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User:Aryasamajrajkot

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आर्यसमाज राजकोट का इतिहास

     श्री महर्षि दयानंद सरस्वती महाराज ने मगशिर्ष कुष्ण ५ से पोष शूकल एकादशी १९३१ तदनुसार २८ दिसम्बर १८७८ से १८ जनुअरी १८७५ तक राजकोट नगर में निवास कर यहाँ की धरती को पवन किया हे |
    श्री हरगोविंद द्वारकादास के निवास स्थान राजकुमार कॉलेज एवम काठियावाड़के राजाओ के सम्मलेन में उनके व्याख्यान हुए थे |
    मुंबई नगर में आर्यसमाज की स्थापना पूर्व विश्व का प्रथम आर्यसमाज राजकोट नगर में स्थापित हुई थी और उसके निम्न पदाधिकारी थे |
    	प्रधान:       	श्री मणिशंकर जटाशंकर
    	उपप्रधान:  	श्री उतमराम निर्भयराम
    	मंत्री:         	श्री हरगोविंद द्वारकादास कांटावाला

(जिन्होंने स्वामीजी महाराज ko राजकोट पधारने का निमंत्रण दिया था और चंदा मांग कर मार्ग व्यय, निवास, भोजन और व्याख्यान का करने की सम्पूर्ण व्यवस्था की थी |

    	उपमंत्री:     	श्री नगीनदास वृजभूषणदास
    इस आर्यसमाज की गतिविधियों में अंग्रेज सल्तनत को राजद्रोह प्रतीत हुआ | काठियावाड़ के पोलिटिकल एजेंट श्री जेम्स पील ने इस संस्था के सभासदों व पदाधिकारियों जो अधिकांश में राज कर्मचारी और वकील वर्ग के थे उन पर भय आशंका एवम त्रास का वातावरण बना मनगढ़ंत इल्जाम लगा आर्यसमाज से पृथक कर दिया | इस प्रकार यह आर्य समाज विघढीत हो गया |

     सन १९५२ में टंकारा से आर्यवीर दल का शिबिर रखा गया, इस शिबिर के लिए पधारे हुए श्री ओमप्रकाश त्यागीजी ने राजकोट में आर्यों को आर्यसमाज की प्रवृति करने की प्रेरणा दी | उसके परिणाम के स्वरुप में पारिवारिक सत्संग का आयोजन करना निश्चित हुआ | इस प्रकार का सर्व प्रथम पारिवारिक सत्संग श्री मगनलाल देवजीभाई आर्य के निवास स्थान पे हुआ था | इस सत्संग के बाद अनेक सत्संग हुए, उस समय सौराष्ट्र के विधान सभा अध्यक्ष श्री मगनभाई जोशी के व्याख्यान का मूल्यवान सहयोग इस संस्था को मिलता रहा |

     सन १९५५ में हाथीखाना रोड पर एक बैठक हुई और उसमे "आर्य पारिवारिक सत्संग समाज" की रचना हुई | श्री कल्यानजीभाई गाँधी और श्री वीरेंद्रभाई महेता को सत्संग की जवाबदारी सोपी गई | सन १९५६ में पंडित देवजीभाई आर्य, प्रमुख श्री मधुभाई आर्य, उपप्रमुख श्री कल्याणसिंह दरबार एवम श्री कल्याणजीभाई गाँधी ने मंत्री की पदवी संभाली | इस समय में आर्यसमाज की प्रवृतियों का विकास होने लगा | दैनिक सत्संग और रात्रि सत्संग की शुरुआत की गई और "आर्य दर्शन" के नामसे एक मासिक सामायिक शुरू किया गया |
    सन १९५७ से श्री मधुभाई आर्य प्रमुख, श्री कल्याणसिंह दरबार मंत्री और श्री विरेंद्र्भाई महेता एवम श्री वसंतभाई भवनानी ने प्रचार मंत्री का दायित्व निभाया | उस समय में बहुत से उपदेशक हुए और प्रचार का कार्य अच्छा होता रहा | चैत्र सूद १ के दिवस को "आर्यसमाज स्थापना दिवस" बड़ी धूम धाम से मनाया गया और प्रीती भोजन रखने की परिपाटी शुरू हुई |
    ता. १२-९-६३ के दिन राजकोट चैरिटी कमिश्नर कचेरी में इस संस्था की विधिवत नोंध हुई | ई.स. १९६४ में श्री वालजीभाई नाथवानी, श्री ठाकराशीभाई तंती इत्यादि के प्रयत्नों से हाथीखाना रोड पर १ चो.वा. के १ रुपये के टोकन से ४५२ चो.वा. राजकोट सुधराई ने इस संस्था को प्रदान किया | भवन निर्माण समिति की रचना हुई और बांधकाम शुरू हो गया |
    ई.स. १९७३ में आर्यसमाज को वहीवट के नियम उपनियम अनुसार चलाने के लिए प्रयत्न किया गया | आर्यसमाज में भाग लेने वाले तमाम सदस्य के लिए सदस्य फॉर्म उपलब्ध कराया गया और सदस्य बनाया गया | ता. १३-३-७४ की सामान्य सभा में बंधारण का स्वीकार करके संस्था का नाम "आर्यसमाज, महर्षि दयानंद मार्ग, राजकोट" रखा गया | स्वीकृति के बाद सामान्य सभा में प्रमुख के पद पर श्री वसत भाई राठोड, मंत्री के पद पर श्री भोगीलाल ठाकर और कोषाध्यक्ष के पद पर श्री रमेशभाई आर्य चुने गए |

      आर्यसमाज आर्य लोगो की तमन्ना से बनी और आगे-आगे बढाती हुई विकास को प्राप्त होते हुए यह संस्था स्थापना समय से लेकर आज तक सक्रीय हे | हिंदी रक्षा आन्दोलन के समय संस्था की तरफ से श्री कृष्ण शर्मा के दिशा निर्देश के निचे सत्याग्रही भेजे गये थे | जिसमे श्री हीराभाई कोठारी, श्री जमनादास भिक्षु और अन्य लोगो ने भी भाग लिया | गौ रक्षा सत्याग्रह विषय में भी गौ भक्त अर्जुन देव जी ने इस संस्था में उपवास आन्दोलन चलाया और श्री भगवान देव शर्मा जी की दिशा निर्देश के निचे सत्याग्रहीओ की एक टुकड़ी भेजी | 

     आर्यसमाज को सुद्रढ़ करना और युवाओ को आर्य समाज में प्रवृत करने के लिए "आर्य मित्र मंडल" की रचना की गई | आर्य मित्र मंडल द्वारा चलाई गई प्रवृतियो में प्रमुख प्रवृतिय में से सत्य साईं बाबा, ब्रह्म कुमारी, ईसाईमत के सामने आन्दोलन चलाना और मेलाओ में साहित्य प्रदर्शन द्वारा प्रचार, अंध विश्वास आदि को दूर करना और सत्य के प्रकाश को मानव समाज को देना आदि भिन्न भिन्न कार्यक्रमों में आर्यसमाज ने सहयोग दिया | आर्यसमाज अंतर्गत महिला आर्यसमाज के सत्संगो की प्रव्रुतिया करने में आयी और लगभग दो वर्ष तक नियमित चलता रहा |