट की कटु आलोचना हुई।


==द्वितीय बर्मी युद्ध (सन् १८५२)==
== द्वितीय बर्मी युद्ध (सन् १८५२) ==
यांदाधू की सधि की शर्तों का पालन होने के कारण 1840 में अंग्रेजों को बर्मा से अपनी रेजिडेंसी हटा लेनी पड़ी। उनके व्यापार में भी यथेष्ट वृद्धि न हो सकी। इस पर रंगून के असंतुष्ट अंग्रेज व्यापारियों ने लार्ड डलहौजी के पास बर्मी सरकार के विरुद्ध अतिरंजित शिकायतें भेजीं। डलहौजी ने इन्हें सच मानकर समुद्री सैनिक अफसर लैबर्ट को रंगून भेजा। उसने अपने अभिमान और हठ से समस्या को सुलझाने की अपेक्षा अधिक पेचीदा बना दिया। बर्मी गवर्नर के व्यवहार से असंतुष्ट होकर उसने बंदरगाह पर गोलाबारी कर दी और कलकत्ते वापस आकर डलहौजी को युद्ध करने की सलाह दी। पीगू प्रांत तथा [[रंगून]] के बंदरगाह पर अंग्रेजों की दृष्टि पहले से ही थी। इसलिए गवर्नर जनरल ने अल्टिमेटम देकर बिना युद्ध की घोषणा किए ही 1852 में युद्ध छेड़ दिया और बिना संधि किए केवल एक घोषणा द्वारा धमकी देकर बर्मा के सबसे अधिक समृद्धिशाली प्रांत पीगू को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। यह द्वितीय बर्मा युद्ध अनुचित और अन्यायपूर्ण था। इससे बर्मा एक स्थलीय राज्य रह गया। उसके वैदेशिक संबंध अंग्रेजों की इच्छा पर अवलंबित हो गए। आंतरिक क्रांति द्वारा पैगन को हटाकर मिंडन सम्राट् बना।
यांदाधू की सधि की शर्तों का पालन होने के कारण 1840 में अंग्रेजों को बर्मा से अपनी रेजिडेंसी हटा लेनी पड़ी। उनके व्यापार में भी यथेष्ट वृद्धि न हो सकी। इस पर रंगून के असंतुष्ट अंग्रेज व्यापारियों ने लार्ड डलहौजी के पास बर्मी सरकार के विरुद्ध अतिरंजित शिकायतें भेजीं। डलहौजी ने इन्हें सच मानकर समुद्री सैनिक अफसर लैबर्ट को रंगून भेजा। उसने अपने अभिमान और हठ से समस्या को सुलझाने की अपेक्षा अधिक पेचीदा बना दिया। बर्मी गवर्नर के व्यवहार से असंतुष्ट होकर उसने बंदरगाह पर गोलाबारी कर दी और कलकत्ते वापस आकर डलहौजी को युद्ध करने की सलाह दी। पीगू प्रांत तथा [[यांगून|रंगून]] के बंदरगाह पर अंग्रेजों की दृष्टि पहले से ही थी। इसलिए गवर्नर जनरल ने अल्टिमेटम देकर बिना युद्ध की घोषणा किए ही 1852 में युद्ध छेड़ दिया और बिना संधि किए केवल एक घोषणा द्वारा धमकी देकर बर्मा के सबसे अधिक समृद्धिशाली प्रांत पीगू को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। यह द्वितीय बर्मा युद्ध अनुचित और अन्यायपूर्ण था। इससे बर्मा एक स्थलीय राज्य रह गया। उसके वैदेशिक संबंध अंग्रेजों की इच्छा पर अवलंबित हो गए। आंतरिक क्रांति द्वारा पैगन को हटाकर मिंडन सम्राट् बना।


