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हनुमान

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श्री हनुमान
शक्ति, ज्ञान, भक्ति एवं विजय के भगवान, बुराई के सर्वोच्च विध्वंसक, भक्तों के रक्षक बल, बुद्धि और विद्या के दाता

हनुमान जी के बाल स्वरूप की प्रतिमा श्री घाटा मेहंदीपुर में
अन्य नाम महाबली , महावीर , पवनपुत्र ,फाल्गुनीशाखा,अंजनीसुत , केसरीनंदन , रामेष्ट , बजरंग बली : वायपुत्र, सीताशोकविनाशक, लक्ष्मण प्राणदाता, आदि
संबंध वानर, रुद्र अवतार, राम के भक्त
ग्रह पृथ्वी
मंत्र ॐ श्री हनुमते नमः
अस्त्र गदा , वज्र और ध्वजा
दिवस मंगलवार और शनिवार
वर्ण लाल
जीवनसाथी सुवर्चला
माता-पिता
भाई-बहन मतिमान , श्रुतिमान , गतिमान , केतुमान , धृतिमान (सगे छोटे भाई) , भीमसेन (सौतेले भाई)
संतान मकरध्वज (पसीने से उत्पन्न हुऐ)
सवारी वायु

हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) हिन्दुओं के आराध्य देवता हैं, अधिकतर स्थानों पर इन्हें भगवान शिव का अवतार बताया गया है जबकि कुछ स्थानों पर इन्हें भगवान शंकर और भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार का पुत्र भी लिखा गया है। वे भगवान राम के परम भक्त और प्रिय सखा हैं। हनुमान को 'चिरञ्जीवी' (चिर काल तक जीवित रहने वाले) माना जाता है।

जन्म[संपादित करें]

हनुमान वानरों के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजना के छः पुत्रों में सबसे बड़े और पहले पुत्र हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से

ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्रमेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के हरियाणा राज्य के कैथल जिले में हुआ था जिसे पहले कपिस्थल कहा जाता था।

इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नन्दन का अर्थ बेटा है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नन्दन" ( वायु का बेटे) हैं।

बाल्यकाल, शिक्षा एवँ श्राप[संपादित करें]

हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे, इसी कारण उन्हे पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही दिव्य होने के साथ साथ उनके अन्दर असीमित शक्तियों का भण्डार था।

हनुमान सूरज को फल मानते हुए पकड़ने के लिए आगे बढ़ते हैं।

इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उदय होते हुए सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"

राहु की यह बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये। यद्यपि वज्र के प्रभाव ने हनुमान की ठुड्डी पे कभी ना मिटने वाला चिन्ह छोड़ दिया। तदुपरान्त जब हनुमान को सुर्य के महाग्यानि होने का पता चला तो उन्होंने अपने शरीर को बड़ा करके सुर्य की कक्षा में रख दिया और सुर्य से विनती की कि वो उन्हें अपना शिष्य स्वीकार करें। मगर सुर्य ने उनका अनुरोध ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि चुंकि वो अपने कर्म स्वरूप सदैव अपने रथ पे भ्रमण करते रहते हैं, अतः हनुमान प्रभावपूर्ण तरीके से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाएँगे। सुर्य देव की बातों से विचलित हुए बिना हनुमान ने अपने शरीर को और बड़ा करके अपने एक पैर को पूर्वी छोर पे और दूसरे पैर को पश्चिमी छोर पे रखकर पुनः सुर्य देव से विनती की और अंततः हनुमान के सतात्य(दृढ़ता) से प्रसन्न होकर सुर्य ने उन्हें अपना शिष्य स्वीकार कर लिया। तदोपरान्त हनुमान ने सुर्य देव के साथ निरंतर भ्रमण करके अपनी शिक्षा ग्रहण की। शिक्षा पूर्ण होने के ऊपरांत हनुमान ने सुर्य देव से गुरु-दक्षिणा लेने के लिये आग्रह किया परन्तु सुर्य देव ने ये कहकर मना कर दिया कि 'तुम जैसे समर्पित शिष्य को शिक्षा प्रदान करने में मैने जिस आनंद की अनुभूती की है वो किसी गुरु-दक्षिणा से कम नहीं है'।

