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जी

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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जी संज्ञा पुं॰ [सं॰ जीव]

१. मन । दील । तबीयत । चित्त । उ॰—(क) कहत नसाइ होइ हिअ नीकी । रीझत राम जानि जन जीकी । मानस, १ ।२८ ।

२. हिम्मत । दम । जीवट ।

३. संकल्प । विचार । इच्छा । चाह । मुहा॰—जी अच्छा होना=चित्त स्वस्थ होना । रोग आदि की पीड़ा या बेचैनी न रहना । नीरोग होना । जैसे,—दो तीन दिन तक बुखार रहा, आज जी अच्छा है । किसी पर जी आना=किसी से प्रेम होना । हृदय का किसी के प्रेम में अनुरक्त होना । जी उकताना=चित्त का उचाट होना । चित्त न लगना । एक ही अवस्था में बहुत काल तक रहते रहते परिवर्तन के लिये चित्त व्यग्र होना । तबीयत घबराना । जैसे,—तुम्हारी बातें सुनते सुनते तो जी उकता गया । जी उचटना=चित्त न लगना । चित्त का प्रवृत्त न होना । मन हटना । किसी कार्य, वस्तु या स्थान आदि से विरक्ति होना । जैसे,—अब तो इस काम से मेरा जी उचट गया । जी उठना=दे॰ 'जी उचटना' । जी उठना=चित्त हटाना । मन फेर लेना । विरक्त होना । अनुरक्त न रहना । जी उड़ जाना=भय, आशंका आदि से चित्त सहसा व्यग्र हो जाना । चित्त चंचल हो जाना । धैर्य जाता रहना । जी में घबराहट होना । जैसे,—उसकी बीमारी का हाल सुनते ही मेरा तो जी उड़ गया । जी उदास होना=चित्त खिन्न होना । जी उलट जाना=(१) मन का वश में न रहना । चित्त चंचल और अव्यवस्थित हो जाना । चित्त विंक्षिप्त हो जाना । होश हवास जाता रहना । (२) मन फिर जाना चित्त विरक्त होना । जी करना=(१) हिम्मत करना । हौसला करना । साहस करना (२) जी चाहना । इच्छा होना । जैसे,—अब तो जी करता हैं कि यहाँ से चल दें । जी काँपना= भय आशंका आदि से कलेजा धक धक करना । हृदय थर्राना । डर लगना । जैसे,—वहाँ जाने का नाम सुनते ही जी काँपता है । जी का बुखार निकालना=हृदय का उद्वेग बाहर करना । क्रोध, शोक, दुःख आदि के वेग को रोग कलपकर या बक झककर शांत करना । ऐसे क्रोध या दुःख को शब्दों द्वारा प्रकट करना जो बहुत दिनो से चित्त को संपन्न करता रहा हो । जी का बोझ या भार का हलका होना=ऐसी बात को दूर होना जिसकी चिंता चित्त में बराबर रहती आई हो । खटका मिटना । चिंता दूर होना । जी का अमान माँगना=प्राण रक्षा की प्रतिज्ञा की प्रार्थना करना । किसी काम के करने या किसी बात के कहने के पहले उस मनुष्य से प्राणरक्षा करने या अपराध क्षमा करने की प्रार्थना करना जिसके विषय में यह निश्चय हो कि उसे उस काम के होने या उस बात को सुनने से अवश्य दुःख पहुँचेगा । जैसे,—यदि किसी राजा से कोई अप्रिय बात करनी हुई तो लोग पहले यह कह लेते हैं कि 'जी का अमान पाऊँ तो कहुँ' । जी का आ लगना=प्राणों पर आ बनना । प्राण बचना कठिन हो जाना । ऐसी भारी झंझट या संकट में फँस जाना कि पीछा छुड़ाना कठिन हो जाय । जी की निकलना=(१) मन की उमंग पूरी करना । दिल की हवस निकलना । मनोरथ पूरा करना । (२) हृदय का उदगार निकालना । क्रोध, दुःख, द्वेष आदि उद्वेग को बक झक कर शांत करना । बदला लेने की इच्छा पूरी करना । जी का जी में रहना = मनोरथों का पूरा न होना । मन में ठानी, सोची या चाही हुई बातों का न होना । जी की पड़ना=प्राण बचाने की चिंता होना । प्राण बचाना कठिन हो जाना । ऐसे भारी झंझट या संकट में फँस जाना कि पीछा छुड़ाना कठिन हो जाय । उ॰—सब असबाब दाढ़ो मैं न काढ़ो तै न काढ़ो तैन काढ़ो जिय की परी सभारै सहन भंडार को ।