==तृतीय वर्मी युद्ध (सन् १८८५)==
== तृतीय वर्मी युद्ध (सन् १८८५) ==
33 वर्ष बाद सन् 1885 में लार्ड डफरिन के शासनकाल में तृतीय बर्मी युद्ध हुआ। इसके उद्देश्य थे -
33 वर्ष बाद सन् 1885 में लार्ड डफरिन के शासनकाल में तृतीय बर्मी युद्ध हुआ। इसके उद्देश्य थे -
*(1) उत्तरी बर्मा पर बढ़ते हुए फ्रांसीसी प्रभाव को हटाना,
* (1) उत्तरी बर्मा पर बढ़ते हुए फ्रांसीसी प्रभाव को हटाना,
*(2) सारे बर्मा को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाकर दक्षिण चीन से संपर्क स्थापित करना तथा
* (2) सारे बर्मा को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाकर दक्षिण चीन से संपर्क स्थापित करना तथा
*(3) बर्मा के व्यापार और तेल पर अधिकार करना।
* (3) बर्मा के व्यापार और तेल पर अधिकार करना।


बांबे-बर्मा ट्रेडिंग कारपोरेशन की समस्याओं को सुलझाने के बहाने युद्ध छेड़ दिया गया। सम्राट् थीबो को बंदी बनाकर अंग्रेजों ने स्वतंत्र बर्मा का अस्तित्व मिटा दिया। विजित प्रदेशों को नियंत्रण में लाने में पाँच वर्ष लगे। इस प्रकार बर्मा भारत का एक प्रांत बन गया।
बांबे-बर्मा ट्रेडिंग कारपोरेशन की समस्याओं को सुलझाने के बहाने युद्ध छेड़ दिया गया। सम्राट् थीबो को बंदी बनाकर अंग्रेजों ने स्वतंत्र बर्मा का अस्तित्व मिटा दिया। विजित प्रदेशों को नियंत्रण में लाने में पाँच वर्ष लगे। इस प्रकार बर्मा भारत का एक प्रांत बन गया।


==इन्हें भी देखें==
[[श्रेणी:इतिहास]]
[[श्रेणी:युद्ध]]
*[[प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध]]
*[[द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध|द्वितीय आंग्ल-बर्मी युद्ध]]
[[श्रेणी:बर्मा]]
*[[तृतीय आंग्ल-बर्मी युद्ध]]


[[श्रेणी:बर्मा का इतिहास]]
[[cs:Anglo-barmské války]]
[[श्रेणी:युद्ध]]
[[en:Anglo-Burmese wars]]
[[श्रेणी:म्यान्मार]]
[[fr:Guerres anglo-birmanes]]
[[it:Guerre Anglo-Birmane]]
[[ja:英緬戦争]]
[[my:အင်္ဂလိပ်-မြန်မာ စစ်ပွဲများ]]
[[ru:Англо-бирманские войны]]
[[vi:Chiến tranh Anh - Miến Điện]]
[[zh:英緬戰爭]]

08:54, 24 मार्च 2024 के समय का अवतरण

बर्मी युद्ध।

बर्मा पर अधिकार स्थापित करने के लिए अंग्रेजों ने तीन युद्ध किए जिन्हें बर्मी युद्ध के नाम से जाना जाता है।

प्रथम बर्मी युद्ध (1823 सें 1828 )

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पहला युद्ध लार्ड एमहर्स्ट (Lord Amherst) के शासनकाल में हुआ।

इसके प्रमुख कारण थे

  • बंगाल की पूर्वी सीमा पर बर्मी साम्राज्य विस्तार,
  • प्रवासियों द्वारा अराकान में लूट-मार तथा आसाम और मणिपुर वापस लेने के प्रयत्न,
  • सीमा संबंधी झगड़े, तथा
  • कचार में बर्मी सेना का प्रवेश।

युद्ध की घोषणा करने में बंगाल की सरकार के उद्देश्य थे :-

  • (1) बर्मा के भय से बंगाल को सुरक्षित करना
  • (2) बर्मा की शक्ति क्षीण करके उसे नीचा दिखाना,
  • (3) व्यापक व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करना तथा
  • (4) ब्रिटिश साम्राज्य का प्रसार करना।

यह युद्ध 1824 सें 1826 तक चला। तीन सेनाएँ स्थल मार्ग से आसाम, कचार, मणिपुर तथा अराकन की ओर और एक जलमार्गं द्वारा रंगून की ओर भेजी गई।