परन्तु हनुमान के पुनः आग्रह करने पर सुर्य देव ने गुरु-दक्षिणा स्वरूप हनुमान को सुग्रीव(धर्म पुत्र-सुर्य)की सहायता करने की आज्ञा दे दी। हनुमान के इच्छानुसार सुर्य देव का हनुमान को शिक्षा देना सुर्य देव के अनन्त, अनादि, नित्य, अविनाशी और कर्म-साक्षी होने का वर्णन करता है।

हनुमान जी बालपन मे बहुत नटखट थे, वो अपने इस स्वभाव से साधु-संतों को सता देते थे। बहुधा वो उनकी पूजा सामग्री और आदि कई वस्तुओं को छीन-झपट लेते थे। उनके इस नटखट स्वभाव से रुष्ट होकर साधुओं ने उन्हें अपनी शक्तियों को भूल जाने का एक लघु शाप दे दिया। इस शाप के प्रभाव से हनुमान अपनी सब शक्तियों को अस्थाई रूप से भूल जाते थे और पुनः किसी अन्य के स्मरण कराने पर ही उन्हें अपनी असीमित शक्तियों का स्मरण होता था। ऐसा माना जाता है कि अगर हनुमान शाप रहित होते तो रामायण में राम-रावण युद्ध का स्वरूप पृथक(भिन्न, न्यारा) ही होता। कदाचित वो स्वयं ही रावण सहित सम्पूर्ण लंका को समाप्त कर देते।

हनुमानजी के जीवन की प्रमुख घटनाएं[संपादित करें]

रामायण के सुन्दर-काण्ड में हनुमान जी के साहस और देवाधीन कर्म का वर्णन किया गया है। हनुमानजी की भेंट रामजी से उनके वनवास के समय तब हुई जब रामजी अपने भ्राता लछ्मन के साथ अपनी पत्नी सीता की खोज कर रहे थे। सीता माता को लंकापति रावण छल से हरण करके ले गया था। सीताजी को खोजते हुए दोनो भ्राता ॠषिमुख पर्वत के समीप पँहुच गये जहाँ सुग्रीव अपने अनुयाईयों के साथ अपने ज्येष्ठ भ्राता बाली से छिपकर रहते थे। वानर-राज बाली ने अपने छोटे भ्राता सुग्रीव को एक गम्भीर मिथ्याबोध के चलते अपने साम्राज्य से बाहर निकाल दिया था और वो किसी भी तरह से सुग्रीव के तर्क को सुनने के लिये तैयार नहीं था। साथ ही बाली ने सुग्रीव की पत्नी को भी अपने पास बलपूर्वक रखा हुआ था। राम और लछ्मण को आता देख सुग्रीव ने हनुमान को उनका परिचय जानने के लिये भेजा। हनुमान् एक ब्राह्मण के वेश में उनके समीप गये। हनुमान के मुख़ से प्रथम शब्द सुनते ही श्रीराम ने लछ्मण से कहा कि कोई भी बिना वेद-पुराण को जाने ऐसा नहीं बोल सकता जैसा इस ब्राह्मण ने बोला। रामजी को उस ब्राह्मण के मुख, नेत्र, माथा, भौंह या अन्य किसी भी शारीरिक संरचना से कुछ भी मिथ्या प्रतीत नहीं हुआ। रामजी ने लछ्मण से कहा कि इस ब्राह्मण के मन्त्रमुग्ध उच्चारण को सुनके तो शत्रु भी अस्त्र त्याग देगा। उन्होंने ब्राह्मण की और प्रसन्नसा करते हुए कहा कि वो नरेश(राजा) निःसंकोच ही सफ़ल होगा जिसके पास ऐसा गुप्तचर होगा। श्रीराम के मुख़ से इन सब बातों को सुनकर हनुमानजी ने अपना वास्तविक रूप धारण किया और श्रीराम के चरणों में नतमष्तक हो गये। श्रीरम ने उन्हें उठाकर अपने ह्र्दय से लगा लिया। उसी दिन एक् भक्त और भगवान का हनुमान और प्रभु राम के रूप मे अटूट और अनश्वर मिलन हुआ। ततपश्चात हनुमान ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता करवाई। इसके पश्चात ही श्रीराम ने बाली को मारकर सुग्रीव को उनका सम्मान और गौरव वापस दिलाया और लंका युद्ध में सुग्रीव ने अपनी वानर सेना के साथ श्रीराम का सहयोग दिया। सीता माता की खोज में वानरों का एक दल दक्षिण तट पे पँहुच गया। मगर इतने विशाल सागर को लांघने का साहस किसी में भी नहीं था। स्वयं हनुमान भी बहुत चिन्तित थे कि कैसे इस समस्या का समाधान निकाला जाये। उसी समय जामवन्त और बाकी अन्य वानरों ने हनुमान को उनकी अदभुत शक्तियों का स्मरण कराया। अपनी शक्तियों का स्मरण होते ही हनुमान ने अपना रूप विस्तार किया और पवन-वेग से सागर को उड़के पार करने लगे। रास्ते में उन्हें एक पर्वत मिला और उसने हनुमान से कहा कि उनके पिता का उसके ऊपर ॠण है, साथ ही उस पर्वत ने हनुमान से थोड़ा विश्राम करने का भी आग्रह किया मगर हनुमान ने किन्चित मात्र भी समय व्यर्थ ना करते हुए पर्वतराज को धन्यवाद किया और आगे बढ़ चले। आगे चलकर उन्हें एक राक्षसी मिली जिसने कि उन्हें अपने मुख में घुसने की चुनौती दी, परिणामस्वरूप हनुमान ने उस राक्षसी की चुनौती को स्वीकार किया और बड़ी ही चतुराई से अति लघुरूप धारण करके राक्षसी के मुख में प्रवेश करके बाहर आ गये। अंत में उस राक्षसी ने संकोचपूर्वक ये स्वीकार किया कि वो उनकी बुद्धिमता की परीक्षा ले रही थी।