—तुलसी (शब्द॰) । जी का=जीवटवाला । जिगरेवाला । साहसी । हिम्मतवार । दमदार । उ॰—धनी धरनी के नीके आपुनी अनी के संग आवैं जुरि जी के मो नजीके गरजी के सों ।—गोपाल (शब्द॰) । (किसी के) जी को समझना = किसी की विषय में यह समझना कि वह भी जीव है, उसे भी कष्ट होगा । दूसरे के कष्ट को समझना । दूसरे को क्लेश न पहुँचाना । दूसरे पर दया करना । जी को मारना=(१) मन की इच्छाओं को रोकना । चित्त के उत्साहों को न पूरा करना । (२) संतोष धारण करना । जी को न लगना = (१) चित्त में अनुभव होना । हृदय में वेदना होना । सहानुभूति होना । जैसे,—दूसरों की पीड़ा आदि किसी के जी को नहीं लगती । (२) प्रिय लगना । भाना । अच्छा लगना । जी खट- कना = (१) चित्त में खटका या संदेह उत्पन्न होना । (२) हानि आदि की आशंका से ( किसी काम के करने से ) जी हिचकना । ( किसी से या किसी के ओर से) जी खट्टा करना = मन फेर देना । चित्त में घृणा या विरक्ति उत्पन्न कर देना । चित्त विरक्त करना । हृदय में दुर्भाव उत्पन्न करना । जैसे,—तुम्हीं ने मेरी ओर से उनका जी खट्टा कर दिया है । ( किसी से या किसी ओर से) जी खट्टा होना = चित्त हट जाना । मन फिर जाना या विरक्त होना । अनुराग न रहना । घृणा होना । जैसे,—उसी एक बात से उनकी ओर से मेरा जी खट्टा हो गया । जी खपाना = (१) चित्त तन्मय करना । ( किसी काम में) जी लगाना । नितांत दत्त- चित्त होना । जी तोडकर किसी काम में लग जाना । (२) प्राण देना । अत्यंत कष्ट उठाना । जी खुलना = संकोच छूट जाना । धडक खुल जाना । किसी काम के करने में हिंचक न रह जाना । जी खोलकर = (१) बिना किसी संकोच के । बिना किसी प्रकार के भय या लज्जा के । बिना हिचके । बेधड़क । जैसे,—जो कृछ तुम्हें कहना हो, जी खोलकर कहो । (२) जितना जी चाहे । बिना अपनी ओर से कोई कमी किए । मनमाना । यथेष्ट । जैसे,—तुम हमें जी खोलकर गालियाँ दो, चिंता नहीं । जी गवाँना = प्राण देना । जान खोना । जी गिरा जाना = जी बैठा जाना । तबीयत सुस्त होती जाना । शिशिल- ता आती जाना । जी घबराना = (१) चित्त व्याकुल होना । मन व्यग्र होना । (२) मन न लगना । जी ऊबना । जी चलना = (१) जी चाहना । इच्छा होना । (२) जी आना । चित्त मोहित होना । जी चला = (१) वीर । दिलेर । बहादुर । शूर । शूरमा । (२) दानवीर । दाता । दानी । उदार । दान- शूर । (३) रसिक । सहृदय । जी चलाना = (१) इच्छा करना । मन दौड़ाना । चाह करना । (२) हिम्मत बाँधना । साहस करना । हौसला बढ़ाना । जी चाहना = मनोभिलाष होना । मन चलना । इच्छा होना । जी चाहे = यदि इच्छा हो । यदि मन में आवे । जी चुराना = किसी काम या बात से बचने के लिये हीला हवाली करना या युक्ति रचना । किसी काम से भागना । जैसे,—यह नौकर काम से जी चुराता है । जी छुपाना = (१) दे॰ 'जी चुराना' । जी छूटना = (१) हृदय की दृढ़ता न रहना । साहस दूर होना । ना उम्मेदी होना । उत्साह जाता रहना । (२) थकावट आना । शिथिलता आना । जी छोटा करना = (१) हृदय का उत्साह कम करना । (२) हृदय संकुचित करना । मन उदास करना । दान देने का साहस कम करना । उदारता छोड़ना । कंजूसी करना । जी छोड़ना = (१) प्राण त्याग करना । (२) हृदय का दृढ़ता खोना । साहस गँवाना । हिम्मत हारना । जी छोड़कर भागना = हिम्मत हारकर बडे़ बेग से भागना । एकदम भागना । ऐसा भागना कि दम लेने के लिये भी न ठहरना । जी जलना = (१) चित्त संतप्त होना । हृदय में संताप होना । चित्त में कुढ़न और दुःख होना । क्रोध आना । गुस्सा लगना (१) ईर्ष्या