प्रारंभ में अराकान को छोड़कर सभी क्षेत्रों में कुछ सफलता मिली, पर वर्षा ॠतु में अनेक कठिनाइयों तथा असफलताओं का सामना करना पड़ा। 1825 के अंत तक आसाम, मणिपुर तथा अराकान से बर्मी सेनाएँ खदेड़ ही गईं, पीगू और तेनासरिम तथा अराकान से बर्मी सेनाएँ खदेड़ दी गईं, पीगू और तेनासरिम पर अधिकार कर लिया गया तथा बर्मी सेनापति महाबंदला मारा गया। फरवरी 1826 तक ब्रिटिश सेना राजधानी आवा के निकट तक पहुँच गई। विवश होकर बर्मा के सम्राट् को यांदाब् पर अपमानजनक संधि करनी पड़ी। परिणामत: आसाम, अराकान और तेनासरिम ब्रिटिश साम्राज्य में मिले; मणिपुर स्वतंत्र राज्य बना, अंग्रेजों को एक करोड़ रुपया हर्जाना मिला; आवा में ब्रिटिश रेजिडेंट रहने लगा; तथा रत्नपुर की संधि द्वारा विशेष व्यापारिक सुविधाएँ मिलीं। इस युद्ध की हानियों तथा अव्यवस्था के कारण एमहर्स्ट की कटु आलोचना हुई।

द्वितीय बर्मी युद्ध (सन् १८५२)

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यांदाधू की सधि की शर्तों का पालन होने के कारण 1840 में अंग्रेजों को बर्मा से अपनी रेजिडेंसी हटा लेनी पड़ी। उनके व्यापार में भी यथेष्ट वृद्धि न हो सकी। इस पर रंगून के असंतुष्ट अंग्रेज व्यापारियों ने लार्ड डलहौजी के पास बर्मी सरकार के विरुद्ध अतिरंजित शिकायतें भेजीं। डलहौजी ने इन्हें सच मानकर समुद्री सैनिक अफसर लैबर्ट को रंगून भेजा। उसने अपने अभिमान और हठ से समस्या को सुलझाने की अपेक्षा अधिक पेचीदा बना दिया। बर्मी गवर्नर के व्यवहार से असंतुष्ट होकर उसने बंदरगाह पर गोलाबारी कर दी और कलकत्ते वापस आकर डलहौजी को युद्ध करने की सलाह दी। पीगू प्रांत तथा रंगून के बंदरगाह पर अंग्रेजों की दृष्टि पहले से ही थी। इसलिए गवर्नर जनरल ने अल्टिमेटम देकर बिना युद्ध की घोषणा किए ही 1852 में युद्ध छेड़ दिया और बिना संधि किए केवल एक घोषणा द्वारा धमकी देकर बर्मा के सबसे अधिक समृद्धिशाली प्रांत पीगू को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। यह द्वितीय बर्मा युद्ध अनुचित और अन्यायपूर्ण था। इससे बर्मा एक स्थलीय राज्य रह गया। उसके वैदेशिक संबंध अंग्रेजों की इच्छा पर अवलंबित हो गए। आंतरिक क्रांति द्वारा पैगन को हटाकर मिंडन सम्राट् बना।

तृतीय वर्मी युद्ध (सन् १८८५)

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33 वर्ष बाद सन् 1885 में लार्ड डफरिन के शासनकाल में तृतीय बर्मी युद्ध हुआ। इसके उद्देश्य थे -

  • (1) उत्तरी बर्मा पर बढ़ते हुए फ्रांसीसी प्रभाव को हटाना,
  • (2) सारे बर्मा को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाकर दक्षिण चीन से संपर्क स्थापित करना तथा
  • (3) बर्मा के व्यापार और तेल पर अधिकार करना।

बांबे-बर्मा ट्रेडिंग कारपोरेशन की समस्याओं को सुलझाने के बहाने युद्ध छेड़ दिया गया। सम्राट् थीबो को बंदी बनाकर अंग्रेजों ने स्वतंत्र बर्मा का अस्तित्व मिटा दिया। विजित प्रदेशों को नियंत्रण में लाने में पाँच वर्ष लगे। इस प्रकार बर्मा भारत का एक प्रांत बन गया।

इन्हें भी देखें

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