एकवंशक या एकरेल (मोनोरेल / monorail) एक परिवहन प्रणाली है जो केवल एक रेल पर चलती है। प्रायः यह एकल रेलपथ जमीन से कुछ उंचाई पर बनाया गया होता है।

मॉस्को की एकरेल
Wuppertal Suspension Railway (Wuppertal, Germany)
  • विश्व की पहली मोनोरेल 1820 में रूस के ईवान इलमानोव के द्वारा बेहतर यातायात के विकल्‍प के तौर पर बनाई गयी थी।
  • 1821 में मोनोरेल का पहला ट्रायल दक्षिणी लंदन के डप्‍टफोर्ड डॉकयार्ड के हार्डफोर शेयर से रिवर ली तक किया गया था।
  • 1900 में गायरोमोनोरेल का परीक्षण किया गया। 1901 में इसका लिवरपूल से मैनचेस्‍टर के बीच प्रयोग भी किया गया।
  • 1910 में गायरोमोनोरेल का प्रयोग अलास्‍का की खानों में कुछ समय तक किया गया।
  • 1980 के बाद शहरीकरण के बढ़ने के साथ साथ ही जापान और मलेशिया में इसका बेहतर इस्‍तेमाल किया गया। आज टोकियो मोनोरेल विश्‍व का सबसे व्‍यस्‍त नेटवर्क है, जिसका प्रयोग हर रोज एक लाख सत्‍ताइस हजार यात्री करते हैं।

मोनोरेल (स्थानांतरण का उपकरण)

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मोनोरेल का उपयोग सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने के लिये भी किया जाता है। यह विविध प्रकार के माल कारखाने के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह सामान को हवा में लटकाते हुए ले जाता है और भूमि से ऊपर ही ऊपर चलता रहता है। इसकी क्रिया आवश्यकतानुसार रुक रुककर हो सकती है। साधारणत: यह एक सीमित क्षेत्र में ही काम करता है। मोनोरेल पुल पर चलनेवाला क्रेन और शक्ति से चलनेवाला क्रेन, ये दोनों, एक दूसरे से भिन्न दिखाई पड़ने पर भी, एक ही श्रेणी में आते हैं।

मोनोरेल यंत्र के तीन आवश्यक अंग होते हैं : पथ, डब्बे या ठेला (ट्रॉली) और वाहक। इसके डब्बे जंजीर अथवा तार द्वारा चलनेवाले डब्बों की भाँति एक दूसरे से संयुक्त नहीं रहते और न जंजीर अथवा तार द्वारा चलते हैं। इसके डब्बों को साधारणत: हाथ से ढकेला जाता है। यद्यपि ये एक निश्चित पथ पर चलते हैं, तथापि उस पथ के ओर और छोर का जुड़ा रहना आवश्यक नहीं है। मोनोरेल यंत्र का उपयोग अपेक्षाकृत हल्के भार को स्थानांतरित करने में होता है। यातायात के साधारण साधन भूमि पर बिछी दो पटरियों पर चलते हैं, किंतु मोनोरेल के डब्बे भूमि से ऊपर आकाश में लगी एकल पटरी की सहायता से लटकते हुए चलते हैं। भूमि पर यातायात की अपेक्षा भूमि से ऊपर यातायात में एक सुविधा यह रहती है कि इसमें भूमि छेंकने की असुविधा नहीं होती, यह कम महत्त्व की बात नहीं है।

मोनोरेल प्रणाली का उपयोग वस्तुत: किसी भी वस्तु को हटाने बढ़ाने में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह प्रणाली विविध प्रविधियों से युक्त होने पर उद्योग में अनेक प्रकार के काम कर सकती है, जैसे भारी माल उठाना, फेंकना, माल को पानी में डुबाकर धोना आदि। इसका अनेक प्रकार के उद्योगों में उपयोग होता है, जैसे मदिरा तथा खाद्य संबंधी उद्योग, ढलाई घर, धुलाई घर, कागज, रबर तथा कपड़े के कारखाने, वस्तुभंडार और कोयला तथा राख को लाना ले जाना आदि।

वर्गीकरण

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संरचना की दृष्टि से और पथ के लिए प्रयुक्त सामग्री (नल, पटरी आदि) के आधार पर मोनोरेल यंत्रों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है :

नल प्रणाली- मोनोरेल यंत्रों में सर्वाधिक सरल संरचनावाली प्रणाली वह है जिसमें पटरियों के स्थान पर नल (पाइप), डब्बों और डब्बों को उतारने या उलटने के काम में आनेवाली कतिपय वस्तुओं का प्रयोग होता है। नलवाली प्रणालियों का उपयोग प्राय: निर्जल धुलाई के कारखानों, धुलाई घरों, विभागीय गोदामों और सिले वस्त्रों की थोक दूकानों तक सीमित है।

पट्टीदार मोनोरेल- यह एक दूसरे प्रकार की विशिष्ट मोनोरेल प्रणाली है। यह मुख्यत: मांस तथा मांसनिर्मित वस्तुओं (कीमा आदि) को कारखाने के भीतर ही इधर उधर पहुँचाने में प्रयुक्त होती है। पटरी सादी, या जस्ते की कलईवाली, लोहे की साधारण पट्टियों से बनी रहती है। ठंडे गोदामों, मांस को डिब्बों में भरनेवाले कारखानों, प्रशीतित भांडारों तथा मांस के थोक विक्रेताओं और मांस का कीमा आदि बनानेवालों द्वारा यह प्रणाली व्यापक रूप से प्रयुक्त होती है।

विशेष आकृति की पटरीवाले मोनोरेल- यह प्रणाली विभिन्न उद्योगों में सबसे अधिक प्रयुक्त होती है। इसकी पटरियों का अनुप्रस्थ काट (क्रॉस-सेक्शन) अंग्रेजी अक्षर I के रूपवाले गर्डरों का थोड़ा परिवर्तित रूप होता है। ये पटरियाँ इसी काम के लिए विशेष रूप से बनाई जाती हैं। इनका ऊपरी भाग मोटा रखा जाता है, जिसमें वे घिसकर शीघ्र खराब न हो जाएँ। जब भार अपेक्षाकृत अधिक होता है तब इसी प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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