होना । डाह होना । जी जलाना = (१) चित्त संतप्त करना । हृदय में क्रोध उत्पन्न करना । कुढ़ाना । चिढ़ाना । (२) हृदय में दुःख उत्पन्न करना । रंज पहुँचाना । दुःखी करना । चित्त व्यथित करना । सताना (३) ईर्ष्या या डाह उत्पन्न करना । जी जानता है = हृदय ही अनुभव करता है, कहा नहीं जा सकता । सही हुई कठिनाई, दुःख या पीड़ा वर्णन के बाहर है । जैसे,—(क) मार्ग में जो जो कष्च हुए कि उसे जी ही जानता होगा । ('जी जानना होगा' भी बोला जाता है ।) जी जान से लगना = हृदय में प्रवृत्त होना । सारा ध्यान लगा देना । एकाग्र चित्त होकर तत्पर होना । जैसे,—वह जी जान से इस काम में लगा है । किसी को जी जान से लगी है = कोई हृदय से तत्पर है । किसी की घोर इच्छा या प्रयत्न है । कोई सारा ध्यान लगाकर उद्यत है । कोई बराबर इसी चिंता और उद्योग में है । जैसे,— उसे जी जान से लगी है कि मकान बन जाय । जी जान लड़ाना = मन लगाना । दत्त चित्त होना । जी जुगोना = (१) किसी तरह प्राणरक्षा करना । कठिनाई से दिन बिताना । जैसे, तैसे दिन काटना । (२) बचना । अलग रहना । तटस्थ रहना या होना । जी जोड़ना = (१) हिम्मत बाँधना या करना । (२) तैयार होना । उद्यत होना । जी टँगा रहना या होना = चित्त में ध्यान या चिंता रहना । जी में खटका बना रहना । चित्त चिंतित रहना । जैसे,—(क) जब तक तुम नहीं आओगे, मेरा जी टँगा रहेगा । (ख) उसका कोई पत्र नहीं आया, जी टँगा है । जी टूट जाना = उत्साह भंग हो जाना । उमंग या हौसला न रह जाना । नैराश्य होना । उदासीनता होना । जैसे,—उनकी बातों से हमारा जी टूट गया, अब कुछ न करेंगे । जी ठंढा होना = (१) चित्त शांत और संतुष्ट होना । अभिलाषा पूरी होने से हृदय प्रफुल्लित होना । चित्त में संतोष और प्रसन्नता होना । जैसे,—वह यहाँ से निकाल दिया गया; अब तो तुम्हारा जी ठंढा हुआ ? जी ठुकना = (१) मन को संतोष होना । चित्त स्थिर होना । (२) चित्त में दृढ़ता होना । साहस होना । हिम्मत बँधना । दे॰ 'छाती ठुकना' । जी डरना = शंका या आशंका होना । भय होना । जी डालना = (१) शरीर में प्राण डालना । जीवित करना (२) प्राणरक्षा करना । मरने से बचाना । (३) हृदय मिलाना । प्रेम करना (४) उत्साहित करना । बढ़ावा देना । जी डूबना = (१) बेहोशी होना । मूर्छा आना । चित्त विह्वल होना । (२) चित्त स्थिर न रहना । घबराहट और बेचैनी होना । चित्त व्याकुल होना । जी डोलना = (१) विचलित होना । चंचल होना । (२) लुब्ध होना । अनुरक्त होना । (३) मन न करना । न चाहना । जी ढहा जाना = दे॰ 'जी बैठा जाना' । जी तपना = चित्त क्रोध से संतप्त होना । जी जलना । क्रोध चढ़ना । उ॰—सुनि गज जूह अधिक जिउ तपा । सिंह जात कहुँ रह नहिं छपा ।—जायसी (शब्द॰) । जी तरसना = किसी वस्तु या बात के अभाव से चित्त ब्याकुल होना । किसी वस्तु की प्राप्ति के लिये चित्त अधीर या दुःखी होना । किसी बात की इच्छा पूरी न होने का कष्ट होना । जैसे,—(क) तुम्हारे दर्शन के लिये जी तरसता था । (ख) जब तक बंगाल में थे, रोटी के लिये जी तरस गया । जी तोड़ काम, परिश्रम या मिहनत करना = जान की बाजी लगाकर किसी काम को करना । जी तोड़ना = (१) दिल तोड़ना । निराश करना । हतोत्साह करना । (२) पूरी शक्ति से काम करना । काम करने में कुछ भी न उठा रखना । जी दह- लना = भय या आशंका से चित्त डाँवाडोल होना । डर से हृदय काँपना । डर के मारे जी ठिकाने न रहना । अत्यंत भय लगना । जी—दान = प्राण दान । प्राण रक्षा । जी दार = जीवटवाला । दृढ़ हृदय का । साहसी । हिम्मतवर । बहा- दुर । कडे़ दिल का । जी दुखना = चित्त को कष्ट पहुँचना । हृदय में दुःख होना । जैसे,—ऐसी बात क्यों बोलते हो जिससे किसी का जी दुखे । जी दुखाना = चित्त व्यथित करना । हृदय को कष्ट पहुँचाना । दुःख देना । सताना । जैसे,—व्यर्थ किसी का जी दुखाने से क्या लाभ ? जी देना = (१) प्राण खोना । मरना । (२) दूसरे की प्रसन्नता या रक्षा के लिये प्राण देने को प्रस्तुत रहना । (३) प्राण से बढ़कर प्रिय समझना । अत्यंत प्रेम करना । जैसे,—वह तुम पर जो देता है और तुम उससे भागे फिरते हो । जी दौड़ना = मन चलना । इच्छा होना । लालसा होना । जी धँसा जाना = दे॰ 'जी बैठा जाना' । जी धड़कना = (१) भय या आशंका से चित्त स्थिर न रहना । कलेजा धक धक करना । डर के मारे हृदय में घबराहट होना । डर लगाना । (२) चित्त में दृढ़ता न होना । साहस न पड़ना । हिम्मत न पड़ना । जैसे,—चार पैसे पास से निकालते जी धड़— * कता है । जी धकधक करना = कलेजे का भय आदि के आवेग से जोर जोर से उछलना । जी धड़कना = डर लगना । जी धकधक होना = दे॰ 'जी धकधक करना' । जी निकलना = (१) प्राण छूटना । प्राण निकलना । मृत्यु होना । (२) चित्त व्याकुल होना । डर लगना । प्राण सूखना । जैसे,— अब तो उधर जाते इसका जी निकलता है । (३) प्राणांत कष्ट होना । कष्टबोध होना । जैसे,—तुम्हारा रुपया तो नहीं जाता है, तुम्हारा क्यों जी निकलता है ? जी निढाल होना = चित्त का स्थिर न रहना । चित्त ठिकाने न रहना । चित्त विह्वल होना । हृदय व्याकुल होना । जी पक जाना = किसी अप्रिय बात को नित्य देखते देखते या सुनते सुनते चित्त दुखी हो जाना । किसी बार बार होनेवाली बात को चित्त को असह्य हो जाना । और अधिक सुनने का साहस चित्त में न रहना । जैसे,—नित्य तुम्हारी जली कटी बातें सुनते सुनते जी पक गया । जी पड़ना = (१) शरीर में प्राण का संचार होना । जैसे,—गर्भ के बालक को जी पड़ना । (२) मृतक के शरीर में प्राण संचार होगा । मरे हुए में जान आना । जी पकड़ लेना = कलेजा थामना । किसी असह्य दुःख के वेग को दबाने के लिये हृदय पर हाथ रख लेना । जी पकड़ा जाना = मन में संदेह पड़ जाना । माथा ठनकना । कोई भारी खटका पैदा हो जाना । चित्त में कोई भारी आशंका उठना । (स्त्रि॰) । जैसे,—तार आते ही मेरा तो जी पकड़ा गया । जी पर आ बनना = प्राणों पर आ बनना । प्राण बचाना कठिन हो जाना । ऐसे भारी संकट या झंझट में फँस जाना कि पीछा छुड़ाना कठिन हो जाय । जी पर खेलना = प्राण को संकट में डालना । जान को आफत में डालना । जान पर जोखों उठाना । ऐसा काम करना जिसमें जान जाने का भय हो । जी पानी करना = (१) लहू पानी एक करना । प्राण देने और लेने की नौबत लाना । भारी आपत्ति खड़ी करना । (२) चित्त कोमल या दयार्द्र करना । जी पानी होना = चित्त कोमल या दयार्द्र होना । जी पिघलना = (१) दया से हृदय द्रवित होना । चित्त का दयार्द्र होना । (२) हृदय का प्रेमार्द्र होना । चित्त में स्नेह का संचार होना । जी पीछे पड़ना = दिल बहलाना । चित्त बँटना । मन का किसी ओर बँट जाना जिसमें दुःख की बात कुछ भूल जाय । (स्त्री॰) जी फट जाना = हृदय मिला न रहना । चित्त में पहले का सा सदभाव या प्रेमभाव न रह जाना । प्रीति भंग होना । प्रेम में अंतर पड़ जाना । चित्त विरक्त होना । किसी की ओर से चित्त खिन्न हो जाना । जी फीर जाना = मन हट जाना । चित्त विरक्त हो जाना । चित्त अनुरक्त न रहना । हृदय में घृणा या अरुचि उत्पन्न हो जाना । जैसे,—जब किसी ओर से जी फिर