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गेलुगपा

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चित्र:Kalachakra.gif
कालचक्र मंत्र

गेलुग या गेलुगपा एक बौद्ध सम्प्रदाय है।

पूर्वी तिब्बत के अम्दो निवासी छोंखपा और लोझंग रक्पा ने गेलुगपा संप्रदाय की स्थापना की। 1409 ई में मध्य तिब्बत में गदेन मठ की स्थापना की। इस कारण यह संप्रदाय पहले गदेन फिर गदेनपा कहलाने लगा।

इस प्रकार यह संप्रदाय 600 वर्ष पुराना हो चुका है। इसका अर्थ होता है कि विस्तृत सूझबूझ तथा संगठित करने की अतुलनीय शक्ति वाला। छोंखपा का जन्म अम्दो प्रांत के छौंख-पा घाटी में हुआ था, जिसके कारण उन्हें इसी नाम से पुकारा जाने लगा।

इन्होंने सर्वप्रथम तीसरे करमपा से शिक्षा ग्रहण की तथा बाद में छोजे दोन्ड्रेप रिनपोछे से। 16 वर्ष की आयु में कश्मीर के साक्यश्री परंपरा में प्रव्रज्या ग्रहण किया व पंथ के गुरु रीडवा झोनू लोदरो से माध्यमिक और अभिधम्म का अध्ययन किया।

बुस्तोन के शिष्य से तंत्र भी सीखा। छोंखपा की प्रसिद्धि तिब्बत के प्रख्यात विद्वान के रूप में है। वे ज्यादा समय संगठन को मजबूत करने व बौद्ध संघ की बुराइयों को दूर करने में ही बिताया। सूत्र और तंत्र आधारित कई रचनाएं कीं।

छोंखपा के बाद ग्यालशल्जे व छेद्रुपजे क्रमश उत्तराधिकारी बने। इन तीनों के बाद गदेन संप्रदाय के वरिष्ठ विद्वान को मठ की गद्दी मिलने की परंपरा शुरू हुई तथा वे ही संप्रदाय के मुखिया भी बनते थे।

गेलुगपा अतिश दीपंकर श्री ज्ञान द्वारा निर्धारित परंपराओं का पालन करते हैं। इसके अतिरि चार तंत्रों-क्रिया योग, चर्या योग, योग तंत्र व अनुत्तर योग का भी पालन करते हैं। इस संप्रदाय में दिनांग व धर्मकीर्ति के न्याय, मैत्रेयनाथ और असंग के प्रज्ञापारमिता सूत्र, नागार्जुन व चंद्रकीर्ति के माध्यमिक, वसुबंधु व असंग के अभिधर्म तथा गुणप्रभा द्वारा रचित विनय प्रमुख ग्रंथ है, जिस पर इनकी आध्यात्मिक व दर्शन टिका है।

तंत्र अंतर्गत गुह्य समाज, सम्बर, वज्रभैरव, हेवज्र, कालचक्र व वज्रयोगिनी प्रमुख कृतियां हैं, जिनका अध्ययन विशेष रूप से इस संप्रदाय द्वारा किया जाता है। इस संप्रदाय ने अवतार पर आधारित गु परंपरा को स्वीकार किया। इसी परंपरा के आधार पर वर्तमान दलाई लामा 14वें हैं। इनका अवतारवाद कभी विवाद में नहीं आया।

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