आखिरकार हनुमान सागर पार करके लंका पँहुचे और लंका की शोभा और सुनदरता को देखकर आश्चर्यचकित रह गये। और उनके मन में इस बात का दुःख भी हुआ कि यदी रावण नहीं माना तो इतनी सुन्दर लंका का सर्वनाश हो जायेगा। ततपश्चात हनुमान ने अशोक-वाटिका में सीतजी को देखा और उनको अपना परिचय बताया। साथ ही उन्होंने माता सीता को सांत्वना दी और साथ ही वापस प्रभु श्रीराम के पास साथ चलने का आग्रह भी किया। मगर माता सीता ने ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि ऐसा होने पर श्रीराम के पुरुषार्थ् को ठेस पँहुचेगी। हनुमान ने माता सीता को प्रभु श्रीराम के सन्देश का ऐसे वर्णन किया जैसे कोई महान ज्ञानी लोगों को ईश्वर की महानता के बारे में बताता है।

माता सीता से मिलने के पश्चात, हनुमान प्रतिशोध लेने के लिये लंका को तहस-नहस करने लगे। उनको बंदी बनाने के लिये रावण पुत्र मेघनाद(इन्द्रजीत) ने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया। ब्रम्ह्मा जी का सम्मान करते हुए हनुमान ने स्वयं को ब्रम्हास्त्र के बन्धन मे बन्धने दिया। साथ ही उन्होंने विचार किया कि इस अवसर का लाभ उठाकर वो लंका के विख्यात रावण से मिल भी लेंगे और उसकी शक्ति का अनुमान भी लगा लेंगे। इन्हीं सब बातों को सोचकर हनुमान ने स्वयं को रावण के समक्ष बंदी बनकर उपस्थित होने दिया। जब उन्हे रावण के समक्ष लाया गया तो उन्होंने रावण को प्रभु श्रीराम का चेतावनी भरा सन्देश सुनाया और साथ ही ये भी कहा कि यदि रावण माता सीता को आदर-पूर्वक प्रभु श्रीराम को लौटा देगा तो प्रभु उसे क्षमा कर देंगे।