जाता है तब फिर वह बात नहीं रह जाती । जी फिसलना = चित्त का किसी की ओर) आकर्षित होना । मन खिंचना । हृदय अनुरक्त होना । मन मोहित होना । मन लुभाना । जी फीका होना = दे॰ 'जी खट्टा होना' । जी बँटना = (१) चित्त का किसी ओर इस प्रकार लग जाना कि किसी प्रकार की दुःख या चिंता की बात भूल जाय । जी बहलाना । (२) चित्त का एकाग्र न रहना । चित्त का एक विषय में पूर्ष रूप से न लगा रहना, दूसरी बातों की ओर भी चला जाना । ध्यान स्थिर न रहना । ध्यान भंग होना । मन उचटना । जैसे,—काम करते समय यदि कोई कुछ बोलने लगता है तो जी बँट जाता है । (३) एकांत प्रेम न रहना । एक व्यक्ति के अतिरिक्त दूसरे व्यक्ति से भी प्रेम हो जाना । अनन्य प्रेम न रहना । जी बंद होना = दे॰ 'जी फिरना' । जी बढ़ना = (१) चित्त प्रसन्न या उत्साहित होना । हौसला बढ़ना । (२) साहस बढ़ना । हिम्मत आना । जी बढ़ाना = (१) उत्साह बढ़ाना । किसी विषय में प्रवृत्त करने के लिये उत्तेजित करना । प्रशंसा पुरस्कार आदि द्वारा किसी काम में रुचि उत्पन्न करना । हौसला बढ़ाना । जैसे,—लड़कों का जी बढ़ाने के लिये इनाम दिया जाता है । (२) किसी कार्य की सफलता की आशा बँधाकर अधिक उत्साह उत्पन्न करना । किसी कार्य में होनेवाली बाधा या कठिनाई के दूर होने का निश्चय दिलाकर उसकी ओर अधिक प्रवृत्ति उत्पन्न करना । साहस दिलाना । हिम्मत बँधाना । जी बहलना = (१) चित्त का किसी विषय में लगकर आनंद अनुभव करना । चित्त का आनंदपूर्वक लीन होना । मनोरंजन होना । जैसे,—थोड़ी देर तक खेलने से जी बहल जाता है । (२) चित्त के किसी विषय में लग जाने से दुःख या चिंता की बात भूल जाना । जैसे,—मित्रों के यहाँ आ जाने से कुछ जी बहल जाता है नहीं तो दिन रात उस बात का दुःख बना रहता है । जी बहलाना = (१) रुचि के अनुकूल किसी विषय में लगकर आनंद अनुभव करना । मनोरंजन करना । जैसे,—कभी कभी जी बहलाने के लिये ताश भी खेल लेते हैं । (२) चित्त को किसी ओर लगाकर दुःख या चिंता की बात भूल जाना । जी बिखरना = (१) चित्त ठिकाने न रहना । मन विह्वल होना । (२) मूर्छा होना । बेहोशी होना । जी बिगड़ना = (१) जी मचलना । मतली छूटना । कै करने की इच्छा होना । (२) भिटकना । घृणा करना । घिन मालूम होना । जी बुरा करना = कै करना । उलटी करना । वमन करना । ( किसी की ओर से) । जी बुरा करना = किसी के प्रति अच्छा भाव न रखना । किसी के प्रति बुरी धारणा रखना । किसी के प्रति घृणा या क्रोध करना । (किसी की ओर से दूसरे का) जी बुरा करना = (१) दूसरे का ख्याल खराब करना । बुरी धारणा उत्पन्न करना । (२) क्रोध, घृणा या दुर्भाव उत्पन्न करना । जी बुरा होना = (१) कै होना । उलटी होना । (२) ख्याल खराब होना । (३) चित्त में दुर्भाव या घृणा उत्पन्न होना । जी बैठ जाना = (१) चित्त विह्वल होता जाना । चित्त ठिकाने न रहना । चैतन्य न रहना । मूर्छा सी आना । जैसे,—आज न जाने क्यों बड़ी कमजोरी जान पड़ती है और जी बैठा जाता है । (२) मन भरना । उदासी होना । जी भिटकना = चित्त में घृणा होना । घिन मालूम होना । जी भरना (क्रि॰ अ॰) = (१) चित्त तुष्ट होना । तुष्टि होना । तृप्ति होना । मन अघाना । और अधि क की इच्छा न रह जाना । जैसे,—(क) अब जी भर गया और न खाएँगे । (ख) तुम्हारी बातों से ही जी भर गया, अब जाते हैं । (व्यंग्य) । (२) मन की अभिलाषा पूरी होने से आनंद और संतोष होना । जैसे,—लो, मैं, आज यहाँ से चला जाता हूँ, अब तो तुम्हारा जी भरा । (३) ऐसे गंदे बरतन में पानी पीते हो, न