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'''खादिम जाति'''
'''खादिम जाति'''


यह जाती [[भारत]] के [[राजस्थान]] राज्य और [[पाकिस्तान]] में पाई जाती है। [[अजमेर]] के [[भील]] [[धर्म]] के लोगो के [[मुस्लिम]] [[धर्म]] में परिवर्तन के फलस्वरूप एक नई जाती बनी जिसे खादिम [[जाति]] के नाम से जाना गया। अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की [[दरगाह]] के खादिम भील पूर्वजों के वंशज है।<ref>{{cite journal |title=In the Court of Treasury officer and Magistrate First Class Ajmer Criminal Case no. 70 of 1928}}</ref> जब ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेर शरीफ़ आए उस वक्त अजमेर का राजा राय पिथौरा (पृथ्वीराज तृतीय) था एक बहुत ही सुंदर महिला जिसका नाम मीना था और जो भील जाती से थी इस महिला से राय पिथौरा को कई संतान हुई जिनमे से दो पुत्र लाखा भील और टेका भील ख्वाजा साहब से प्रभावित होकर इस्लाम धर्म में शामिल हो गए और दोनो भाइयों ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य बनने के बाद अपना नाम (लाखा) फखरुद्दीन व (टेका) मोहम्मद यादगार रखा अजमेर में मौजूद समस्त ख़ादिम इन दोनों भाइयों के वंशज हैं। विधिक संतान न होने के कारण इन्हें पृथ्वीराज चौहान का उपनाम न मिला और माता के उपनाम नाम से ही जाने गए, वर्तमान में चढ़ावों और नज़रानो की वजह से तथा समाज में विशेष सम्मान और ख्याति व प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए यह लोग अपना नसब इस्लाम के अंतिम पैगम्बर साहब से जोड़ खुद को उनकी संतान बताने की कोशिश करते रहते हैं,और इसलिए कुछ सौ वर्षों से खुद के उपनाम में सैयद भी लागाने लगे हैं,
यह जाती [[भारत]] के [[राजस्थान]] राज्य और [[पाकिस्तान]] में पाई जाती है। [[अजमेर]] के [[भील]] [[धर्म]] के लोगो के [[मुस्लिम]] [[धर्म]] में परिवर्तन के फलस्वरूप एक नई जाती बनी जिसे खादिम [[जाति]] के नाम से जाना गया। अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की [[दरगाह]] के खादिम भील पूर्वजों के वंशज है।<ref>{{cite journal |title=In the Court of Treasury officer and Magistrate First Class Ajmer Criminal Case no. 70 of 1928}}</ref> जब ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेर शरीफ़ आए उस वक्त अजमेर का राजा राय पिथौरा (पृथ्वीराज तृतीय) था एक बहुत ही सुंदर महिला जिसका नाम मीना था और जो भील जाती से थी इस महिला से राय पिथौरा को कई संतान हुई जिनमे से दो पुत्र लाखा भील और टेका भील ख्वाजा साहब से प्रभावित होकर इस्लाम धर्म में शामिल हो गए और दोनो भाइयों ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य बनने के बाद अपना नाम (लाखा) फखरुद्दीन व (टेका) मोहम्मद यादगार रखा अजमेर में मौजूद समस्त ख़ादिम इन दोनों भाइयों के वंशज हैं। विधिक संतान न होने के कारण इन्हें पृथ्वीराज चौहान का उपनाम न मिला और माता के उपनाम नाम से ही जाने गए, वर्तमान में चढ़ावों और नज़रानो की वजह से तथा समाज में विशेष सम्मान और ख्याति व प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए यह लोग अपना नसब इस्लाम के अंतिम पैगम्बर साहब से जोड़ खुद को उनकी संतान बताने की कोशिश करते रहते हैं,और इसलिए कुछ सौ वर्षों से खुद के उपनाम में सैयद भी लागाने लगे हैं, इस चकाचौन्द भरी जिंदगी में आकर अपने पूर्वजों को भुला दिया है और खुद की नस्ल बदल कर सैयव शैख द बताने लगे हंं। <ref>{{cite book |last1=Currie |first1=P. M. |title=The shrine and cult of Muʻīn al-Dīn Chishtī of Ajmer |publisher=Oxford University Press |location=Delhi |isbn=978-0195683295 |edition=New}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/islam-ka-bhartiy-karan|title=Islam Ka Bhartiy Karan इस्लाम का भारतीय करण اسلام کا بھارتیے کرن|last=जमालुद्दीन जौहर|first=गजाला प्रकाशन|date=2006}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/khadimon-ki-kahani-itihas-ki-zubani|title=Khadimon Ki Kahani Itihas Ki Zubani खादिमों कि कहानी इतिहास की ज़ुबानी خادموں کی کہانی اٹھاس کی زبانی|last=अकीदत मंद ख्वाजा साहब|first=Devotees of Khwaja Saheb|date=1995}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/the-correct-and-real-religious-positions-of-the-khadims-chowkidar-of-dargah-hazr|title=The Correct And Real Religious Positions Of The Khadims Chowkidar Of Dargah Hazrat Khwaja Saheb Ajmer|last=Devotee Of Hazrat Khwaja Saheb Ajmer|date=1995|language=English}}</ref><ref>{{Cite journal|date=1994|title=भीलों के चुंगल में अजमेर वाले ख़्वाजा|journal=न्याय समाचार पत्र}}</ref>

