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महुआ

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महुआ
Madhuca longifolia
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: Plantae
विभाग: Magnoliophyta
वर्ग: Magnoliopsida
गण: Ericales
कुल: Sapotaceae
वंश: Madhuca
जाति: M. longifolia
द्विपद नाम
Madhuca longifolia
(J.Konig) J.F.Macbr.
महुआ की पतली डाली, पत्तियाँ और फल

महुआ (वानस्पतिक नाम : Madhuca longifolia/mahua लोंगफोलिआ) एक भारतीय उष्णकटिबन्धीय वृक्ष है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। यह एक तेजी से बढ़ने वाला वृक्ष है जो लगभग 25 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ सकता है। इसके पत्ते आमतौर पर वर्ष भर हरे रहते हैं। यह पादपों के सपोटेसी परिवार से सम्बन्ध रखता है। यह शुष्क पर्यावरण के अनुकूल ढल गया है, यह मध्य भारत के उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन का एक प्रमुख पेड़ है। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश देवडे़ बिरसावादी जयस बिरसा ब्रिगेड ने बताया कि-"महुआ के पेड़ और प्राचीन आदिवासी समाज का बहुत गहरा नाता है, जब अनाज नहीं था तब आदिम आदिवासी समाज के लोग महुआ के फल को खाकर अपना जीवन गुजारते थे, आदिवासी समाज के पारंपरिक सांस्कृतिक लोकगीतों में महुआ के गीत गाए जाते हैं। विशेष प्राकृतिक अवसरों पर आज भी महुआ के पेड़ कीस पूजा की जाती है।"महुआ के फूलों का आदिवासी भोजन के रूप मे उपयोग करते है। जैसे डोकला, हलवा, आटे मे मिलाकर चिला बनाते थे। आज भी सेक कर खाते है। जीविका का प्रमुख स्त्रोत है।

महुआ का वृक्ष

महुआ भारतवर्ष के सभी भागों में होता है और पहाड़ों पर तीन हजार फुट की ऊँचाई तक पाया जाता है। इसकी पत्तियाँ पाँच सात अंगुल चौड़ी, दस बारह अंगुल लंबी और दोनों ओर नुकीली होती हैं। पत्तियों का ऊपरी भाग हलके रंग का और पीठ भूरे रंग की होती है। हिमालय की तराई तथा पंजाब के अतिरिक्त सारे उत्तरीय भारत तथा दक्षिण में इसके जंगल पाए जाते हैं जिनमें वह स्वच्छंद रूप से उगता है। पर पंजाब में यह सिवाय बागों के, जहाँ लोग इसे लगाते हैं और कहीं नहीं पाया जाता। इसका पेड़ ऊँचा और छतनार होता है और डालियाँ चारों और फैलती है। यह पेड़ तीस-चालीस हाथ ऊँचा होता है और सब प्रकार की भूमि पर होता है। इसके फूल, फल, बीज लकड़ी सभी चीजें काम में आती है। इसका पेड़ बीस-पचीस वर्ष में फूलने और फलने लगता और सैकडों वर्ष तक फूलता फलता है।

प्रजातियाँ

भारत में इसकी बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती हैं। दक्षिणी भारत में इसकी लगभग 12 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें 'ऋषिकेश', 'अश्विनकेश', 'जटायुपुष्प' प्रमुख हैं। ये महुआ के मुकाबले बहुत ही कम उम्र में 4-5 वर्ष में ही फल-फूल देने लगते हैं। इसका उपयोग सवगंघ बनाने के लिए लाया जाता है तथा इसके पेड़ महुआ के मुकाबले कम उचाई के होते हैं।

महुआ के फूल

इसकी पत्तियाँ फूलने के पहले फागुन-चैत में झड़ जाती हैं। पत्तियों के झड़ने पर इसकी डालियों के सिरों पर कलियों के गुच्छे निकलने लगते हैं जो कूर्ची के आकार के होते है। इसे महुए का कुचियाना कहते हैं। कलियाँ बढ़ती जाती है और उनके खिलने पर कोश के आकार का सफेद फूल निकलता है जो गुदारा और दोनों ओर खुला हुआ होता है और जिसके भीतर जीरे होते हैं। यही फूल खाने के काम में आता है और 'महुआ' कहलाता है। महुए का फूल बीस-बाइस दिन तक लगातार टपकता है। महुए के फूल में चीनी का प्रायः आधा अंश होता है, इसी से पशु, पक्षी और मनुष्य सब इसे चाव से खाते हैं। इसके रस में विशेषता यह होती है कि उसमें रोटियाँ पूरी की भाँति पकाई जा सकती हैं। इसका प्रयोग हरे और सूखे दोनों रूपों में होता है। हरे महुए के फूल को कुचलकर रस निकालकर पूरियाँ पकाई जाती हैं और पीसकर उसे आटे में मिलाकर रोटियाँ बनाते हैं। जिन्हें 'महुअरी' कहते हैं। सूखे महुए को भूनकर उसमें पियार, पोस्ते के दाने आदि मिलाकर कूटते हैं। इस रूप में इसे 'लाटा' कहते हैं। इसे भिगोकर और पीसकर आटे में मिलाकर 'महुअरी' बनाई जाती है। हरे और सूखे महुए लोग भूनकर भी खाते हैं। गरीबों के लिये यह बड़ा ही उपयोगी होता है। यह गायों, भैसों को भी खिलाया जाता है जिससे वे मोटी होती हैं और उनका दूध बढ़ता है। इससे शराब भी खींची जाती है। महुए की शराब को संस्कृत में 'माध्वी' और आजकल के गँवरा 'ठर्रा' कहते हैं। महुए का सूखा फूल बहुत दिनों तक रहता है और बिगड़ता नहीं।