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हनुमानजी माता सीता के साथ

क्रोध मे आकर रावण ने हनुमान को मृत्यु दण्ड देने का आदेश दिया मगर रावण के छोटे भाई विभीषण ने ये कहकर बीच-बचाव किया कि एक दूत को मारना आचारसंहिता के विपरीत है। ये सुनकर रावण ने हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिय। जब रावण के सैनिक हनुमान की पूंछ मे कपड़ा लपेट रहे थे तब हनुमान ने अपनी पूंछ को खूब लम्बा कर लिया और सैनिकों को कुछ समय तक परेशान करने के पश्चात पूंछ मे आग लगाने का अवसर दे दिया। पूंछ मे आग लगते ही हनुमान ने बन्धनमुक्त होके लंका को जलाना शुरु कर दिया और अंत मे पूंछ मे लगी आग को समुद्र मे बुझा कर वापस प्रभु श्रीराम के पास आ गये। लंका युद्ध में जब लछमण मूर्छित हो गये थे तब हनुमान जी को ही द्रोणागिरी पर्वत पर से संजीवनी बूटी लाने भेजा गया मगर वो बूटी को भली-भांती पहचान नहीं पाये, और पुनः अपने पराक्रम का परिचय देते हुए वो पूरा द्रोणागिरी पर्वत ही रण-भूमि में उठा लाये और परिणामस्वरूप लछमण के प्राण की रक्षा की। भावुक होकर श्रीराम ने हनुमान को ह्र्दय से लगा लिया और बोले कि हनुमान तुम मुझे भ्राता भरत की भांति ही प्रिय हो।

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हनुमान का पंचमुखी अवतार भी रामायण युद्ध् कि ही एक घटना है। अहिरावण जो कि काले जादू का ग्याता था, उसने राम और लछमण का सोते समय हरण कर लिया और उन्हें विमोहित करके पाताल-लोक में ले गया। उनकी खोज में हनुमान भी पाताललोक पहुँच गये। पाताल-लोक के मुख्यद्वार एक युवा प्राणी मकरध्वज पहरा देता था जिसका आधा शरीर मछली का और आधा शरीर वानर का था। मकरध्वज के जन्म कि कथा भी बहुत रोचक है। यद्यपि हनुमान ब्रह्मचारी थे मगर मकरध्वज उनका ही पुत्र था। लंका दहन के पश्चात जब हनुमान पूँछ में लगी आग को बुझाने समुद्र में गये तो उनके पसीने की बूंद समुद्र में गिर गई। उस बूंद को एक मछली ने पी लिया और वो गर्भवती हो गई। इस बात का पता तब चला जब उस मछली को अहिरावण की रसोई में लाया गया। मछली के पेट में से जीवित बचे उस विचित्र प्राणी को निकाला गया। अहिरवण ने उसे पाल कर बड़ा किया और उसे पातालपुरी के द्वार का रक्षक बना दिया।

हनुमान इन सभी बातों से अनिभिज्ञ थे। यद्यपि मकरध्वज को पता था कि हनुमान उसके पिता हैं मगर वो उन्हें पहचान नहीं पाया क्योंकि उसने पहले कभी उन्हें देखा नहीं था। जब हनुमान ने अपना परिचय दिया तो वो जान गया कि ये मेरे पिता हैं मगर फिर भि उसने हनुमान के साथ युद्ध करने का निश्चय किया क्योंकि पातालपुरि के द्वार की रक्षा करना उसका प्रथम कर्तव्य था। हनुमान ने बड़ी आसानी से उसे अपने आधीन कर लिया और पातलपुरी के मुख्यद्वार पर बाँध दिया। पातालपुरी में प्रवेश करने के पश्चात हनुमान ने पता लगा लिया कि अहिरावण का वध करने के लिये उन्हे पाँच दीपकों को एक साथ बुझाना पड़ेगा। अतः उन्होंने पन्चमुखी अवतार(श्री वराह, श्री नरसिम्हा, श्री गरुण, श्री हयग्रिव और स्वयं) धारण किया और एक साथ में पाँचों दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया। अहिरावण का वध होने के पश्चात हनुमान ने प्रभु श्रीराम के आदेशानुसार मकरध्वज को पातालपुरि का नरेश बना दिया। युद्ध समाप्त होने के साथ ही श्रीराम का चौद्ह वर्ष का वनवास भी समाप्त हो चला था। तभी श्रीराम को स्मरण हुआ कि यदि वो वनवास समाप्त होने के साथ ही अयोध्या नहीं पँहुचे तो भरत अपने प्राण त्याग देंगे। साथ ही उनको इस बात का भी आभास हुआ कि उन्हें वहाँ वापस जाने में अंतिम दिन से थोड़ा विलम्ब हो जायेगा, इस बात को सोचकर श्रीराम चिंतित थे मगर हनुमान ने अयोध्या जाकर श्रीराम के आने की जानकारी दी और भरत के प्राण बचाकर श्रीराम को चिंता मुक्त किय।

अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद प्रभु श्रीराम ने उन सभी को सम्मानित करने का निर्णय लिया जिन्होंने लंका युद्ध में रावण को पराजित करने में उनकी सहायता की थी। उनकी सभा में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया जिसमें पूरी वानर सेना को उपहार देकर सम्मानित किया गया। हनुमान को भी उपहार लेने के लिये बुलाया गया, हनुमान मंच पर गये मगर उन्हें उपहार की कोई जिज्ञासा नहीं थी। हनुमान को ऊपर आता देखकर भावना से अभिप्लुत श्रीराम ने उन्हें गले लगा लिया और कहा कि हनुमान ने अपनी निश्छल सेवा और पराक्रम से जो योगदान दिया है उसके बदले में ऐसा कोई उपहार नहीं है जो उनको दिया जा सके। मगर अनुराग स्वरूप माता सीता ने अपना एक मोतियों का हार उन्हें भेंट किया। उपहार लेने के उपरांत हनुमान माला के एक-एक मोती को तोड़कर देखने लगे, ये देखकर सभा में उपस्थित सदस्यों ने उनसे इसका कारण पूछा तो हनुमान ने कहा कि वो ये देख रहे हैं मोतियों के अन्दर उनके प्रभु श्रीराम और माता सीता हैं कि नहीं, क्योंकि यदि वो इनमें नहीं हैं तो इस हार का उनके लिये कोई मूल्य नहीं है। ये सुनकर कुछ लोगों ने कहा कि हनुमान के मन में प्रभु श्रीराम और माता सीता के लिये उतना प्रेम नहीं है जितना कि उन्हें लगता है। इतना सुनते ही हनुमान ने अपनी छाती चीर के लोगों को दिखाई और सभी ये देखकर स्तब्द्ध रह गये कि वास्त्व में उनके ह्रदय में प्रभु श्रीराम और माता सीता की छवि विद्यमान थी।

Hanuman_before_Rama

हनुमान का नामकरण[संपादित करें]

इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत: में हनु ) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि।

हनुमान जी के 12 नाम

हनुमान जी का रुप[संपादित करें]

हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है। उनके मुख पर जो तेज है वह अतुलनीय है । उनका शरीर पर्वत के समान विशाल और कठोर है उनके मुख पर सदेव राम नाम की धुन रहती है।

ग्रंथों में[संपादित करें]

हिन्दू धर्म[संपादित करें]

रामायण[संपादित करें]

रामायण का पाँचवाँ काण्ड (सुन्दरकाण्ड), हनुमान पर केंद्रित है। असुरराज रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था, जिसके बाद 14 साल के वनवास के आखिरी साल में हनुमान राम से मिलते हैं। अपने भाई लक्ष्मण के साथ, राम अपनी पत्नी सीता को खोज रहे हैं। यह और संबंधित राम कथाएं हनुमान के बारे में सबसे व्यापक कहानियां हैं।

रामायण के कई संस्करण भारत के भीतर मौजूद हैं। ये हनुमान, राम, सीता, लक्ष्मण और रावण के रूपांतर प्रस्तुत करते हैं। वर्ण और उनके विवरण अलग-अलग हैं, कुछ मामलों में काफी महत्वपूर्ण हैं।

महाभारत[संपादित करें]

महाभारत एक और प्रमुख महाकाव्य है जिसमें हनुमान का संक्षिप्त उल्लेख है। पुस्तक 3 में, महाभारत के वाना पर्व, उन्हें भीमसेन के सौतेले बड़े भाई के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो उनसे कैलाश पर्वत पर जाने के दौरान गलती से मिलते हैं। असाधारण ताकत का आदमी भीम, हनुमान की पूंछ को हिलाने में असमर्थ है, जिससे उसे एहसास होता है और हनुमान की ताकत को स्वीकार करता है। यह कहानी हनुमान चरित्र के प्राचीन कालक्रम से जुड़ी है। यह कलाकृति और राहत का एक हिस्सा भी है जैसे विजयनगर खंडहर।

