घोष
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]घोष संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. आभीरपल्ली । अहीरों की बस्ती । उ॰— बकी जो गई घोष में छल करि यसुदा की गति दीनी ।— सूर॰, १ । १२२ ।
२. अहीर ।
३. बंगाली कायस्थों का एक भेद ।
४. गोशाला । उ॰—(क) आजु कन्हैया बहुत बच्यो री । खेलत रह्यौ घोष के बाहर कोढ आयो शिशु रूप रच्यो री ।— सूर (शब्द॰) ।
५. तट । किनारा ।
६. ईशान कोण का एक देश ।
७. शब्द । आवाज । नाद । उ॰—होन लग्यो ब्रजगलिन में हुरिहारन को घोष ।—पद्माकर ग्रं॰, पृ॰ ९९ ।
८. गरजने का शब्द ।
९. ताल के ६० मुख्य भेदों में से एक ।
१०. शब्दों के उच्चारण में ११ बाह्य प्रयत्नों में से एक । इस प्रयत्न से वर्ण बोले जाते हैं—ग, घ, ज, झ, ल, ढ द, ध, ब, भ, ङ, ञ ण, न म, य, र, ल, व, और ह ।
११. शिव ।
१२. जनश्रुति । अफवाह (को॰) ।
१३. कुटी । झोपड़ी (को॰) ।
१४. कांस्य । काँसा (को॰) ।