महुआ के फल

इसका फल परवल के आकार का होता है और 'कलेन्दी' कहलाता है। इसे छीलकर, उबालकर और बीज निकालकर तरकारी (सब्जी ) भी बनाई जाती है।

महुआ के बीज

फल के बीच में एक बीज होता है जिससे तेल निकलता है। वैद्यक में महुए के फूल को मधुर, शीतल, धातु-वर्धक तथा दाह, पित्त और बात का नाशक, हृदय को हितकर औऱ भारी लिखा है। इसके फल को शीतल, शुक्रजनक, धातु और बलबंधक, वात, पित्त, तृपा, दाह, श्वास, क्षयी आदि को दूर करनेवाला माना है। छाल रक्तपितनाशक और व्रणशोधक मानी जाती है। इसके तेल को कफ, पित्त और दाहनाशक और सार को भूत-बाधा-निवारक लिखा है।

महुआ के बीज स्वस्थ वसा (हैल्दी फैट) का अच्छा स्रोत हैं। इसका इस्तेमाल मक्खन बनाने के लिए किया जाता है।

महुआ के हर हिस्से में विभिन्न पोषक तत्व मौजूद हैं। गर्म क्षेत्रों में इसकी खेती इसके स्निग्ध (तैलीय) बीजों, फूलों और लकड़ी के लिये की जाती है। कच्चे फलों की सब्जी भी बनती है। पके हुए फलों का गूदा खाने में मीठा होता है। प्रति वृक्ष उसकी आयु के अनुसार सालाना 20 से 200 किलो के बीच बीजों का उत्पादन कर सकते हैं। इसके तेल का प्रयोग (जो सामान्य तापमान पर जम जाता है) त्वचा की देखभाल, साबुन या डिटर्जेंट का निर्माण करने के लिए और वनस्पति मक्खन के रूप में किया जाता है। ईंधन तेल के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। तेल निकलने के बाद बचे इसके खल का प्रयोग जानवरों के खाने और उर्वरक के रूप में किया जाता है। इसके सूखे फूलों का प्रयोग मेवे के रूप में किया जा सकता है। इसके फूलों का उपयोग भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में शराब के उत्पादन के लिए भी किया जाता है। कई भागों में पेड़ को उसके औषधीय गुणों के लिए उपयोग किया जाता है, इसकी छाल को औषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता है। कई आदिवासी समुदायों में इसकी उपयोगिता की वजह से इसे पवित्र माना जाता है।

महुआ की शराब

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महुआ के सूखे फूल

महुआ के फूलों से शराब बनायी जाती है। इसे संस्कृत में 'माध्वी' और ग्रामीण क्षेत्रों में आजकल 'ठर्रा' कहते हैं। महुआ का शराब भारत के अनेक आदिवासी क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय पेय है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के झाबुआ की महुआ की शराब काफी प्रसिद्ध है। यह शराब पूरी तरह से रसायन (केमिकल) से मुक्त होती है। इसी तरह, छत्तीसगढ़ के बहुत से भागों में भी महुआ शराब बनाया जाता है जिनमें बिरेझर (राजनांदगांव) और टेमरी (दुर्ग) में प्रमुख हैं।

महुआ का फूल जब पेड़ से पूरी तरह से पक कर गिरता है, उसके बाद इस फूल को पूरी तरह से सुखाया जाता है। इसके बाद सभी फूलों को बर्तन में पानी में मिलाकर तथा इसमें अवश्यकतनुसार विभिन्न प्रकार के पेड़ों के छाल, फूल, पत्ते आदि मिलाकर ५-६ दिन तक रखा जाता है। उसके बाद उस बर्तन को आग पर गरम किया जाता है और गरम होने पर जो भाप निकलती है उसको नली के द्वारा दूसरे बर्तन मैं एकत्रित किया जाता है। भाप ठंडी होने पर महुआ की शराब होती है।

अन्य उपयोग

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  • महुए का फूल, फल, बीज, छाल, पत्तियाँ सभी का आयुर्वेद में अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है।
  • महुए का धार्मिक महत्व भी है। रेवती नक्षत्र का आराध्य वृक्ष है।
  • महुए के बीज से तेल निकालने के बाद वह खली के रूप में पशुओं को खिलायी जाती है।
  • महुए का तेल
  • महुए के ताजे और सूखे फल से 'महुअरी' (महुए की रोटी) बनायी जाती है जो अत्यन्त स्वादिष्ट होती है।
  • महुए का फल पकने के बाद उसे खाया जाता है। कच्चे फल में से की तरकारी बनायी जाती है।
  • बायोडीजल या एथेनॉल के लिए[1][2]
  • महुआ से जैम बनाया जा सकता है।[3]
  • हस्त पवित्रीकरण (हैण्ड सेनेटाइजर) के रूप में [4]

सन्दर्भ

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  1. "भारत की ईंधन आवश्यकता को पूरा करने में महुआ से बना एथनॉल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है". मूल से 20 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मई 2020.
  2. शराब नहीं, डीज़ल-पेट्रोल बनेगा महुआ से Archived 2010-10-17 at the वेबैक मशीन (बीबीसी हिन्दी)
  3. महुआ से बनेगा स्वास्थ्यवर्धक जैम[मृत कड़ियाँ]
  4. "जिस महुआ से शराब बनाते हैं आदिवासी, छत्तीसगढ़ के युवा वैज्ञानिक ने उसी से बना दिया हैंड सैनिटाइजर". मूल से 3 मई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मई 2020.

बाहरी कड़ियाँ

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