जाने कैसे तुम्हारा जी भरता है । जी भरकर = जितना और जहाँ तक जी चाहे । मनमाना । यथेष्ट । जैसे,—तुम हमें जी भरकर गालियाँ दो, कोई परवाह नहीं । जी भरना (क्रि॰ स॰) = चित्त विश्वासपूर्ण करना । चित्त से किसी बात की बुराई या धोखा आदि खाने की आशंका दूर करना । खटका मिटाना । इतमीनान करना । दिलजमाई करना । जैसे,—यों तो घोडे़ में कोई ऐब नहीं है पर आप दस आदमियों से पूछकर अपना जी भर लीजिए । जी भर आना = हृदय का करुणा या शोक के आवेग से पूर्ण होना । चित्त में दुःख या करुणा का उद्रेक होना । दुःख या दया उमड़ना । हृदय में इतने दुःख या दया का वेग उठना कि आँखों में आँसू आ जाय । हृदय का करुणा से बिह्वल होना । जी भरभरा उठना = रोमांच होना । हृदय के किसी आकस्मिक आवेग से चित्त का विह्वल हो जाना । (अपना) जी भारी करना = चित्त खिन्न या दुखी करना । जी भारी होना = तबीयत अच्छी न होना । किसी रोग या पीड़ा आदि के कारण सुस्ती जान पड़ना । शरीर अच्छा न रहना । जी भुरभुराना = किसी की ओर चित्त आकर्षित होना । मन लुभाना । मन मोहित होना । जी मचलना = किसी वस्तु या या व्यक्ति की ओर आकृष्ट होना । जी मचलना = दे॰ 'जी मतलाना' । जी मतलाना = चित्त में उलटी या कै करने की इच्छा होना । वमन करने को जी चाहना । जी मर जाना = मन में उमंग न रह जाना । हृदय का उत्साह नष्ट होना । मन उदास हो जाना । जी मलमलाना = चित्त में दुःख या पछतावा होना । अफसोस होना । जैसे,—गाँठ के चार पैसे निकालते जी मलमलाता है । जी मारना = (१) चित्त की उमंग को रोकना । हृदय का उत्साह नष्ट करना । (२) संतोष धारण करना । सब्र करना । जी मिचलाना = दे॰ 'जी मतलाना' । (किसी से) जी मिलना = चित्त के भाव का परस्पर समान होना । हृदय का भाव एक होना । समान प्रवृत्ति होना । एक मनुष्य के भावों का दूसरे मनुष्य के भावों के अनुकूल होना । चित्त पटना । जी में आना = (१) मन में भाव उठना । चित्त में विचार उत्पन्न होना । (२) मन में इच्छा होना । जी चाहनाइरादा होना । संकल्प होना । जैसे,—तुम्हारे जो जी में आवे, करो । जी में घर करना = (१) मन में स्थान करना । हृदय में किसी का ध्यान बना रहना । (२) याद रहना । कोई बात या व्यव- हार मन में बराबर रहना । जी में गड़ना या खुभना = (१) चित्त में जम जाना । हृ्दय में गहरा प्रभाव करना । मर्म भेदना । (२) हृदय में अंकित हो जाना । चित्त में ध्यान बना रहना । उ॰—माधव मूरति जी में खुभी ।— सूर (शब्द॰) । जी में जलना = (१) हृदय में क्रोध के कारण संताप होना । मन में कुढ़ना । मन ही मन ईर्ष्या करना । डाह करना । जी में जी आना = चित्त ठिकाने होना । चित्त की घबराहट दूर होना । चित्त शांत और स्थिर होना । चित्त की चिंता या व्यग्रता दूर होना । किसी बात की आशंका या भय मिट जाना । जैसे,— जब वह उस स्थान से सकुशल लौट आया तब मेरे जी में जी आया । जी में जी डालना = (१) चित्त संतुष्ट और स्थिर करना । चित्त का खटका दूर कराना । चिंता मिटाना । (१) विश्वास दिलाना । इतमीनान करना । दिलजमई कराना । जी में डालना = मन में विचार लाना । सोचना । जैसे,—तुम्हारे साथ कोई बुराई करूँगा ऐसी बात कभी जी में न डालना । जी में धरना = (१) मन में लाना । चित्त में किसी बात का इसलिये ध्यान बनाए रहना जिसमें आगे चलकर कोई उसके अनुसार कार्य करे । ख्याल करना । जी में पैठना = (१) चित्त में जम जाना । हृदय पर गहरा प्रभाव करना । मर्म भेदना । (२) ध्यान में अंकित होना । बराबर ध्यान में बना रहना । चित्त से न