"केन-उपनिषद" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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== ग्रंथाची मांडणी == |
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|[[ब्रह्म (निःसंदिग्धीकरण)|ब्रह्म]] म्हणजे जिच्यापर्यंत मन,वाचा,चक्षू पोहोचू शकत नाही अशी शक्ती होय. ज्या शक्तीची उपासना सगुण रूपात केली जात नाही अशी शक्ती म्हणजे ब्रह्म होय असे विवेचन या भागात केले आहे. |
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|०१.०२ |
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|भाग दुसरा |
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|व्यक्तीला ब्रह्मज्ञान झाले की नाही हे ओळखण्याचे निकष सांगितले आहेत. |
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|भाग तिसरा |
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|ब्रह्माचे सामर्थ्य विशद करण्यासाठी उमा हैमवतीची आख्यायिका सांगितलेली आहे. देवांचे गर्वहरण करण्यासाठी ब्रह्मशक्ती उमाहैमवतीचे रूप घेऊन अवतरते व देवांना ब्रह्मतत्त्व सर्वश्रेष्ठ आहे याची जाणीव करून देते, असे या भागात सांगितले आहे. |
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|भाग चौथा |
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|या भागामध्ये, उमाहैमवती देवांना ब्रह्मतत्त्वाचे श्रेष्ठत्व विशद करून सांगते. <ref>{{जर्नल स्रोत|date=2024-09-10|title=केनोपनिषद|url=https://mr.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6|journal=विकिपीडिया|language=mr}}</ref> |
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|'''उपनिषद्-वृत्ति (भाष्य)''' |
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|प्रकरण पंधरावे |
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== ग्रंथाचा आशय == |
== ग्रंथाचा आशय == |
१४:२४, ९ जानेवारी २०२५ ची आवृत्ती
केन उपनिषद | |
लेखक | श्रीअरविंद |
मूळ शीर्षक (अन्य भाषेतील असल्यास) | Kena Upshinad |
अनुवादक | सेनापती पां.म.बापट |
भाषा | मराठी |
देश | भारत |
साहित्य प्रकार | वैचारिक ग्रंथ |
प्रकाशन संस्था | श्रीअरविंद आश्रम, प्रकाशन विभाग |
प्रथमावृत्ती | १९६६ |
चालू आवृत्ती | २०२० |
विषय | श्रीअरविंद आणि त्यांचे तत्त्वज्ञान |
पृष्ठसंख्या | १३३ |
आय.एस.बी.एन. | 978-81-7058-417-9 |
केन उपनिषद् हा ग्रंथ म्हणजे केवळ केनोपनिषदाचा अनुवाद (संस्कृतमधून इंग्रजीमध्ये केलेला) नाही. तर त्यामध्ये अनुवादाबरोबरच श्रीअरविंद यांनी त्यावर केलेले भाष्य समाविष्ट करण्यात आलेले आहे. त्यामुळे हा श्रीअरविंदकृत भाष्य-ग्रंथ आहे.त्याचे मराठी भाषांतर सेनापती बापट यांनी केले आहे. [१]
ग्रंथाची मांडणी
क्र. | विभाग | प्रकरणे | आशय |
---|---|---|---|
०१ | मूळ मंत्र व अनुवाद | ||
०१.०१ | भाग पहिला | ब्रह्म म्हणजे जिच्यापर्यंत मन,वाचा,चक्षू पोहोचू शकत नाही अशी शक्ती होय. ज्या शक्तीची उपासना सगुण रूपात केली जात नाही अशी शक्ती म्हणजे ब्रह्म होय असे विवेचन या भागात केले आहे. | |
०१.०२ | भाग दुसरा | व्यक्तीला ब्रह्मज्ञान झाले की नाही हे ओळखण्याचे निकष सांगितले आहेत. | |
०१.०३ | भाग तिसरा | ब्रह्माचे सामर्थ्य विशद करण्यासाठी उमा हैमवतीची आख्यायिका सांगितलेली आहे. देवांचे गर्वहरण करण्यासाठी ब्रह्मशक्ती उमाहैमवतीचे रूप घेऊन अवतरते व देवांना ब्रह्मतत्त्व सर्वश्रेष्ठ आहे याची जाणीव करून देते, असे या भागात सांगितले आहे. | |
०१.०४ | भाग चौथा | या भागामध्ये, उमाहैमवती देवांना ब्रह्मतत्त्वाचे श्रेष्ठत्व विशद करून सांगते. [२] | |
०२ | उपनिषद्-वृत्ति (भाष्य) | ||
०२.०१ | प्रकरण पहिले | ||
०२.०२ | प्रकरण दुसरे | ||
०२.०३ | प्रकरण तिसरे | ||
०२.०४ | प्रकरण चौथे | ||
०२.०५ | प्रकरण पाचवे | ||
०२.०६ | प्रकरण सहावे | ||
०२.०७ | प्रकरण सातवे | ||
०२.०८ | प्रकरण आठवे | ||
०२.०९ | प्रकरण नववे | ||
०२.१० | प्रकरण दहावे | ||
०२.११ | प्रकरण अकरावे | ||
०२.१२ | प्रकरण बारावे | ||
०२.१३ | प्रकरण तेरावे | ||
०२.१४ | प्रकरण चौदावे | ||
०२.१५ | प्रकरण पंधरावे |
ग्रंथाचा आशय
अमृतत्व कसें मिळवावयाचें, दिव्य ब्रह्माचे जगाशीं आणि मानवी जाणिवेशी असलेले संबंध कोणते, अज्ञान, दुःख ही जी आमची आज स्थिती आहे त्यातून बाहेर पडून एकता, सत्य आणि दिव्य सुख या स्थितींत आपण कोणत्या मार्गाने जाऊ शकतो हा एकच मोठा प्रश्न होय. हा प्रश्न या उपनिषदाने हाताळला आहे.
'ब्रह्म म्हणजे परम सुख' अशी व्याख्या हे उपनिषद करते. ब्रह्माची परम सुख म्हणून उपासना करावी व परम सुख म्हणून प्राप्त करून घेण्याचा प्रयत्न करावा असा आदेश देऊन केन उपनिषद् समाप्त होते, असे श्रीअरविंद म्हणतात.[१]
संदर्भ
- ^ a b केन-उपनिषद, अनुवाद सेनापती बापट, प्रथम आवृत्ती १९६६
- ^ "केनोपनिषद". विकिपीडिया. 2024-09-10.