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सप्ताह की पुस्तक
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आँधी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एवं प्रयाग के लीडर-प्रेस द्वारा १९५५ ई॰ में प्रकाशित कहानी संग्रह है।


मधुआ

"आज सात दिन हो गये पीने की कौन कहे छूना तक नहीं! आज सातवाँ दिन है सरकार!
तुम झूठे हो। अभी तो तुम्हरे कपड़े से महँक आ रही है।
वह, वह तो कई दिन हुए। सात दिन से ऊपर--कई दिन हुए-- अँधेरे में बोतल उड़ेलने लगा था। कपड़े पर गिर जाने से नशा भी न आया। और आपको कहने का क्या कहूँ सच मानिए। सात दिन --ठीक सात दिन से एक बूंद भी नहीं।
ठाकुर सरदारसिंह हँसने लगे। लखनऊ में लड़का पढ़ता था। ठाकुर साहब भी कभी-कभी वहीं आ जाते। उनको कहानी सुनने का चसका था। खोजने पर यही शराबी मिला। वह रात को दोपहर में कभी-कभी सबेरे भी आ जाता। अपनी लच्छेदार कहानी सुनाकर ठाकुर का मनोविनोद करता।
ठाकुर ने हँसते हुए कहा--तो आज पियोगे न! झूठ कैसे कहूँ। आज तो जितना मिलेगा सारा पिऊँगा। सात दिन चने-चबेने पर बिताये हैं किस लिए।
अद्भुत! सात दिन पेट काटकर आज अच्छा भोजन न करके तुम्हें पीने की सूझी है। यह भी
सरकार! मौज बहार की एक घड़ी एक लम्बे दुखपूर्ण जीवन से अच्छी है। उसकी खुमारी में रूखे दिन काट लिये जा सकते हैं।..."(पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तकें

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हिन्द स्वराज, महात्मा गाँधी की पहली पुस्तक है जिसमें उन्होंने अपने विचारों को सुव्यवस्थित रूप दिया है। दक्षिण अफ्रीकाके भारतीय लोगोंके अधिकारोंकी रक्षाके लिए सतत लड़ते हुए गांधीजी १९०९ में लंदन गये थे। वहां कई क्रांतिकारी स्वराज्यप्रेमी भारतीय नवयुवक उन्हें मिले। उनसे गांधीजीकी जो बातचीत हुई उसीका सार गांधीजीने एक काल्पनिक संवादमें ग्रथित किया है। इस संवादमें गांधीजीके उस समयके महत्त्वके सब विचार आ जाते हैं। किताबके बारेमें गांधीजी ने स्वयं कहा है कि "मेरी यह छोटीसी किताब इतनी निर्दोष है कि बच्चोंके हाथमें भी यह दी जा सकती है। यह किताब द्वेषधर्मकी जगह प्रेमधर्म सिखाती है; हिंसाकी जगह आत्म-बलिदानको स्थापित करती है; और पशुबलके खिलाफ टक्कर लेनेके लिए आत्मबलको खड़ा करती है।" ( हिन्द स्वराज पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

रचनाकार
रचनाकार

चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 — 2 फ़रवरी 1960) हिंदी भाषा के उपन्यासकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. आग और धुआं, औपनिवेशिक दौर के भारत के इतिहास पर आधारित उपन्यास
  2. वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली के जीवन पर आधारित उपन्यास
  3. देवांगना, आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का उपन्यास
  4. धर्म के नाम पर, धर्म के नाम पर की जाने वाली कुरीतियों पर प्रहार करता निबंध-संग्रह
  5. मेरी प्रिय कहानियाँ, कहानी संग्रह
रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 — 7 अगस्त 1941) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ:

  1. स्वदेश (1914), निबंध संग्रह
  2. राजा और प्रजा (1919), निबंध संग्रह
  3. विचित्र-प्रबन्ध (1924), निबंध संग्रह
  4. दो बहनें (1952), हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित उपन्यास।

आज का पाठ

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साबरमती आश्रम के दौरे के नोट्स कार्ल मालामुद द्वारा लिखे गए कोड स्वराज का एक अंश है जो प्रसंगवश मदर टेरेसा के व्यक्तित्व का परिचय कराता है।

"मानव हमें रात के खाने के लिए ताज होटल के जापानी रेस्तरां में ले गए। जैसे ही हमने ‘मात्सूतेक (Matsutake) सूप पिया और ‘सुशी' खाया, यकायक ही मदर टेरेसा के विषय पर बात आ गई।
मानव ने टिप्पणी की "ओह! उनमें तो कुछ बात थी!" मैंने पूछा कि क्या वह उनसे मिले थे। मानव मुस्कुराए, और मुझे बताया कि मदर टेरेसा ने उसके नामकरण समारोह की अध्यक्षता की थी। मैंने पूछा कि क्या वह कैथोलिक हैं, और वे हंसने लगे और कहा नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, वह मेरे परिवार की बेहद पुरानी दोस्त थीं। उसने अपना बटुआ निकाला और एक मुस्कुराती हुई मदर टेरेसा के साथ एक बच्चे के रूप में खुद की तस्वीर दिखाई।
मैं बेहद प्रभावित हुआ। फिर सैम ने कहा "हाँ, वे एक अनवरत काम करने वाली महिला थी। मुझे याद है वह एक बार, प्लेन पर मेरे पास आईं, और कहा सैम आपको यह पढ़ना चाहिये", और उन्होंने सैम को एक कार्ड दिया जिसपर बाइबल के कुछ शब्द लिखे हुए थे। उन्होंने ऐसा कई बार बहुत लोगों के साथ किया है, सैम ने कहा। उनके पास आज भी वह कार्ड है।
मैंने टिप्पणी की थी कि यह वास्तव में काफी उल्लेखनीय है, यहां हम चार लोग डिनर कर रहे थे और उनमें से दो लोग मदर टेरेसा को जानते थे। सैम और मानव ने हंसना शुरू कर दिया। दिनेश कोलकाता से सांसद हैं, जहां मदर टेरेसा का मुख्यालय था। दिनेश ने मुस्कुराते हुए समझाया कि वह और उनकी पत्नी अपनी छोटी कार में पूरे शहर में मदर टेरेसा के साथ घूमा करते थे। वह सामने की सीट पर बैठी होती थी, जो दिनेश और उनकी पत्नी को ड्राइव करने और कहाँ ड्राइव करना है, ये निर्देश देती थीं। जब वह नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने के बाद वापस आ गई, तो दिनेश ने उनके साथ दिल्ली से कोलकाता तक की यात्रा की और फिर उन्हें उनके घर तक छोड़ने गए। दिनेश ने टिप्पणी करते हुए कहा, "उनके पास अत्यंत दृढ़ इच्छा शक्ति थी"।
डिनर पर मौजूद चार लोगों में से तीन लोग मदर टेरेसा को व्यक्तिगत रूप से जानते थे। इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुआ। भारत से मुझे बहुत कुछ सीखना है। इसके चलते इस सत्याग्रह अभियान की संभावित सफलता पर मेरी आशाएं नवीकृत हुईं। अमेरिका और यूरोप के कानूनी आक्रमण के तहत आई घनघोर निराशा के अंधकार में आशा की किरण दिखाई दी, और भारत में मुझे निराशा के सुरंग के अंत में प्रकाश दिख रहा था। भारत में शायद लोग इस बात को सुने, यह सोंच कर मैंने भारत बार बार आने का संकल्प लिया।..."(पूरा पढ़ें)

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