अन्य साहित्य[संपादित करें]

रामायण और महाभारत के अलावा, हनुमान का उल्लेख कई अन्य ग्रंथों में किया गया है। इनमें से कुछ कहानियाँ पहले के महाकाव्यों में उल्लिखित उनके कारनामों से जुड़ती हैं, जबकि अन्य उनके जीवन की वैकल्पिक कहानियाँ बताती हैं। स्कंद पुराण में रामेश्वरम में हनुमान का उल्लेख है।

शिव पुराण के एक दक्षिण भारतीय संस्करण में, हनुमान को शिव और मोहिनी (विष्णु का महिला अवतार) के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है, या वैकल्पिक रूप से उनकी पौराणिक कथाओं को स्वामी अय्यप्पा के मूल के साथ जोड़ा या विलय कर दिया गया है, जो दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय हैं ।

हनुमान चालीसा[संपादित करें]

16 वीं शताब्दी के भारतीय कवि तुलसीदास ने हनुमान को समर्पित एक भक्ति गीत हनुमान चालीसा लिखा था। उन्होंने हनुमान के साथ आमने-सामने मुलाकात करने का दावा किया। इन बैठकों के आधार पर, उन्होंने रामचरितमानस, रामायण का एक अवधी भाषा संस्करण लिखा।

देवी अथवा शक्ति के साथ संबंध[संपादित करें]

हनुमान और देवी काली के बीच संबंध का उल्लेख कृतिवसी रामायण में मिलता है। उनकी बैठक रामायण के युधिष्ठिर में माहिरावन की कथा में होती है। माहिरावन रावण का विश्वसनीय मित्र / भाई था। अपने बेटे, मेघनाथ के मारे जाने के बाद, रावण ने राम और लक्ष्मण को मारने के लिए पाताललोक के राजा महिरावण की मदद ली। एक रात, महिरावण ने अपनी माया का उपयोग करते हुए, विभीषण का रूप धारण किया और राम के शिविर में प्रवेश किया। वहाँ उन्होंने वानर सेना पर निंद्रा मंत्र डाला, राम और लक्ष्मण का अपहरण किया और उन्हें पाताल लोक ले गए। वह देवी के एक अनुगामी भक्त थे और रावण ने उन्हें अयोध्या के बहादुर सेनानियों को देवी को बलिदान करने के लिए मना लिया, जिसके लिए माहिरावन सहमत हुए। हनुमान ने विभीषण से पाताल का रास्ता समझने के बाद अपने प्रभु को बचाने के लिए जल्दबाजी की। अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने मकरध्वज से मुलाकात की, जिन्होंने हनुमान के पुत्र होने का दावा किया, उनके पसीने से पैदा हुआ था जो एक मकर (मगरमच्छ) द्वारा खाया गया था। हनुमान ने उसे हरा दिया और उसे बांध दिया और महल के अंदर चले गए। वहाँ उसकी मुलाकात चंद्रसेन से हुई जिसने बलिदान और अहिरावण को मारने के तरीके के बारे में बताया। तब हनुमान ने मधुमक्खी के आकार को छोटा किया और महा-काली की विशाल मूर्ति की ओर बढ़ गए। उसने उसे राम को बचाने के लिए कहा, और भयंकर माता देवी ने हनुमान की जगह ले ली, जबकि वह नीचे फिसल गया था। जब महावीर ने राजकुमार-ऋषियों को झुकने के लिए कहा, तो उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि वे शाही वंश के थे और झुकना नहीं जानते थे। इसलिए जैसे ही माहिरावण उन्हें झुकाने का तरीका दिखाने वाले थे, हनुमान ने अपना पंच-मुख रूप (गरुड़, नरसिंह, वराह, हयग्रीव और स्वयं के सिर के साथ) लिया: प्रत्येक सिर एक विशेष प्रतीक को दर्शाता है। हनुमान साहस और शक्ति, नरसिंह निडरता, गरुड़। जादुई कौशल और नाग के काटने, वराह स्वास्थ्य और भूत भगाने और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति), 5 दिशाओं में 5 तेल के दीपक फूँक दिए और माहिरावन का सिर काट दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। बाद में उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण को अपने कंधों पर लिया और जब उन्होंने श्री राम के बाहर उड़ान भरी तो उन्होंने मकरध्वज को अपनी पूंछ से बंधा देखा। उन्होंने तुरंत हनुमान को उन्हें पाताल का राजा बनाने का आदेश दिया। अहिरावण की कहानी पूरब के रामायणों में अपना स्थान पाती है। यह कृतिबश द्वारा लिखित रामायण के बंगाली संस्करण में पाया जा सकता है। इस घटना के बारे में बात करने वाले मार्ग को 'महिराबोनरपाला' के नाम से जाना जाता है। यह भी माना जाता है कि हनुमान से प्रसन्न होने के बाद, देवी काली ने उन्हें अपने द्वार-पाल या द्वारपाल होने का आशीर्वाद दिया और इसलिए देवी के मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव और हनुमान पाए जाते हैं।