इस चकाचौन्द भरी जिंदगी में आकर अपने पूर्वजों को भुला दिया है और खुद की नस्ल बदल कर सैयव शैख द बताने लगे हंं। <ref>{{cite book |last1=Currie |first1=P. M. |title=The shrine and cult of Muʻīn al-Dīn Chishtī of Ajmer |publisher=Oxford University Press |location=Delhi |isbn=978-0195683295 |edition=New}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/islam-ka-bhartiy-karan|title=Islam Ka Bhartiy Karan इस्लाम का भारतीय करण اسلام کا بھارتیے کرن|last=जमालुद्दीन जौहर|first=गजाला प्रकाशन|date=2006}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/khadimon-ki-kahani-itihas-ki-zubani|title=Khadimon Ki Kahani Itihas Ki Zubani खादिमों कि कहानी इतिहास की ज़ुबानी خادموں کی کہانی اٹھاس کی زبانی|last=अकीदत मंद ख्वाजा साहब|first=Devotees of Khwaja Saheb|date=1995}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/the-correct-and-real-religious-positions-of-the-khadims-chowkidar-of-dargah-hazr|title=The Correct And Real Religious Positions Of The Khadims Chowkidar Of Dargah Hazrat Khwaja Saheb Ajmer|last=Devotee Of Hazrat Khwaja Saheb Ajmer|date=1995|language=English}}</ref><ref>{{Cite journal|date=1994|title=भीलों के चुंगल में अजमेर वाले ख़्वाजा|journal=न्याय समाचार पत्र}}</ref>


==संदर्भ==
==संदर्भ==

18:10, 5 फ़रवरी 2023 का अवतरण

खादिम जाति

यह जाती भारत के राजस्थान राज्य और पाकिस्तान में पाई जाती है। अजमेर के भील धर्म के लोगो के मुस्लिम धर्म में परिवर्तन के फलस्वरूप एक नई जाती बनी जिसे खादिम जाति के नाम से जाना गया। अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम भील पूर्वजों के वंशज है।[1] जब ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेर शरीफ़ आए उस वक्त अजमेर का राजा राय पिथौरा (पृथ्वीराज तृतीय) था एक बहुत ही सुंदर महिला जिसका नाम मीना था और जो भील जाती से थी इस महिला से राय पिथौरा को कई संतान हुई जिनमे से दो पुत्र लाखा भील और टेका भील ख्वाजा साहब से प्रभावित होकर इस्लाम धर्म में शामिल हो गए और दोनो भाइयों ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य बनने के बाद अपना नाम (लाखा) फखरुद्दीन व (टेका) मोहम्मद यादगार रखा अजमेर में मौजूद समस्त ख़ादिम इन दोनों भाइयों के वंशज हैं। विधिक संतान न होने के कारण इन्हें पृथ्वीराज चौहान का उपनाम न मिला और माता के उपनाम नाम से ही जाने गए, वर्तमान में चढ़ावों और नज़रानो की वजह से तथा समाज में विशेष सम्मान और ख्याति व प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए यह लोग अपना नसब इस्लाम के अंतिम पैगम्बर साहब से जोड़ खुद को उनकी संतान बताने की कोशिश करते रहते हैं,और इसलिए कुछ सौ वर्षों से खुद के उपनाम में सैयद भी लागाने लगे हैं, इस चकाचौन्द भरी जिंदगी में आकर अपने पूर्वजों को भुला दिया है और खुद की नस्ल बदल कर सैयव शैख द बताने लगे हंं। [2][3][4][5][6]

संदर्भ

  1. "In the Court of Treasury officer and Magistrate First Class Ajmer Criminal Case no. 70 of 1928". Cite journal requires |journal= (मदद)
  2. Currie, P. M. The shrine and cult of Muʻīn al-Dīn Chishtī of Ajmer (New संस्करण). Delhi: Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0195683295.
  3. जमालुद्दीन जौहर, गजाला प्रकाशन (2006). Islam Ka Bhartiy Karan इस्लाम का भारतीय करण اسلام کا بھارتیے کرن.
  4. अकीदत मंद ख्वाजा साहब, Devotees of Khwaja Saheb (1995). Khadimon Ki Kahani Itihas Ki Zubani खादिमों कि कहानी इतिहास की ज़ुबानी خادموں کی کہانی اٹھاس کی زبانی.
  5. Devotee Of Hazrat Khwaja Saheb Ajmer (1995). The Correct And Real Religious Positions Of The Khadims Chowkidar Of Dargah Hazrat Khwaja Saheb Ajmer (English में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  6. "भीलों के चुंगल में अजमेर वाले ख़्वाजा". न्याय समाचार पत्र. 1994.