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दया

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दया

दया और सत्य भजन 85:10 के 13 वीं शताब्दी के प्रतिनिधित्व में एक साथ दिखाए जाते हैं

दया शब्द हिंदी में काफी प्रयुक्त होता है। इसका का अर्थ करुणा है।कई विद्वानो ने दया की अलग अलग परिभाषा दी है,तुलसीदास जी ने दया को धर्म का मूल कहा है।जब तक ह्रदय मे दया है,तब तक धर्म उस पर टिका हुआ है, दया की अनुपस्थिती में धर्म का कोई अस्तित्व नही है। according to Anant (kabyani kitab se written by me anant) chemical engineering ..(6396913876) अभूतपूर्व अभी के समय में ऐसा अनुमान लगाना असंभव नहीं है कि किसी के ह्रदय में किसी के लिए दया उत्पन्न ना हो साधारण किसी के प्रति क्षण भर का प्रेम ही दया है क्या? गुप्त भाव है? विचार है,गुण है क्या है? दया किंतु अब कितनी कम हो चुकी है और शेष क्या है? मानव के प्रति ही क्यों उत्पन्न होती है क्या जीव पर भी लागू है क्या यह प्राणियों के लिए ही है और जीवो के लिए क्या यह निर्जीव के लिए नहीं है? एक मेरी घटित घटना है यह बात उस समय की है जब मैं इंटरमीडिएट की परीक्षा की तैयारी अपने घर की छत पर कर रहा था वह किराए का घर था जब मैं छत पर था तभी मेरे पड़ोस की छत पर एक कुत्ता था जो उन्होंने पाल रखा था बात है की कुत्ता शरीर में अपने 2 गुना था जिससे मुझको काफी डर लग रहा था उसको देखकर उसी समय उसके पास एक कौवा आकर बैठा क्योंकि कुत्ते के पास एक रोटी थी जो उसके समीप पड़ी थी उसे चाहिए थी उस कौवा का शरीर उसके तुलना में 20 गुना छोटा था और साथ ही साथ उस कौवा का ना एक पैर था ना सही प्रकार से चोंच, फिर भी वह कुत्ते से लड़ कर रोटी उठाने में सफल रहा, बात का निष्कर्ष क्या है? उसको कुत्ता एक बड़ी परिस्थिति थी किंतु बिना पैर के और बिना पूर्ण चोंच उसने मैं प्राप्त कि अगर मैं उससे कुछ नहीं सीखा तो शायद किसी से नहीं, बात है कि उसके प्रति मेरे ह्रदय में दया थी किंतु गुप्त ,कितना भी संघर्ष हो ,करो ,किसी के दया का पात्र मत बनो दया गुण तो महान है किंतु लेने वाले को बिल्कुल स्वादहीन, अगर वृद्ध है तो उसके प्रति दया हमारा महान गुण जिसको गुप्त मत रखो,ह्रदय के गुप्त स्थान से चंचल दया का आगमन होता है अगर दया है तो निकालो अड़ियल मत बनो संसार ही तुम्हारा है तुमसे ही संसार है तुमसे यह पृथ्वी और समाज दया ऐसा विषय है गंभीरता से भरा अगर यही विषय प्रेम का होता तो अभी तक काफी कुछ लिख चुका होता प्रेम और दया में अंतर है प्रेम अपने पर आता है और दया अपना बनाने वाले पर दया का जीवनकाल अति लघु होता है कभी-कभी इसकी रातें लंबी निकल जाती हैं मैंने भी दया की ,कई वृद्ध लोगों पर चल नहीं सकते तो ठीक से वजन नही उठा सकते कहानी लंबी है क्या कुछ खास नहीं बस खास है आप लोग जो अन्य लोगों के प्रति स्नेह या दया का भाव रखना चाहेंगे देखो ना ऊपर वाले ने रात दिन सुबह और शाम दो पक्ष बनाए और अपने इसमें के साथ हमें या का निवासी क्यों ना दया के बारे में विचार बिल में करें लिखो फिर क्या बताना है आपको क्या समझाना है इस अबोध दुनिया को क्या समझोगे अपने पर अपने परिवार को ,अपने सरपट मस्तिष्क को, मेरे प्रिय बंधु बिना व्यथा कुछ साफ दिखेगा ही नहीं, देखो इस दुनिया की दया सीमा कहां से बनकर निकली और कहां तक जाएगी यह कहां पर समाप्त हुई है?दया, भाव से से कोई भी विमुख नहीं है अंदर ही है क्या बेकार बातें फिर आप बेकार में प्रति बात करना शुरू कर दें खुद ह्रदय के प्रश्नों पर टिप्पणी लिख कर देंगे

             कविता

क्या अभिप्राय है दया

निर्बल है दया, कठोर है दया