बौद्ध धर्म[संपादित करें]

हनुमान तिब्बती (दक्षिण-पश्चिम चीन) और खोतानी (पश्चिम चीन, मध्य एशिया और उत्तरी ईरान) रामायण के संस्करणों में एक बौद्ध चमक के साथ दिखाई देते हैं। खोतानी संस्करणों में जातक कथाएँ जैसे विषय होते हैं, लेकिन आमतौर पर हनुमान की कहानी और चरित्र में हिंदू ग्रंथों के समान होते हैं। तिब्बती संस्करण अधिक सुशोभित है, और जाटका चमक को शामिल करने के प्रयासों के बिना। इसके अलावा, तिब्बती संस्करण में, हनुमान जैसे राम और सीता के बीच प्रेम पत्र रखने वाले उपन्यास तत्व दिखाई देते हैं, हिंदू संस्करण के अलावा जिसमें राम सीता को एक संदेश के रूप में उनके साथ शादी की अंगूठी भेजते हैं। इसके अलावा, तिब्बती संस्करण में, राम ने हनुमान को चिट्ठियों के माध्यम से उनके साथ अधिक बार नहीं होने के लिए कहा, जिसका अर्थ है कि बंदर-दूत और योद्धा एक सीखा जा रहा है जो पढ़ और लिख सकता है।

जैन धर्म[संपादित करें]

विमलसूरि द्वारा लिखे गए रामायण के जैन संस्करण पउमचरिउ (पद्मचरित) में हनुमान का उल्लेख एक दिव्य वानर के रूप में नहीं, बल्कि एक विद्याधरा (एक अलौकिक प्राणी, जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान में मृगमरीचिका) के रूप में किया गया है। वह पवनगति (पवन देवता) और अंजना सुंदरी के पुत्र हैं। अंजना अपने ससुराल वालों द्वारा निर्वासित होने के बाद, एक जंगल की गुफा में हनुमान को जन्म देती है। उसके मामा ने उसे जंगल से बचाया; अपने विमना पर सवार होते हुए, अंजना गलती से अपने बच्चे को एक चट्टान पर गिरा देती है। हालांकि, चट्टान नदारद होने के बावजूद बच्चा अधूरा रह गया। बच्चे की परवरिश हनुरहा में हुई है।

हिंदू ग्रंथ में प्रमुख अंतर हैं: हनुमान जैन ग्रंथों में एक अलौकिक व्यक्ति हैं, (राम एक पवित्र जैन हैं, जो कभी किसी को नहीं मारते हैं, और यह लक्ष्मण हैं जो रावण को मारते हैं।) हनुमान उनसे मिलने और उनके बारे में जानने के बाद राम के समर्थक बन जाते हैं। रावण द्वारा सीता का अपहरण। वह राम की ओर से लंका जाता है, लेकिन रावण को सीता को छोड़ने के लिए मना नहीं पाता है। अंततः, वह रावण के खिलाफ युद्ध में राम के साथ जुड़ जाता है और कई वीर कर्म करता है। बाद में जैन ग्रंथ, जैसे कि उत्तरपुराण (9 वीं शताब्दी सीई) गुनभद्र और अंजना-पवनंजय (12 वीं शताब्दी सीई), एक ही कहानी बताते हैं।

(जैन रामायण कथा के कई संस्करणों में, हनुमान को समझाने वाले मार्ग हैं, और राम (जैन धर्म में पौमा कहलाते हैं), (इन संस्करणों में हनुमान अंततः सभी सामाजिक जीवन को त्याग कर जैन सन्यासी बन जाते हैं)।