हटना या भूलना । जी में बैठना = (१) मन में स्थिर होना । चित्त में निश्चय होना । चित्त में निश्चित धारणा होना । मन में सत्य प्रतीत होना । जैसे,—उन्होंने जो बातें कहीं वे मेरे जी में बैठ गई । (२) हृदय पर गहरा प्रभाव करना । (३) हृदय पर अंकित हो जाना । ध्यान में बराबर बना रहना । जी में रखना = (१) चित्त में विचार धारण करना । ख्याल बनाए रखना जिसमें आगे चलकर उसके अनुसार कोई कार्य करें । (२) मन में बुरा मानना । बैर रखना । द्वेष रखना । कीना रखना । जैसे,—उसे चाहे जो कहो वह कोई बात जी में नहीं रखता । (३) हृदय में गुप्त रखना । हृदय के भाव को बाहर न प्रकट करना । मन में लिए रहना । जैसे,—इस बात को जी में रखो, किसी से कहो मत । ( किसी का) जी रखना = (किसी का) मन रखना । किसी के मन की बात होने देना । मन की अभिलाषा पूरी करना । इच्छा पूरी करना । उत्साह भंग न करना । प्रसन्न करना । संतुष्ट करना । जैसे,—जब वह बार बार इसके लिये कहता है तो उसका जी रख दो । जी रुकना = (१) जी घबराना । (२) जी हिचकना । चित्त प्रवृत्त न होना । जी लगना = चित्त तत्पर होना । मन का किसी विषय में योग देना । चित्त प्रवृत्त होना । दत्तचित्त होना । जैसे,—पढ़ने में उसका जी नहीं लगता । (किसी से) जी लगाना = चित्त का प्रेमासक्त होना । किसी से प्रेम होना । जी लगाना = चित्त तत्पर करना । किसी काम में दत्तचित्त बनना । जी लगा रहना या लगा होना = (१) चित्त में ध्यान बना रहना । (२) जी में खटका लगा रहना । चित्त चिंतित रहना या होना । जैसे,—बहुत दिनों से कोई पत्र नहीं आया, जो लगा है । (किसी से) जी लगाना = किसी से प्रेम करना । जी लटना = पस्त होना । हिम्मत टूटना । उ॰—इ स जगत का जीव वह है ही नहीं । लुट गए धन जी लटा जिसका नहीं ।—चोखे॰, पृ॰ २२ । जी लड़ाना = (१) प्राण जाने की भी परवाह न करके किसी विषय में तत्पर होना । (२) मन का पूर्ण रूय से योग देना । पूरा ध्यान देना । सारा ध्यान लगा देना । जी लरजना = दे॰ 'जी काँपना' । जी ललचाना = (१) जी में लालच होना । चित्त में किसी बात के लिये प्रबल इच्छा होना । किसी वस्तु की प्राप्ति आदि की गहरी लालसा होना । (२) किसी चीज के पाने के लिये तरसना । जैसे,—वहाँ की सुंदर सुंदर वस्तुओं का देखकर जी ललच गया । (३) चित्त आकर्षित होना । मन लुभाना । मन मोहित होना । जी ललचाना = (१) (क्रि॰ अ॰) दे॰ 'जी ललचना' । (२) (क्रि॰ स॰) दूसरे के चित्त में लालच उत्पन्न करना । किसी बात के लिये प्रबल इच्छा उत्पन्न करना । किसी वस्तु के लिये जी तरसाना । जैसे,—दूर से दिखाकर क्यों उसका, जी ललचाते हो, देना हो तो दे दो । (३) मन लुभाना । मन मोहित करना । जी लुटना = मन मोहित होना । मन मुग्ध होना । हृदय प्रेमासक्त होना । जी लुभाना = (१) (क्रि॰ स॰) चित्त आकर्षित करना । मन मोहित करना । हृदय में प्रीति उपजाना । सौंदर्य आदि गुणों के द्वारा मन खींचना । (२) (क्रि॰ अ॰) चित्त आकर्षित होना । मन मोहित होना जैसे,—उसे देखते ही जी लुभा जाता है । जी लूटना = मन मोहित करना । जी लेना = जी चाहना । जी करना । चित्त का इच्छुक होना । जैसे,—वहाँ जाने के लिये हमारा जी नहीं लेता । ( दूसरे का) जी लेना = प्राण हरण करना । मार डालना । जी लोटना = जी छटपटाना । किसी वस्तु की प्राप्ति या और किसी बात के लिये चित्त व्याकुल होना । चित्त का अत्यंत इच्छुक होना । ऐसी इच्छा होना कि रहा न जाय । जी सन हो जाना = भय, आशंका आदि से चित्त स्तव्ध हो जाना । जी घबरा जाना । डर के