अभिमन्यु
अभिमन्यु Abhimanyu | |
---|---|
जानकारी | |
परिवार | अर्जुन (पिता) शुभद्रा (माता)[१] |
बच्चा | परीक्षित |
अभिमन्यु हिन्दू धर्मग्रन्थ महाभारतक एक महत्त्वपूर्ण पात्र छी तथा पूरु कुलक राजा आ पञ्च पाण्डवसभमे सँ अर्जुन तथा शुभद्राक पुत्र छल । ओ भगवान कृष्णक भानिज छल जे मत्स्य वंशक राजकुमारी कन्या उत्तरासँ विवाह केनए छल ।[२] महाभारत अनुसार हुनका कौरबसभ छलद्वारा कारुणिक अन्त कएल गेल बताएल गेल अछि । ओ एक साहसिक योद्धा छल जे चक्रव्यूह भेदन करै लेल स्वयं चलि गेल छल ।
उत्पति
[सम्पादन करी]अभिमन्यु हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ महाभारतक नायक अर्जुन आ सुभद्राक (बलराम आ कृष्णक बहिन) पुत्र छल । अभिमन्युकें चन्द्र देवताक पुत्र सेहो मानल जाइत अछि । धारणा अछि की समस्त देवतासभद्वारा अपन पुत्रसभक अवतारक रूपमे धरती पर भेजने छल मुदा चन्द्रदेव कहलक की ओ अपन पुत्र वियोग सहन नै करि सकल अतः हुनकर पुत्रकें मानव योनीमे मात्र सोलह वर्षक आयु देल जाए ।[३]
वाल्यकाल आ विवाह
[सम्पादन करी]अभिमन्युक बाल्यकाल अपन नानी गाम द्वारका धाममे बितेने छल । हुनकर विवाह महाराज विराट जे मत्स्य वंशक छल ओकर पुत्री उत्तरासँ भेल । अभिमन्युक पुत्र परीक्षित, जकर जन्म अभिमन्युक मृत्योपरान्त भेल । परीक्षित कुरुवंशक एकमात्र जीवित सदस्य पुरुष भेलाक कारण भयङ्कर युद्ध समाप्ति पश्चात पाण्डव वंशकें आगा बढेने छल ।[४]
योद्धा
[सम्पादन करी]अभिमन्यु एक असाधारण योद्धा छल । ओ कौरव पक्षक व्यूह रचना, जकरा चक्रव्यूह कहल जाइत छल । अभिमन्यु चक्रव्यूहकें सातमे सँ छह द्वार भेद देनए छल । कथानुसार अभिमन्यु अपन माताक कोखमे रहैत समय अर्जुनक मुख सँ चक्रव्यूह भेदन कऽ रहस्य जानि लेनए छल । मुदा सुभद्राकें बीचमे निद्रामग्न होमए सँ ओ व्यूहसँ बाहर एबाक विधि नै सुनि सकल । अभिमन्युक म्रृत्युक कारण जयद्रथ छल जे अन्य पाण्डवसभकें व्यूहमे प्रवेश करै सँ रोकि देनए छल । समभवतः एकरे लाभ उठाए व्यूहक अन्तिम चरणमे कौरव पक्षक सम्पूर्ण महारथी युद्ध कऽ मापदण्डकें भुलाए ओ बालक पर चढ़ाई करि देलक, जाहि कारण ओ वीरगति प्राप्त केलक । अभिमन्युक मृत्यु पश्चात अर्जुन जयद्रथके वधक सपथ लेनए छल ।
प्रतिज्ञा
[सम्पादन करी]अभिमन्युक मृत्युक जानकारी सुनलाक बाद, अर्जुन सूर्यास्तक दोसर दिन जयद्रथकें मारवाक प्रतिज्ञा लेनए छल आ एना करैमे असफल रहैक कारण, आत्म-बलिदानद्वारा तुरन्त आत्महत्या करवाक निश्चय केलक । युद्धक चौदहम दिन, अर्जुन कौरव सेनाकें तबाह करि देलक आ दिनक अन्तमे जयद्रथके शिर काटि देलक ।