सिख धर्म[संपादित करें]

सिख धर्म में, हिंदू भगवान राम को श्री राम चंदर के रूप में संदर्भित किया गया है, और एक सिद्ध के रूप में हनुमान की कहानी प्रभावशाली रही है। 1699 में मार्शल सिख खालसा आंदोलन के जन्म के बाद, 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के दौरान, हनुमान खालसा द्वारा श्रद्धा की प्रेरणा और उद्देश्य थे।कुछ खालसा रेजीमेंट हनुमान छवि के साथ युद्ध के मैदान में लाई गईं। हिरदा राम भल्ला द्वारा रचित हनुमान नाटक, और कविकान द्वारा दास गुर कथा जैसे सिख ग्रंथ हनुमान के वीर कर्मों का वर्णन करते हैं।लुई फेनच के अनुसार, सिख परंपरा में कहा गया है कि गुरु गोविंद सिंह हनुमान नाटक के प्रिय पाठक थे।

दक्षिण-पूर्व एशियाई ग्रंथ[संपादित करें]

रामायण के गैर-भारतीय संस्करण मौजूद हैं, जैसे थाई रामाकियन। रामायण के इन संस्करणों के अनुसार, मैकचनु सुवर्णमचा द्वारा जन्मे हनुमान के पुत्र हैं, जब "रावण के महल में आग लगाने के बाद हनुमान उड़ते हैं, अत्यधिक गर्मी से उनका शरीर और समुद्र में गिरने पर उनके पसीने की एक बूंद जो एक शक्तिशाली मछली द्वारा खाई जाती है" उसने स्नान किया और उसने रावण की बेटी मच्चनू को जन्म दिया।

एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि मत्स्यराज (जिसे मकरध्वज या मत्स्यगर्भा के नाम से भी जाना जाता है) नामक एक राक्षसी उनके पुत्र होने का दावा करती है। मत्स्यराज का जन्म इस प्रकार बताया गया है: एक मछली (मत्स्य) को हनुमान के पसीने की बूंदों से लगाया गया था, जब वह समुद्र में स्नान कर रही थी। दक्षिण-पूर्व एशियाई ग्रंथों में हनुमान बर्मीज़ रामायण में विभिन्न तरीकों से उत्तर भारतीय हिंदू संस्करण से भिन्न होते हैं, जैसे कि राम यगन, अलौंग राम थायगिन (अराकानी बोली में), राम वटु और राम थायीन, मलय रामायण, जैसे हिकायत श्री राम। और हिकायत महाराजा रावण, और रामायण जैसे थाई रामायण। हालाँकि, कुछ मामलों में, कहानी के पहलू हिंदू संस्करणों और रामायण के बौद्ध संस्करणों के समान हैं जो भारतीय उपमहाद्वीप में कहीं और पाए जाते हैं। वाल्मीकि रामायण मूल पवित्र ग्रन्थ है; अन्य लोगों को लोक नृत्य की तरह कला प्रदर्शन के लिए कवियों द्वारा संस्करण संपादित किए जाते हैं, रामायण की सच्ची कहानी वाल्मीकि है, ऋषि वाल्मीकि को आदिकवि "पहला कवि" के रूप में जाना जाता है।

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श्री बालाजी महाराज सन्जीवनी बूटी का पर्वत उठाए हुए।

बारह नाम , उनके अर्थ और उनका महत्व[संपादित करें]

  • हनुमान - जिनकी ठोड़ी टूटी हो
  • रामेष्ट - श्री राम भगवान के भक्त
  • उधिकर्मण - उद्धार करने वाले
  • अंजनीसुत - अंजनी के पुत्र
  • फाल्गुनसखा - फाल्गुन अर्थात् अर्जुन के सखा
  • सीतासोकविनाशक - देवी सीता के शोक का विनाश करने वाले
  • वायुपुत्र - हवा के पुत्र
  • पिंगाक्ष - भूरी आँखों वाले
  • लक्ष्मण प्राणदाता - लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले
  • महाबली - बहुत शक्तिशाली वानर
  • अमित विक्रम - अत्यन्त वीरपुरुष
  • दशग्रीव दर्प: - रावण के गर्व को दूर करने वाले


इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

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