मारे चित्त ठिकाने न रहना । होश उड़ जाना । जैसे,—उसे सामने देखते ही जी सन हो गया । जी सनसनाना = (१) चित्त स्तव्ध होना । भय, आशंका, क्षीणता आदि से अंगो की गति शिथिल हो जाना । (२) चित्त विह्वल होना । जी साँय साँय करना = दे 'जी सनसनाना' । जी से = जी लगाकर । ध्यान देकर । पूर्ण रूप से । दत्तचित्त होकर । जैसे,—जी से जो काम किया जायगा वह क्यों न अच्छा होगा । ( किसी वस्तु या व्यक्ति का) जी से उतर जाना = दृष्टि से गिर जाना । (किसी वस्तु या व्यक्ति की) इच्छा या चाह न रह जाना । किसी व्यक्ति पर स्नेह या श्रद्धा न रह जाना । (किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति) चित्त में विरक्त हो जाना । भला न जँचना । हेय या तुच्छ हो जाना । बेकदर हो जाना । जी से उतारना या जी से उतार देना = किसी वस्तु या व्यक्ति की उपेक्षा या अवहेलना करना कदर न करना । जी से जाना = प्राणविहिन होना । मरना । जान खो बैठना । जैसे,— बकरी अपने जी से गई, खानेवाले को स्वाद ही न मिला । जी से जी मिलना । (१) हृदय के भाव परस्पर एक होना = एक के चित्त का दूसरे के चित्त के अनुकूल होना । मैत्री का व्यवहार होना । (२) चित्त में एक दूसरे से प्रेम होना । परस्पर प्रीति होना । (किसी व्यक्ति या वस्तु से) जी हट जाना = चित्त प्रवृत्त या अनुरक्त न रह जाना । इच्छा या चाह न रह जाना । जैसे,—(क) ऐसे कामों से अब हमारा जी हट गया । (ख) उससे मेरा जी एकदम जी हट गया । जी हवा हो जाना = किसी भय, दुःख या शोक से सहसा उपस्थित होने पर चित्त स्तब्धहो जाना । चित्त विह्वल हो जाना । जी घबरा जाना । चित्त ब्याकुल हो जाना । ( किसी का) जी हाथ में रखना = (१) किसी का भाव अपने प्रति अच्छा रखना । राजी रखना । मन मैला न होने देना । (२) जी मे किसी प्रकार का खटका पैदा न होने देना । दिलासा दिए रहना । जी हाथ में लेना = दे॰ 'जी हाथ में रखना' । जी हारना = (१) किसी काम से घबराना या ऊब जाना । हैरान होना । पस्त होना । (२) हिम्मत हारना । साहस छोड़ना । जी हिलना = (१) भय से हृदय काँपना । जी दहलना । (२) करुणा से हृदय क्षुब्ध होना । दया से चित्त उद्विग्न होना ।

जी ^२ अव्य॰ [सं॰ जित् प्रा॰ जिव ( = विजयो) या सं॰ (श्री) युत प्रा॰ जुक, हिं॰ जू] एक संमानसूचक शब्द जो किसी नाम या अल्ल के आगे लगाया जाता है अथवा किसी बडे़ के कथन, प्रश्न या संबोधन के उत्तर रूप में जो संक्षिप्त प्रतिसंबोधन होता है उसमें प्रयुक्त होता है । जैसे,— (क) श्री रामचंद्र जी, पंडितजी, त्रिपाठी जी, लाला जी इत्यादि । (ख) कथन—वे आम कैसे मीठे हैं । उत्तर—जी हाँ । बेशक । (ग) तुम वहाँ गए थे या नहीं ? उत्तर— जी नहीं ! (घ) किसी ने पुकारा- रामदास ? उत्तर—जी हाँ ? ( या केवल ) जी । विशेष—प्रश्न या केवल संबोधन में जी का प्रयोग बड़ों के लिये नहीं होता । जैसे किसी बडे़ के प्रति यह नहीं कहा जाता कि (क) क्यों जी ! तुम कहाँ थे ? अथवा (ख) देखो जी ! यह जाने न पावे । स्वीकार करने या हामी भरने के अर्थ में 'जी हाँ' के स्थान पर केवल 'जी' बोलते हैं, जैसे, प्रश्न—तुम वहाँ गए थे ? उत्तर—जी ! (अर्थात हाँ) । उच्चारण भेद के कारण जी से तात्पर्य पुनः कहने के लिये होता है । जैसे,— किसी ने पूछा— तुम कहाँ जा रहे हो ? उत्तर मिला 'जी' ? अर्थ से स्पष्ट है कि श्रोता पुनः सुनना चाहता है कि उससे क्या कहा गया है ।

जी ^३ वि॰ [ अ॰ जी] वाला । सहित । युक्त [को॰] । यौ॰—जीशऊर = शऊरवाला । तंमीजदार । (२) समझदार । जीशान = शानवाला ।