नाज़ी जर्मनी
नाज़ी जर्मनी, नात्सी जर्मनी या तृतीय राइख़ (जर्मन: Drittes Reich, हिन्दी लिप्यान्तरण: ड्रीटॅस् राइख़) १९३३ और १९४५ के बीच जर्मनी के लिए इतिहासकारों द्वारा सामान्य नाम दिया गया है, जब जर्मनी पर एडोल्फ़ हिटलर के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन कार्यकर्ता पार्टी (NSDAP) का एकछत्र राज्य था। इसके अतिरिक्त इसे नाज़ीवादी जर्मनी (जर्मन: Das Nazistische Deutschland, हिन्दी लिप्यान्तरण: दास नत्सीस्तिशे डॉइच्लॅण्ड) तथा सहस्रवर्षीय साम्राज्य (जर्मन: Das Tausendjähriges Reich, हिन्दी लिप्यान्तरण: दास थ़ाउज़ेण्ड्यॅरिगेस राइख़) इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता था उस कालखण्ड में।
तृतीय साम्राज्य वाइमर गणराज्य के पश्चात् सत्ता में आया, जब 4 मार्च 1933 को राष्ट्रीय-समाजवादी जर्मन श्रमिक पार्टी ने (NSDAP "एन-एस-दे-आ-पे", Die NationalSozialistische Deutsche ArbeiterPartei, हिन्दी लिप्यान्तरण: दी नत्सिओनाल-सोत्सिअलीस्तिशे दोय्चे आर्बाय्तेर्पर्ताय) हिटलर के नेतृत्व में राजसत्ता हथिया ली। ३० जनवरी १९३३ को एडोल्फ़ हिटलर जर्मनी का चांसलर बना और तुरन्त ही सारे विरोध को ख़त्म करके वह उस देश का इकलौता नेता बन बैठा। देश ने उसे फ़्यूरर (जर्मन: Führer, अनुवाद. नेता) कहकर पूजना आरम्भ कर दिया और सारी ताक़त उसके हाथ में सौंप दी। इतिहासकारों ने बड़ी सभाओं में उसके वाक्चातुर्य और कमरे में हुयी बैठकों में उसकी आँखों से होने वाले मन्त्रमुग्ध लोगों का ज़ोर देकर बताया है।[1] शनैः शनैः यह बात प्रचलन में आ गई कि फ़्यूरर का वचन विधि से भी ऊपर है। दरअसल यह मत लोगों के बीच हिटलर के मतप्रचालन मन्त्री योसॅफ़ गॅबॅल्स ने रखा था जिसे प्रथम विश्वयुद्ध और वर्साय की संधि से सताई गई जनता ने दोनों हाथों से हड़प लिया। सरकार के शीर्षस्थ अधिकारी केवल हिटलर को रिपोर्ट देते थे और उसी की नीतियों का अनुसरण भी करते थे, हालाँकि उनकी कार्यशैली में कुछ हद तक स्वायत्ता बरक़रार थी।
इतिहास
[संपादित करें]पृष्ठभूमि
[संपादित करें]१९२० के दशक के शुरुआती सालों में नाज़ी आन्दोलन ने ज़ोर पकड़ा, जब प्रथम विश्वयुद्ध से सेवानिवृत्त ग़ुस्साए युवाओं ने वर्साय की संधि, वाइमर गणराज्य तथा प्रजातंत्र को मानने से इन्कार कर दिया। उन्होंने आर्य कुलवंश के पुनरुत्थान की माँग की और जर्मनी के सारे कष्टों का दोषी यहूदियों को ठहराया। उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली मतप्रचार से लोगों को यह बतलाया कि प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार का कारण उसकी सेना नहीं बल्कि यहूदी, साम्यवादी तथा अन्य विनाशक शक्तियाँ थीं जो देश के असैनिक वर्ग में मौजूद थीं।
तृतीय साम्राज्य का विनाश
[संपादित करें]सोवियत संघ के साथ लडे़ द्वितीय विश्वयुद्ध में नाज़ियों का तृतीय साम्राज्य 23 मई 1945 में चकनाचूर हो गया।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Neil J. Kressel (2002). Mass Hate: The Global Rise Of Genocide And Terror. Basic Books. पृ॰ 121. मूल से 21 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27-07-2012.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
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